दुग्ध उत्पादों के स्टॉक से संकट

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 15, 2022 | 4:06 AM IST

बिना बिके स्किम्ड मिल्क पाउडर और अन्य दुग्ध उत्पादों के भारी स्टॉक से परेशान दुग्ध सहकारियों ने निर्यात प्रोत्साहनों के लिए केंद्र सरकार से संपर्क  साधा है। उन्होंने इसके अलावा आंगनवाडिय़ों, स्कूलों और कोविड के मरीजों के लिए अस्पतालों में दूध बांटने की योजना की भी मांग की है जिससे कि उन्हें अतिरिक्त स्टॉक की समस्या से उबारा जा सके।  
सहकारी ने कहा कि उन्हें अगले कुछ महीने में शुरू होने जा रहे दूध के अतिरिक्त उत्पादन के सीजन में अपनी दूध खरीद कीमत में कटौती करने पर मजबूर होना पड़ सकता है।
दुग्ध सहकारियों ने अपने निजी समकक्षों के उलट खरीद कीमत को बरकरार रखा है जबकि लॉकडाउन में दूध की मांग में तीव्र गिरावट आई। उनका दावा है कि मांग घटने से उनके मुनाफे पर असर पड़ा है।
कोविड-19 के कारण लगाए गए देशबंदी में मुख्य तौर पर होटलों, रेस्तरां, मिठाई की दुकानों से दूध और दुग्ध उत्पादों की मांग में भारी गिरावट आई थी क्योंकि बीमारी के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए इन्हें बंद रखा गया था।
बहरहाल, पिछले कुछ हफ्तों में सरकार ने बहुत से प्रतिबंधों में छूट दी है लेकिन अधिकारियों का मानना है कि अभी काफी कुछ सामान्य होना बाकी है।  
उद्योग से जुड़े सूत्रों के मुताबिक भारत के सहकारी दुग्ध संघों के पास फिलहाल करीब 1,70,000 टन स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी) है जो कि पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले करीब 62 फीसदी अधिक है। इसके अलावा उनके पास 1,04,000 टन मक्खन भी है जो पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले करीब 40.50 फीसदी अधिक है और 22,000 टन घी है जो पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले 47 फीसदी अधिक है।
इनके पास इतना अधिक स्टॉक होने की वजह यह है कि दुग्ध संघों को कोविड-19 बंदी के तीन महीने के दौरान किसानों से अतिरिक्त दूध खरीदना पड़ा था। सहकारियों ने किसानों से अतिरिक्त दूध की खरीद इसलिए की कि किसानों ने निजी डेयरियों को दूध नहीं बेचा, क्योंकि उन्होंने मांग घटने के कारण खरीद की दर घटा दी थी।
देश में दूध का कुल उत्पादन 18 करोड़ टन अनुमानित है जिसमें से 48 फीसदी का उपभोग या तो उत्पादक स्तर पर हो जाता है या उसे ग्रामीण इलाकों में गैर-उत्पादकों को बेच दिया जाता है। बाकी बचा हुआ 52 फीसदी दूध शहरी क्षेत्र के उपभोक्ताओं को बिक्री के लिए विपणन योग्य होता है। इसमें से 40 फीसदी दूध की बिक्री संगठित क्षेत्र और बाकी की बिक्री असंगठित क्षेत्र के माध्यम से होती है। असंगठित क्षेत्र में निजी क्षेत्र की तुलना में सहरकारियों की हिस्सेदारी घट रही है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘लॉकडाउन के दौरान दूध की मांग में कमी आने के कारण दूधवाला जैसे असंगठित क्षेत्र के विक्रेताओं और निजी क्षेत्र के छोटे परिचालकों ने भी अपने दूध खरीद की दर घटा दी थी। ऐसे में जहां कहीं सहकारी मजबूत स्थिति में थी वह किसानों को मदद के लिए खड़ी हुई, लिहाजा इनके पास अतिरिक्त स्टॉक जमा हो गया।’

First Published : July 29, 2020 | 11:38 PM IST