कुछ भारतीय कंपनियां आईफोन (iPhone) के कल-पुर्जे बनाने की संभावनाएं तलाशने के लिए ऐपल से बातचीत कर रही हैं। भारत और अन्य देशों में आईफोन के कल-पुर्जे और अन्य उत्पाद बनाने के लिए ये कंपनियां अमेरिका की इस दिग्गज कंपनी के साथ जुड़ना चाहती हैं।
इन कंपनियों में महिंद्रा ऐंड महिंद्रा, मुरुगप्पा समूह (BSA और हरक्यूलिस ब्रांडों के नाम से साइकिल बनाने वाली कंपनी), विप्रो, ईएमएस कंपनी डिक्सन टेक्नोलॉजीज और मोबाइल फोन बनाने वाली लावा इंटरनैशनल शामिल हैं। इनमें कुछ कंपनियों के नाम तो स्वयं सरकार ने ऐपल को सुझाए हैं।
इस घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले सूत्रों ने कहा कि ऐपल वाहनों के कल-पुर्जे बनाने वाली उन कंपनियों के साथ भी संपर्क साधना चाह रही है जिन्हें बड़ी कार कंपनियों के कल-पुर्जे बनाने का अनुभव है। इन कंपनियों से उनकी प्रतिक्रिया जानने के लिए संपर्क साधा गया लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया। ऐपल के प्रवक्ता ने भी इस संबंध में पूछे गए सवाल का जवाब नहीं दिया।
हाल ही में ऐपल ने टाटा समूह के साथ समझौता किया है। टाटा के साथ आने से चीन की तरह ही भारत में आपूर्ति तंत्र विकसित करने की ऐपल की पहल को ताकत मिली है।
लगभग दो-तीन वर्षों तक अनुभव लेने के बाद टाटा ने आईफोन के कवर एवं अन्य सुरक्षा सामग्री बनाना शुरू कर दिया था और अब उसने चीन को इनका निर्यात भी करना शुरू कर दिया है। अब समूह एक और बड़ा कदम उठा रही है जिसके तहत यह विस्ट्रॉन के आईफोन मैम्युफैक्चरिंग प्लांट का अधिग्रहण कर सकती है। फॉक्सकॉन और पेगाट्रॉन के साथ विस्ट्रॉन भारत में आईफोन बनाती है। विस्ट्रॉन का मैन्युफैक्चरिंग प्लांट का अधिग्रहण करने के बाद टाटा इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण सेवा (EMS) सेगमेंट की कंपनी बन जाएगी।
इस पूरे मामले की जानकारी रखने वाले सूत्रों ने कहा कि भारत में मोबाइल उपकरणों के लिए आपूर्ति ढांचा विकसित करना एक बड़ी पहल होगी। सरकार ने वित्त वर्ष 2026 में उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजना (PLI) के अंतिम वर्ष में मोबाइल उपकरणों में करीब 40 प्रतिशत मूल्य वर्द्धन करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है।
इस समय आईफोन वेंडरों के लिए मूल्य वर्द्धन लगभग 15 प्रतिशत है मगर सरकार इसे बढ़ाकर वित्त वर्ष 2026 तक 30 प्रतिशत करना चाहती है। ऐपल ने वैश्विक स्तर पर होने वाले कुल उत्पादन का करीब 7 प्रतिशत हिस्सा भारत में स्थानांतरित कर दिया है मगर कंपनी के वेंडर अपने वादे के अनुसार 2026 तक 25 प्रतिशत तक आईफोन यहां तैयार करना चाहते हैं। इनमें ज्यादातर आईफोन निर्यात किए जाएंगे।
ऐपल की आपूर्ति व्यवस्था पर फिलहाल चीन की कंपनियों का दबदबा है। चीन के साथ 2020 में सीमा पर झड़प होने के बाद चीन की कंपनियां भारत में आकर उत्पादन प्लांट नहीं लगा पा रही हैं।
सरकार की प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) नीति के अंतर्गत चीन की कंपनियों के लिए भारत में निवेश करने के लिए सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य है। चीन की कंपनियों को सीधे निवेश करने की इजाजत नहीं है। मगर अब तक सरकार से उन्हें अनुमति नहीं मिली है।
हालांकि सरकार ने अपनी इस नीति में थोड़ी ढील दी है।
कुछ महीने पहले इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना-प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने ऐपल को उन कंपनियों से बात करने के लिए कहा था जो भारत आने और यहां किसी स्थानीय कंपनी के साथ संयुक्त उद्यम लगाने के लिए राजी हैं। सरकार ने यह शर्त रखी थी कि संयुक्त उद्यम में बहुलांश हिस्सेदारी भारतीय कंपनी के पास होगी।
मंत्रालय ने ऐसी 12 कंपनियों के नाम जारी किए हैं जो अनुमति पाने के लिए आवेदन कर सकती हैं। इन कंपनियों में लक्सशेयर, बोसॉन, एवरी और सनी ओपोटेक शामिल हैं। हालांकि, चीन की दूसरी कंपनियों ने भारत में चीन के कुछ मोबाइल ब्रांडों को कारोबार करने में पेश आ रही चुनौतियों के बाद बहुत उत्साह नहीं दिखाया है।