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कंटेनर किल्लत, वाहनों की हवाई ढुलाई

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 10:01 AM IST

देश की सबसे बड़ी कार विनिर्माताओं में शुमार एक कंपनी दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से अपने चेन्नई संयंत्र में कच्चे माल और पुर्जों की हवाई जहाज से ढुलाई के लिए पिछले दो से तीन महीने के दौरान तीन उड़ानें किराए पर ले चुकी है क्योंकि भारत सेआवागमन के लिए कंटेनरों की उपलब्धता नहीं होने की वजह से समुद्री यातायात लगातार चुनौती बना हुआ है।
कंपनी के एक अधिकारी ने पहचान उजागर न करने के अनुरोध पर बताया कि तीन महीने के दौरान 150 टन से अधिक कच्चा माल और सामग्री हवाई जहाज द्वारा लाई गई है जो वैसे समुद्र के जरिये आया करती थी।
निकट भविष्य में कंटेनरों की कमी की दिक्कत में राहत नहीं मिलने की आशंका को ध्यान में रखते हुए उनकी कंपनी आने वाले महीनों में किराए पर कुछेक और हवाई यात्राओं की उम्मीद कर रही है।
अधिकारी ने कहा कि यहां हमारे उत्पादन पर कोई असर न पड़े, इसके लिए हवाई ढुलाई के अलावा हमारे पर कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा कि लॉजिस्टिक लागत में तकरीबन आठ से 10 गुना इजाफा हो चुका है। जहाज सेवा की सारणी के संबंध में अनिश्चितता के मद्देनजर कंपनी पर स्टॉक के स्तर में इजाफा करने का भी दबाव था। उनकी कंपनी और उसके आपूर्तिकर्ता हर महीने 20 जहाजों के जरिये तकरीबन 400 से 500 कंटेनरों का आयात किया करते थे और अब केवल आधे जहाजों का ही पचिालन किया जा रहा है, जबकि कंपनियों की ओर से मांग बढ़ चुकी है। खेपों का समय पहले करीब दो सप्ताह हुआ करता था और अब यह बढ़कर करीब 30 से 40 दिनों का हो गया है।
अपोलो टायर्स के अध्यक्ष (एशिया प्रशांत, मध्य पूर्व और अफ्रीका) सतीश शर्मा ने कहा कि कंटेनर की कमी से कंपनी की निर्यात मात्रा पर करीब 10 प्रतिशत असर पड़ा है। उन्होंने कहा कि ढुलाई की दरें बढ़ चुकी हैं और इस कमी की शुरुआत से पहले जिस स्तर पर हम थे, उसकी तुलना में ये दो से तीन गुना अधिक हैं। इसके अलावा कंटेनर निर्धारित करने का समय भी पहले के दो दिन की तुलना में बढ़कर अब करीब सात दिन हो गया है।
अग्रणी कपड़ा निर्यातकों में शुमार जेन लिनन इंटरनेशनल को चेन्नई की एमईपीजेड सेज में कंपनी की इकाई में लगभग 10 दिन के लिए विनिर्माण रोकने के लिए मजबूर होना पड़ा था, क्योंकि कंटेनरों की कमी की वजह से कंपनी विनिर्माण इकाइयों से उत्पादन की ढुलाई नहीं कर सकी थी।
कंपनी के प्रबंध निदेशक मिलिंद मुन्गिकर ने कहा कि उनका कारखाना हर रोज पूरी तरह से भरे हुए करीब सात से आठ कंटेनर भेजा करता था, लेकिन दो-तीन सप्ताह से एक कंटेनर भी नहीं भेजा गया है, जिसके परिणामस्वरूप स्टॉक बढ़ रहा है। माल रखने के लिए उन्होंने अब प्रति माह चार लाख रुपये पर एक भंडारगृह किराए पर लिया है।
उनका आरोप है कि शिपिंग लाइंस एक या दो महीने की अग्रिम बुकिंग कर रही हैं, लेकिन वे लोग विराम शुल्क के रूप में प्रति कंटेनर हर रोज 4,000 रुपये वसूल रहे हैं। यह समुद्री ढुलाई दरों में दो से तीन गुना से ज्यादा की वृद्धि हो गई है।
अमेरिका के प्रमुख बंदरगाह की ओर होने वाली समुद्री ढुलाई बढ़कर तकरीबन 3,500 से 4,000 डॉलर प्रति टीईयू (प्रति 20 फुट बराबर इकाई) हो गई है, जबकि पिछले साल यह 1,800 से 2,000 डॉलर थी। यूरोप की खेपों के दाम 800 डॉलर से बढ़कर 1,600 से 1,700 डॉलर तक हो चुके हैं। विशेष रूप से दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से आयात की दरों में दो से तीन गुना तक की वृद्धि हुई है।
तिरुपुर निर्यातक संघ के अध्यक्ष, राजा षणमुगम ने कहा कि पिछले साल तिरुपुर के किसी कारखाने से कोई कंटेनर किसी ग्राहक के गोदाम या खुदरा दुकान तक ले जाने में औसतन $3,000 के आसपास खर्च आया करता था, आज इसकी लागत लगभग 5,000 से 6,000 डॉलर आ रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि शिपिंग लाइनों द्वारा कृत्रिम मांग सृजित की गई है।

First Published : January 11, 2021 | 12:01 AM IST