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कहीं व्यापार को न हो नुकसान…

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 4:35 PM IST


वित्तीय बिल

2008 में कुछ ऐसे प्रस्तावों को शामिल किया गया है, जिसके तहत सीमा शुल्क कानून 1962 के प्रावधानों को संशोधित किया जाना है। दरअसल, ऐसा करने के पीछे सरकार की मंशा है कि अधिकारियों के हाथों में ज्यादा अधिकार आए और नियम के उल्लंघन पर कठोर दंड का प्रावधान हो।


 


सरकार की योजना है कि सीमा शुल्क कानून

1962 की धारा 108 में कुछ संशोधन किया जाए। दरअसल, इसके तहत सरकार सीमा शुल्क के राजपत्रित अधिकारी को विशेष अधिकार देना चाहती है। इस कानून के तहत अधिकारी किसी भी व्यक्ति, जिसकी साक्ष्य के तौर पर या फिर कोई दस्तावेज के लिए जांच के दौरान मौजूदगी चाहते हैं, उसे सम्मन जारी कर सकते हैं।

 


सरकार चाहती है कि सीमा शुल्क कानून

1965 के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन करने पर 10,000 रुपये से 100,000 रुपये का जुर्माना हो। हालांकि जुर्माना राशि के बारे में खास स्पष्टीकरण नहीं किया गया है। जुर्माने की यह राशि सीमा शुल्क कानून के खास प्रावधान के उल्लंघन या फिर किसी नियम के पालन नहीं करने पर भरना पड़ सकता है। इसी तरह, कोई भी नियम या कानून के उल्लंघन पर 200-500 रुपये से लेकर 50,000 रुपये तक अधिकतम जुर्माना देना पड़ सकता है।

 


अधिकारियों के हाथों में ज्यादा अधिकार देने का मतलब है

, व्यापार में ज्यादा बाधा पहुंचना। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है, क्योंकि पहले भी अधिकरियों को ऐसे अधिकार मिले थे, जिसका गलत इस्तेमाल किया गया था। गौरतलब है कि आयातित वस्तुओं के मूल्यांकन के दौरान सीमा शुल्क अधिकारी ने टाटा आयरन ऐंड स्टील कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों को सम्मन जारी किया था।

 


उड़ीसा उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में (995 (75) ईएलटी 502) कहा कि तस्करी का सामान (स्मगल्ड गुड्स) के तहत आने वाली वस्तुओं को सीमा शुल्क कानून के तहत जब्त किया जा सकता है। हालांकि इस मामले की सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने पाया कि टाटा के जिस अधिकारी को सम्मन भेजा गया था, उसकी जांच में कोई नतीजा नहीं निकला।


 


 ऐसे में इस मामले को खरिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि टाटा किसी भी तरह की तस्करी गतिविधियों में नहीं जुड़ी है। दरअसल, ऐसा नोटिस कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों को परेशान करने के मकसद से जारी किया गया था।


 


उल्लेखनीय है कि

13 जुलाई 2006 से पहले किसी भी राजपत्रित सीमा शुल्क अधिकारी को सम्म्मन जारी करने का अधिकार था। हालांकि बाद में इसमें संशोधन किया गया और 20 फरवरी 2008 तक किसी भी अधिकारी को सम्मन जारी करने का अधिकार देने के लिए नोटिस नहीं जारी किया गया।

 


हालांकि नोटिफिकेशन नंबर 82008-कस्टम एक्ट के तहत सभी राजपत्रित अधिकारियों को सम्मन जारी करने का अधिकार दे दिया गया। अब वित्तीय बिल में आयकर की धारा 108 में संशोधन के जरिए इस नियम को कानूनी रूप देने की योजना बनाई जा रही है।


 


अदालत ने अपने एक फैसले में कहा है कि किसी भी व्यक्ति को सम्मन जारी करते समय यह बताना जरूरी है कि जांच अधिकारी उसके स्टेटमेंट को रिकार्ड करना चाहते हैं या फिर उनके विरूद्ध कोई अन्य स्टेटमेंट जारी करना चाहते हैं। सम्मन पाने वाला व्यक्ति वकील से सलाह ले सकता है

, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि जब स्टेटमेंट रिकार्ड की जा रही हो, तो वकील भी वहां मौजूद रहे। दरअसल, सम्मन जारी करने मात्र से ही वह व्यक्ति आरोपी नहीं हो जाता।

 


सीमा शुल्क कानून की धारा 108 के तहत किसी भी व्यक्ति को सम्मन जारी करने का अर्थ यह नहीं है कि वह खुद को दोषी मान ले। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि सम्मन पाने वाला व्यक्ति पूरे मामले की गहनता से अध्ययन करे और सवाल पूछने पर अपने को निर्दोष साबित करने वाले बयान दे।


 


इस परिस्थिति में भारतीय दंड संहिता की धारा 193 लागू नहीं होती है। चुप रहना कोई अपराध नहीं है औैर न ही इसे जांच प्रक्रिया में बाधा मानी जा सकती है। इस कानून के बारे में जागरूकता ही सम्मन जारी करने और जांच में मदद पहुंचा सकती है।


 

First Published : March 17, 2008 | 2:42 PM IST