भारत के सबसे बड़े परिधान केंद्र तिरुपुर पर महामारी की मार जारी है। आने वाले सीजन के लिए यहां का करीब 10 प्रतिशत ऑर्डर बांग्लादेश, वियतनाम, कंबोडिया और चीन के हिस्से चला गया है।
कोरोना की पहली लहर के दौरान इस सेक्टर के निर्यात में करीब 9 प्रतिशत की गिरावट आई थी। उद्योग के विशेषज्ञों का कहना है कि इस बार असर कहीं और ज्यादा है। कोविड मामलों में देश के प्रमुख केंद्रों में से एक होने के कारण राज्य के टेक्सटाइल बेल्ट की विनिर्माण इकाइयां दूसरी लहर में करीब छह हफ्ते तक बंद रहीं।
तिरुपुर एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के मुताबिक औद्योगिक इलाके में पिछले दो महीनों के दौरान करीब 10,000 करोड़ रुपये के उत्पादन का नुकसान हुआ है, क्योंकि विनिर्माण काम रुक गया था। तिरुपुर परिधान उद्योग की निर्यात से कमाई 2019-20 के 27,500 करोड़ रुपये के ऐतिहासिक उच्च स्तर से गिरकर 2020-21 में 25,000 करोड़ रुपये पर आ गई।
तिरुपुर एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष राजा एम षणमुगम ने कहा, ‘हम एक या दो सीजन के लिए सैंपल नहीं बना सकते। ये ऑर्डर और लॉकडाउन के कारण रद्द हुए ऑर्डर बांग्लादेश, वियतनाम और कंबोडिया को चले गए हैं। दूसरी लहर के दौरान हमारे प्रतिस्पर्धियों के यहां कामकाज चलता रहा, ऐसे में यूरोप के देशों और अमेरिका ने स्वाभाविक रूप से उन देशों से माल खरीदने का विकल्प चुना।’
एक्सपोर्ट प्रमोशन ब्यूरो आफ बांग्लादेश के उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक इस साल जून में समाप्त वित्त वर्ष (जुलाई, 2020 से जून, 2021) में देश के परिधान निर्यात में 13 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। तमिलनाडु स्पिनिंग मिल्स एसोसिएशन (टीएएसएमए) के सलाहकार के वेंकटचलम ने कहा, ‘मेरा मानना है कि पूरे तमिलनाडु को देखें तो असर मामूली रहा है क्योंकि कपड़ा उद्योग की बंदी केवल सात दिन थी। तिरुपुर परिधान उद्योग की स्थिति अलग हो सकती है क्योंकि ज्यादातर कोविड के मामले वहीं से आए। बांग्लादेश में ज्यादा देश दिलचस्पी दिखा रहे हैं क्योंकि उनकी कीमतें और कर का ढांचा बेहतर है।’ विशेषज्ञों का कहना है कि यूरोप के देशों द्वारा बांग्लादेश का विकल्प चुनने की एक बड़ी वजह यह है कि भारत की तुलना में बांग्लादेश में कीमतों में 30 प्रतिशत का अंतर है।
सरकार के अनुमानों के मुताबिक तिरुपुर में करीब 10,000 परिधान विनिर्माण इकाइयां हैं, जहां 6 लाख लोगों को रोजगार मिला हआ है। टेक्सटाइल क्लस्टर का निर्यात बढ़कर 2,500 करोड़ रुपये प्रतिमाह हो गया है, जबकि अगर इसमें घरेलू बिक्री को भी शामिल कर लिया जाए तो कारोबार 5,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का है। दूसरी लहर के दौरान परिधान इकाइयों के सामने बड़ी चुनौती मजदूरों की कमी रही, क्योंकि उनके 20 प्रतिशत कर्मचारी लॉकडाउन के बाद वापस नहीं लौटे, क्योंकि उन्हें कोरोना के मामले बढऩे को लेकर डर था। उद्योग की हालत को इनपुट लागत ने और खराब किया। कपास की कीमतें घरेलू बाजार में अक्टूबर, 2020 के 35,000 रुपये प्रति कैंडी से बढ़कर अब 55,000 रुपये प्रति कैंडी पहुंच गई हैं।