भारतीय दूरसंचार इकाई के विलय के समय वोडाफोन पीएलसी के साथ किए गए मूल करार के तहत आदित्य बिड़ला समूह वोडाफोन इंडिया में अतिरिक्त 9.5 फीसदी हिस्सेदारी खरीद सकती है। बीते शुक्रवार को वोडाफोन आइडिया के निदेशक मंडल ने 25,000 करोड़ रुपये जुटाने की मंजूरी दी थी लेकिन वोडाफोन पीएलसी कंपनी में और पैसा निवेश करने को तैयार नहीं है।
वर्तमान में वोडाफोन आइडिया में वोडाफोन पीएलसी की 44.39 फीसदी और आदित्य बिड़ला समूह की 27.66 फीसदी हिस्सेदारी है। अपनी हिस्सेदारी को आदित्य बिड़ला समूह के बराबर करने के लिए वोडाफोन को करीब 8.39 फीसदी हिस्सेदारी संयुक्त उद्यम साझेदार को बेचनी पड़ेगी, जिससे दोनों कंपनियों के पास वोडा आइडिया में करीब 36-36 फीसदी हिस्सेदारी हो जाएगी। वोडाफोन पीएलसी ने पहले ही वोडा आइडिया में अपनी हिस्सेदारी को बट्टे खाते में डाल दिया है और अपने खाते में इसे शून्य कर दिया है।
इस बारे में संपर्क करने पर आदित्य बिड़ला समूह के प्रवक्ता ने कोई टिप्पणी करने से मना कर दिया। वोडाफोन पीएलसी के प्रवक्ता ने कहा कि कंपनी वोडा आइडिया में कोई पैसा नहीं लगाएगी मगर शेयर बिक्री के बारे में कोई जानकारी नहीं दी। मार्च 2017 की विलय योजना के अनुसार आदित्य बिड़ला समूह के पास वोडाफोन से एकीकृत इकाई में अतिरिक्त 9.5 फीसदी तक हिस्सेदारी सहमत मूल्य के आधार पर खरीदने का अधिकार है। यह रकम एकीकृत इकाई के 100 फीसदी यानी 946 अरब के इक्विटी मूल्य के समतुल्य है। अधिग्रहण मूल्य 130 रुपये प्रति शेयर है।
दोनों साझेदारों को उम्मीद नहीं थी कि वोडा आइडिया का शेयर भाव इतना ज्यादा घट जाएगा। पिछले तीन साल में रिलायंस जियो से कड़ी प्रतिस्पर्धा और उच्चतम न्यायालय के मुताबिक सरकार को 58,250 करोड़ रुपये अदा करने के आदेश से कंपनी के शेयर पर प्रतिकूल असर पड़ा है। शुक्रवार को वोडा आइडिया का शेयर 12 रुपये के भाव पर बंद हुआ जिससे इसका कुल बाजार मूल्य करीब 34,511 करोड़ रुपये रह गया है।
विलय करार के अनुसार वोडाफोन आइडिया में दोनों साझेदारों की हिस्सेदारी बराबर होने तक वोडाफोन के पास मौजूद अतिरिक्त शेयर से जुड़े अधिकार सीमित होंगे और वोट का अधिकार शेयरधारिता करार की शर्तों के तहत संयुक्त रूप से किया जाएगा।दोनों पक्षों ने पहले तीन साल तक यथास्थिति बनाए रखने पर सहमति जताई थी। इसके तहत कोई भी पक्ष किसी तीसरे पक्ष के साथ शेयर की बिक्री या खरीद नहीं कर सकती है। विलय योजना के अनुसार अगर दोनों कंपनियों की शेयरधारिता पहले तीन साल तक बराबर नहीं होती है तो आदित्य बिड़ला समूह को वोडाफोन को सूचित करना होगा कि वह और कितनी हिस्सेदारी खरीदना चाहती है। आदित्य बिड़ला समूह को बाजार भाव पर एक साल के अंदर खरीद प्रक्रिया पूरी करनी होगी। सौदे के तीन साल पूरे होने पर यथास्थिति का प्रावधान खत्म हो जाएगा। सौदे के पांचवें साल में अगर दोनों कंपनियों की हिस्सेदारी बराबर नहीं होती है तो वोडाफोन अपनी हिस्सेदारी आदित्य बिड़ला समूह के बराबर करने के लिए शेयर बेचने के लिए स्वतंंत्र होगी।