चीन की महत्त्वाकांक्षी बेल्ट और रोड पहल (BRI) को इस महीने एक दशक पूरा हो गया है। राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने पूरी दुनिया को अपने दायरे में लेने वाली इस परियोजना में सौजन्यता का तत्त्व डालने की कोशिश की है।
ऐसा इसलिए कि इसे दुनिया भर में चीन की शक्ति के प्रदर्शन के रूप में देखा जाता है। शुरुआत में शी का दृष्टिकोण रेलवे, ईंधन पाइपलाइन, राजमार्गों और सीमाओं पर अबाध आवागमन का एक विशालकाय नेटवर्क तैयार करने का था। यह आवागमन जमीन और समुद्री दोनों मार्गों पर होना था ताकि पश्चिमी और पूर्वी एशिया में बुनियादी ढांचागत संचार स्थापित हो पाता और रेनमिनबी के अंतरराष्ट्रीय इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा सकता।
बीआरआई ने उल्लेखनीय प्रगति की है। विदेश संबंध परिषद के एक अध्ययन के मुताबिक अब तक वैश्विक आबादी में दोतिहाई और वैश्विक उत्पादन में 40 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले 147 देशों ने इसकी परियोजनाओं पर हस्ताक्षर किए हैं या ऐसा करने में रुचि दिखाई है।
अनुमान है कि चीन ने बीआरई पर एक लाख करोड़ डॉलर की राशि खर्च की है। इसमें 62 अरब डॉलर की लागत वाला चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा भी शामिल है जिसने भारत को चिंतित किया। इसका नकारात्मक पहलू 2020 में सामने आया जब कई देशों का सामना ऋण संकट से हुआ।
उदाहरण के लिए जब बीआरई से जुड़े आयात के कारण पाकिस्तान बुरी तरह बजट घाटे का शिकार हो गया तो उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से राहत पैकेज मांगना पड़ा। घाना और जांबिया को बीआरआई से संबंधित ऋण के बोझ के कारण सॉवरिन डिफॉल्ट का सामना करना पड़ा।
मलेशिया ने बढ़े हुए आर्थिक बोझ का हवाला देकर 22 अरब डॉलर लागत वाली बीआरआई परियोजनाओं को निरस्त कर दिया। बीआरआई के अनुबंधों की प्रकृति कुछ ऐसी है कि उनमें ऋण तो बाजार दर के करीब दरों पर दिया जाता है, वहीं ऋण निरस्त करने या ऋण के पुनर्गठन के प्रावधान शायद ही शामिल किए जाते हैं।
यह एक प्रमुख समस्या है। श्रीलंका का हालिया मामला बीआरआई की फंडिंग हासिल करने वालों पर पड़े दबाव का उदाहरण है। वहां चीन शुरुआत में किसी तरह की कटौती का इच्छुक नहीं नजर आ रहा था और आईएमएफ से उसे राहत पैकेज मिलने में देरी हुई।
आलोचकों ने भी इस तथ्य की ओर इशारा किया है कि बीआरआई ने ऊर्जा से संबंधित जो भी व्यय किया है उसका आधा हिस्सा गैर नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में हुआ है। शी चिनफिंग ने 18 अक्टूबर को बीआरआई के मंच पर जो भाषण दिया उससे यही संकेत निकलता है कि उन्हें इन नकारात्मक अवधारणाओं की समझ है।
उन्होंने ‘शांति और सहयोग, खुलेपन और समावेशन, साझा सबक और साझा लाभ की रेशम मार्ग की भावना’ का भी उल्लेख किया और कहा कि यह बीआरआई के सहयोग की शक्ति का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
बीआरआई के अंशधारकों और पश्चिमी शक्तियों को लक्षित एक संदेश में उन्होंने कहा, ‘दूसरों के विकास को खतरा मानने या आर्थिक परस्पर निर्भरता को खतरा समझने से किसी देश की स्थिति बेहतर नहीं होगी या उसकी विकास की गति तेज नहीं होगी।’
उन्होंने यह भी कहा कि चीन ‘एकपक्षीय प्रतिबंधों, आर्थिक दबाव और आपूर्ति श्रृंखला की बाधाओं’ के विरुद्ध है। पूरे एजेंडे का नए सिरे से आकलन करते हुए शी ने बीआरआई के निर्माण को लेकर आठ नए कदमों की घोषणा की जिनमें अन्य चीजों के अलावा एक यूरेशियन लॉजिटिस्क कॉरिडोर, 350 अरब रेनमिनबी की वित्तीय सहायता की गुंजाइश और हरित ऊर्जा, आर्टिफिशल इंटेलिजेंस और पर्यटन को लेकर सहयोग की बात कही।
बीआरआई का एक सचिवालय स्थापित करने की बात भी कही गई। यह पुनर्गठन और विस्तार ऐसे समय पर किया जा रहा है जब अमेरिका और यूरोपीय संघ ने बीआरई का प्रतिस्पर्धी संस्करण पेश करने की बात की है। जी7 देशों ने 2021 में बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड इनीशिएटिव (बी3डब्ल्यू) की घोषणा की थी और इस महीने यूरोपीय संघ ने ग्लोबल गेटवे प्रोग्राम (जीजीपी) की घोषणा की।
बी3डब्ल्यू का नाम बदलकर पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर ऐंड इन्वेस्टमेंट कर दिया गया है परंतु इसकी भी सीमाएं हैं। इसने अब तक केवल 60 लाख डॉलर की राशि व्यय की है। जीजीपी के सदस्य देशों में कई मतभेद हैं। उनमें से कई देश बीआरआई से जुड़ी पहलों में भी शामिल हैं।
भारत के लिए नई दिल्ली में आयोजित जी20 शिखर बैठक में घोषित भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप (आईएमईसी) कॉरिडोर को पश्चिम एशिया में बीआरआई प्रभाव का संभावित प्रतिकार माना जा रहा था। अब इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध के बीच आईएमईसी भी निकट भविष्य में गति पकड़ता नहीं दिख रहा है। ऐसे में चीन के नए रूप और विस्तारित बीआरआई का मुकाबला करना भारत के लिए एक नई भू-राजनीतिक परीक्षा होगा।