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रबर उत्पादन में होगा बदलाव

Last Updated- December 05, 2022 | 11:02 PM IST

भारत रबर उत्पादन में अनुवांशिक बदलाव लाने की योजना बना रहा है। इस बदलाव के लिए नए किस्म के रबर का क्लोन भी तैयार कर लिया गया है।


वर्ष 2009 में आरंभ होने वाले रबर के मौसम में इस अनुवांशिक बदलाव वाले पौधों का रोपण किया जाएगा। इस बात की जानकारी कोट्टायम स्थित रबर रिसर्च इंस्टीटयूट ऑफ इंडिया (आरआरआईआई) के निदेशक जेम्स जैकब ने दी।


उन्होंने बताया कि इस प्रकार के रबर के पौधों के क्लोन को तैयार कर लिया गया है और इसके रोपण के लिए अब सिर्फ जैव तकनीकी विभाग की हरी झंडी का इंतजार है। जैकब ने बताया कि इस प्रकार के पौधों का प्रयोग मैदान में करने के लिए नियामक से इजाजत लेनी पड़ती है और यह एक लंबी प्रक्रिया है।


हालांकि रबर इंस्टीटयूट ऑफ इंडिया ने इस काम को शुरू करने के लिए वर्ष 2009 के मई महीने का लक्ष्य निर्धारित किया है।उन्होंने बताया कि भारत पहला ऐसा देश होगा जिसने ट्रांसजेनिक रबर को उगाने तक की तैयारी कर ली है। जैकब ने बताया कि इस प्रकार से अनुवंशिक बदलाव वाले पौधों से रबर उत्पादन पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसके बारे में तो इसकी खेती शुरू होने के बाद ही बताया जा सकता है।


उन्होंने बताया कि इस  प्रकार के पौधों को जमीन से साथ समायोजित होने में पांच से छह साल का समय लग जाता है। ट्रांसजेनिक पौधों को कृत्रिम तरीके से नए जीन के साथ मिलाया जाता है और इससे एक अलग किस्म का पौधा बनता है। जैव-तकनीक का दावा है कि इस प्रकार की प्रक्रिया से पौधों को बीमारियों से लड़ने की क्षमता अधिक हो जाती है और उनकी उत्पादन क्षमता में भी बढ़ोतरी हो जाती है।


हालांकि इस प्रक्रिया के आलोचकों का कहना है कि ये पौधें मिट्टी व पर्यावरण के साथ किस प्रकार खुद को समायोजित करते हैं, अभी से यह कहना मुश्किल होगा।  रबर रिसर्च के मामले में देश की प्रधान रिसर्च इंस्टीटयूट आरआरआईआई को आरआरआईआई -105 नामक रबर क्लोन तैयार करने का श्रेय मिल चुका है। 


आरआरआईआई-105 किस्म की शुरुआत 1980 में की गयी थी और नेचुरल रबर उत्पादन के मामले में इस किस्म के पेड़ सबसे आगे हैं। इस किस्म ने भारत के रबर उत्पादन में बढ़ोतरी में अपना खासा योगदान दिया है। भारत में प्राकृतिक रबर का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 1800 किलोग्राम होता है।

First Published - April 22, 2008 | 11:48 PM IST

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