प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
भारतीय उर्वरक संघ (एफएआई) के नवनियुक्त अध्यक्ष तथा दीपक फर्टिलाइजर्स ऐंड पेट्रोकेमिकल्स कॉरपोरेशन के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक शैलेश सी मेहता ने कहा कि उर्वरक उद्योग को इस क्षेत्र में अधिक निवेश आकर्षित करने के लिए सब्सिडी से संबंधित नीतियों पर स्पष्टता की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि एक दशक से अधिक समय से पीऐंडके (फॉस्फोरस और पोटाश) क्षेत्र पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (एनबीएस) व्यवस्था के तहत सही मायने में काम कर रहा है। केंद्र सरकार तो यूरिया को भी एनबीएस व्यवस्था के तहत लाने की योजना बना रही है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में यूरिया को एनबीएस के अंतर्गत लाने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई है, बल्कि इसके बजाय पीऐंडके के खुदरा मूल्य पर मौन रखा गया है।
मेहता ने कहा कि सब्सिडी समर्थन के पीछे के फार्मूले या आधार या तर्क पर स्पष्टता की कमी और इसके वास्तविक तंत्र पर स्पष्टता की कमी ने उद्योग द्वारा निर्णय लेने को प्रभावित किया है।
मेहता ने बताया कि ये अनिश्चितताएं उद्योग को कोई भी दीर्घकालिक प्रतिबद्धता या निवेश निर्णय लेने से रोकती हैं जो उर्वरकों की आपूर्ति में दीर्घकालिक सुधार सुनिश्चित कर सकती हैं। उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र निवेश आकर्षित करता रहे, इसके लिए सरकार को यूरिया पर सब्सिडी धीरे-धीरे कम करने तथा इसे अधिक बाजारोन्मुख बनाने की जरूरत है। खुदरा मूल्य निर्धारण में अनियमितता पर मेहता ने कहा कि भारत में एक किलो साधारण नमक की कीमत करीब 27 रुपये है। लेकिन यूरिया सिर्फ 5.5 रुपये किलो बिकता है। किसी को यह समझना चाहिए कि अमोनिया आधारित यूरिया संयंत्र स्थापित करने के लिए 10,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च करने के बाद रिटर्न निराशाजनक है।
हाल में उद्योग के एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा नैनो उर्वरकों की बिक्री में उत्साहजनक वृद्धि न होने के बारे में दिए गए बयान पर मेहता ने कहा कि एक अवधारणा के रूप में नैनो बहुत दिलचस्प है। लेकिन जमीनी स्तर पर इसकी प्रभावशीलता को साबित करने के लिए कुछ और समय की आवश्यकता होगी।
प्रसिद्ध कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी के एक पेपर का हवाला देते हुए मेहता ने कहा कि पिछले तीन वर्षों में उर्वरक सब्सिडी पर लगभग 22 से 25 अरब डॉलर खर्च करने के बावजूद उत्पादकता और मृदा स्वास्थ्य दोनों के संदर्भ में परिणाम अभी भी बहुत अच्छे नहीं है।