उत्तर प्रदेश में अधिकारियों के मुताबिक विधानसभा चुनावों से ठीक पहले कोविड राहत पैकेज के तौर पर योगी आदित्यनाथ की सरकार ने दिसंबर 2021 से फरवरी 2022 के बीच 14 लाख टन से अधिक गेहूं, 9.5 लाख टन चावल, 1 लाख टन चना, 10.19 करोड़ लीटर सोयाबीन तेल और 1 लाख टन नमक का वितरण मुफ्त किया था। कई राजनीतिक विश्लेषकों ने भी राज्य के चुनावों में सत्तारूढ़ पार्टी को मतदाताओं का समर्थन मिलने की कई वजहों में से एक मुफ्त राशन वितरण को भी जिम्मेदार बताया है। अधिकारियों ने बताया कि राज्य भर में लगभग 14.60 करोड़ लाभार्थियों को किए गए मुफ्त वितरण से राज्य के राजकोष से इस मद में हर महीने लगभग 300 करोड़ रुपये खर्च होने की उम्मीद है।
राशन का मुफ्त वितरण उन क्षेत्रों में भी किया गया जहां दलितों के समूह का दबदबा है। मिसाल के तौर पर आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले साल दिसंबर महीने में, उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर जिले में 3.89 लाख राशन कार्डधारकों के बीच सबसे अधिक मुफ्त राशन का वितरण किया गया था जबकि जनवरी में मिर्जापुर में सबसे अधिक 4.40 लाख कार्डधारकों को मुफ्त राशन दिया गया। फरवरी में अधिकतम मुफ्त राशन वितरण की सूची में अंबेडकर नगर फिर से शीर्ष पर पहुंच गया जहां 3.90 लाख राशन कार्डधारकों को इसका लाभ मिला है। सूत्रों ने बताया कि अंबेडकर नगर और मिर्जापुर दोनों जगहों पर दलित जाति से ताल्लुक रखने वाले लोगों का वर्चस्व है।
सूत्रों ने बताया कि केंद्र के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से वितरित किए जाने वाले मुफ्त खाद्यान्नों के अतिरिक्त सोयाबीन तेल, नमक और चने का भी वितरण किया गया था। राशन का वितरण महीने में दो बार किया जाता था। एक बार तब जब सिर्फ अनाज बेचे जाते थे और दूसरी बार जब शेष सामान का वितरण किया जाता था।
इसके अलावा, राज्य सरकार के अधिकारियों ने कहा कि मुफ्त राशन योजना से पहले, अप्रैल 2018 और फरवरी 2022 के बीच, राज्य ने पीडीएस में 1.25 करोड़ नए लाभार्थियों के नाम जोड़े जबकि विभिन्न कारणों से लगभग 9.5 लाख लोगों के नाम हटा दिए गए थे। चुनाव से पहले शुरू की गई विशेष मुफ्त राशन योजना के अलावा, उत्तर प्रदेश सरकार, केंद्र के साथ मिलकर पीडीएस के तहत और मार्च 2020 से ही प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत गेहूं और चावल का वितरण कर रही है। ऐसा लगता है कि सरकार ने वितरण की क्षमता भी बढ़ाई है और अधिकारियों ने कहा कि वितरण में बड़े पैमाने पर लीक के कम सबूत हैं। हालांकि कुछ लाभार्थियों ने शिकायत की कि उन्हें गेहूं और चावल के अपने कोटे से कम अनाज मिला है।
पूर्व खाद्य सचिव शिराज हुसैन ने कहा कि उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के क्रियान्वयन से पहले एनसीएईआर (2014) द्वारा पीडीएस के आकलन से पता चला था कि गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों के लिए तय अनाज का 33 प्रतिशत और गरीबी रेखा से ऊपर के परिवारों के लिए तय 35 प्रतिशत खाद्यान्न में सेंध लगी है। हालांकि लीकेज का कोई मूल्यांकन नहीं किया गया है उत्तर प्रदेश में हाल में हुई चर्चा के मुताबिक लीकेज कम हो सकती है।’ हुसैन ने कहा कि आंकड़ों के मुताबिक 2019-20 में राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से आवंटित 96 प्रतिशत चावल और गेहूं ले लिया। कुछ रिपोर्ट के मुताबिक एनएफएसए के तहत 89.59 लाख टन के सामान्य आवंटन के अलावा, 2020-21 में 58 लाख टन का अतिरिक्त आवंटन किया गया था। वहीं पीएमजीकेएवाई के तहत किए जाने वाले अतिरिक्त अनाज आवंटन का वितरण राशन कार्डधारकों को मुफ्त में किया जाना था। वर्ष 2021-22 में पीएमजीकेएवाई के तहत, उत्तर प्रदेश में 32.38 लाख टन चावल और 48.57 लाख टन गेहूं मिला। इसके अलावा 81 लाख टन का अतिरिक्त आवंटन किया गया। यह 89.6 लाख टन के सामान्य आवंटन से थोड़ा कम है। इसका मतलब यह है कि अगर पीएमजीकेएवाई के तहत अतिरिक्त आवंटन नहीं किए जाते तब कार्डधारकों को जितनी मात्रा में राशन मिलना था उसके मुकाबले दोगुनी मात्रा में राशन मिला।