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Editorial: सरकारी बैंकों के शेयरों में तेजी का लाभ उठाने का मौका

एसबीआई का बाजार पूंजीकरण 5.3 लाख करोड़ रुपये है। किसी और पीएसबी का बाजार पूंजीकरण 1 लाख करोड़ रुपये नहीं है।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- July 14, 2023 | 11:49 PM IST

बैंक ऑफ बड़ौदा (Bank Of Baroda) 19 जून को 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक बाजार पूंजीकरण हासिल करने वाला सरकार नियंत्रित दूसरा बैंक बन गया।

पहला भारतीय स्टेट बैंक (SBI) है। बाजार पूंजीकरण किसी कंपनी के बाजार में कारोबार के लिए उपलब्ध सभी शेयरों (आउटस्टैंडिंग शेयर) का मूल्य होता है और यह संबंधित कंपनी की हैसियत दर्शाता है।

पिछले सप्ताह शुक्रवार को बीओबी का शेयर 208.90 रुपये पर पहुंच गया और इसका बाजार पूंजीकरण 1.08 लाख करोड़ रुपये हो गया। एसबीआई का बाजार पूंजीकरण 5.3 लाख करोड़ रुपये है। किसी और पीएसबी का बाजार पूंजीकरण 1 लाख करोड़ रुपये नहीं है।

पीएसबी का कुल बाजार पूंजीकरण 10.47 लाख करोड़ रुपये

पिछले सप्ताह शुक्रवार को 12 पीएसबी में तीन पीएसबी- पंजाब नैशनल बैंक (66,529 करोड़ रुपये), केनरा बैंक (60,510 करोड़ रुपये) और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (54,685 करोड़ रुपये)- का बाजार पूंजीकरण कम से कम 50,000 करोड़ रुपये था।

पीएसबी का कुल बाजार पूंजीकरण 10.47 लाख करोड़ रुपये हैं। यह निजी क्षेत्र के बैंकों के कुल बाजार पूंजीकरण 26.55 लाख करोड़ रुपये से काफी कम है। अकेले एचडीएफसी बैंक (अब एचडीएफसी का इसमें विलय हो गया है) का बाजार पूंजीकरण 9.29 लाख करोड़ रुपये है।

पीएसबी बैंकों का प्रदर्शन कभी इतना अच्छा नहीं रहा है। गौर करने लायक बात यह है कि पूरा बैंकिंग क्षेत्र मजबूत हो रहा है। 31 मार्च, 2022 से पीएसबी का बाजार पूंजीकरण 43.7 प्रतिशत बढ़ा है। यह 7.29 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर अब 10.47 लाख करोड़ रुपये हो गया है।

इसी अवधि में निजी क्षेत्र के बैंकों का बाजार पूंजीकरण तुलनात्मक रूप से लगभग आधा यानी 21.7 प्रतिशत बढ़कर 26.55 लाख करोड़ रुपये हो गया है। इसी अवधि के दौरान मानक सूचकांकों जैसे सेंसेक्स और निफ्टी में क्रमशः 11.46 प्रतिशत और 10.69 प्रतिशत की तेजी आई है।

मगर निफ्टी बैंक सूचकांक महज 23.5 प्रतिशत बढ़ा है। निफ्टी पीएसयू बैंक में तो इससे भी शानदार 63.6 प्रतिशत तेजी आई है। निफ्टी प्राइवेट बैंक इंडेक्स की तुलना में यह बढ़ोतरी ढाई गुना अधिक है।

यह उत्साह बेवजह नहीं है। वित्त वर्ष 2023 में पीएसबी का संयुक्त शुद्ध मुनाफा 1.05 लाख करोड़ रुपये रहा है। पीएसबी की सकल एवं शुद्ध गैर-निष्पादित आस्तियों में भी प्रतिशत और पूर्ण स्तर दोनों लिहाज से कमी आई है।

तो क्या पीएसबी में बहुलांश हिस्सेधारक होने के नाते सरकार के लिए यह मुनाफा कमाने का समय नहीं है। कम से कम पांच पीएसबी में सरकार की हिस्सेदारी 90 प्रतिशत से अधिक है। एसबीआई में सरकार की हिस्सेदारी 57.49 प्रतिशत और बीओबी में 63.97 प्रतिशत है।

सरकार ने 2010-2019 के दरम्यान पीएसबी में 3.12 लाख करोड़ रुपये का पूंजी निवेश किया है। तब से अतिरिक्त 22,000 करोड़ रुपये भी पीएसबी को दिए गए हैं। आखिर, इतने भारी भरकम निवेश पर सरकार को क्या हासिल हुआ है? वर्ष 2019-20 की आर्थिक समीक्षा में पीएसबी में सरकार के निवेश और इन पर प्राप्त प्रतिफल का विश्लेषण किया गया है।

समीक्षा के अनुसार सरकार ने पीएसबी में करदाताओं की कम से कम 4.3 लाख करोड़ रुपये की रकम झोंकी है। 2019 में पीएसबी में डाले गए प्रत्येक एक रुपये पर औसतन 23 पैसे नुकसान हुआ है। इसके उलट नए निजी बैंकों में निवेश किए गए प्रत्येक एक रुपये पर 9.6 पैसे का लाभ प्राप्त हुआ है।

इस तरह, पीएसबी में किए गए प्रत्येक एक रुपये के निवेश पर सांकेतिक नुकसान-मुनाफा कमाने का अवसर गंवाने का नुकसान भी शामिल- 32.6 पैसे (23 पैसे और 9.6 पैसे) रहा है। इस तरह, 4.3 लाख करोड़ रुपये निवेश पर नुकसान 1.41 लाख करोड़ रुपये बैठता है।

अब हालात बदल गए हैं। पीएसबी के प्रदर्शन से बाजार उत्साहित दिख रहा है। क्या सरकार को इस बात का उचित लाभ नहीं उठाना चाहिए?

यह काम इतना सहज नहीं है। मैं पीएसबी के निजीकरण की बात नहीं कर रहा है। अगर सरकार इन बैंकों में कम से कम 51 प्रतिशत भी हिस्सेदारी रखती है तो ये संस्थान अपना प्रदर्शन सुधार सकते हैं और खरीदार तभी आगे आएंगे जब सरकार प्रशासनिक नियंत्रण छोड़ेगी।

पीएसबी सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के दोहरे नियंत्रण में हैं। आरबीआई नियामक है मगर सभी फैसले सरकार ही करती है। दूसरे शब्दों में कहें तो नियमन मालिकाना नियंत्रण से स्वतंत्र नहीं है। यह समस्या की प्रमुख वजह है। 1991 में नरसिम्हन समिति ने इस दोहरे नियंत्रण को ‘वायरस’ करार दिया और इसके लिए तत्काल उपाय करने की सिफारिश की थी। मगर तब से कुछ नहीं बदला है।

निवेशकों में उत्साह भरने के लिए सरकार को निदेशकों की नियुक्ति एवं उनके वेतन-भत्ते तय करने के अधिकार अपने पास नहीं रखना चाहिए और यह संबंधित बैंकों के प्रमुखों पर छोड़ देना चाहिए। शेयरधारकों के निदेशकों को छोड़कर बाकी सभी निदेशकों की नियुक्ति बैंकिंग कंपनी (अधिग्रहण एवं उपक्रम स्थानांतरण) अधिनियम, 1970 एवं 1980 की धारा 9 के तहत सरकार करती है।

इस धारा में कार्याधिकारियों के वेतन-भत्ते का भी जिक्र है। सरकार को इस अधिनियम में संशोधन करने की भी जरूरत नहीं है, वह बस एक अधिसूचना जारी कर इसमें बदलाव ला सकती है। एक बार यह होने पर पीएसबी बैंक कभी पीछे मुड़कर नहीं देखेंगे।

बैंकों में पूंजी डालना भारत के लिए नया नहीं है मगर इन पर प्रतिफल नहीं हासिल करना नई बात जरूर है। दूसरे बाजारों में क्या होता है? 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद अमेरिका के वित्त मंत्रालय ने संकटग्रस्त परिसंपत्ति राहत कार्यक्रम (टीएआरपी) शुरू किया था। इस कार्यक्रम के अंतर्गत करीब 634 अरब डॉलर खर्च किए थे।

एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका ने टीआरएपी से अब तक 100 अरब डॉलर का प्रतिफल अर्जित किया है। भारत सरकार भी चाहे तो पीएसबी में पूंजी के रूप में डाली गई रकम पर प्रतिफल अर्जित कर सकती है।
(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक में वरिष्ठ सलाहकार हैं।)

First Published : July 14, 2023 | 11:34 PM IST