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  विशेष  कोविड पीडि़त परिवारों के बच्चों में बढ़ी असुरक्षा
विशेष

कोविड पीडि़त परिवारों के बच्चों में बढ़ी असुरक्षा

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —July 11, 2021 11:31 PM IST0
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आगरा में सात साल का पिंटू अपनी मां के बारे में पूछता रहता है। उसके 13 साल के बड़े भाई बृजेश के पास इसका कोई जवाब नहीं है। कोविड की वजह से पांच दिनों के अंतराल में इनके माता-पिता दोनों की मौत हो गई। इनकी दादी ही देखभाल कर रही हैं जो कैंसर की मरीज हैं जबकि 70 साल से अधिक उम्र के हो चुके उनके दादा को लगता है कि वह सुरक्षा गार्ड की अपनी नौकरी छोडऩे का जोखिम नहीं उठा सकते हैं। दोनों ही बच्चों की किस्मत की चिंता करते हैं। इस आपदा के शिकार वे अकेले नहीं हैं।
पूरे देश भर में महामारी की दूसरी लहर की आक्रामकता जैसे-जैसे कम हो रही है वैसे में सरकार और बाल कल्याण एजेंसियां एक बुनियादी सवाल से जूझ रही हैं कि उन बच्चों की मदद करने के लिए क्या किया जा सकता है जो कोविड-19 की वजह से अनाथ हो गए हैं और असुरक्षित हैं? राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सर्वोच्च न्यायालय को जानकारी दी है कि पूरे देश भर में 30,071 बच्चों के माता-पिता में से कोई एक या दोनों की ही कोविड की वजह से मृत्यु हो गई।
इनमें से 26,176 बच्चों के माता-पिता में से किसी एक की मौत हो गई, 3,621 बच्चे अनाथ हो गए जबकि 274 बच्चों को भटकने के लिए छोड़ दिया गया। देश भर में मरने वाले कई लोगों की जांच भी नहीं हो पाई थी, ऐसे में कोविड से हुई मौत के आंकड़े कम ही दिख रहे हैं। बाल कल्याण विशेषज्ञों का भी मानना है कि यह संख्या काफी कम है। केंद्र और कई राज्यों ने कोविड की वजह से अनाथ बच्चों के लिए कई योजनाओं की घोषणा की है। हाल ही में ओडिशा की सरकार ने ‘आशीर्वाद योजना’ की घोषणा की है जिसके तहत अनाथ बच्चों को पाल रहे परिवार के सदस्यों को हर महीने 2,500 रुपये दिए जाएंगे ताकि उन बच्चे के रहने, स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च किया जा सके। केरल सरकार ने हाल ही में घोषणा की थी कि कोविड द्वारा अनाथ 74 बच्चों को हर महीने 2,000 रुपये दिए जाएंगे और उनके नाम पर 3 लाख रुपये का सावधि जमा भी होगा। हालांकि, बाल कल्याण संस्थाओं, बाल संरक्षण एजेंसियों और सक्रिय कार्यकर्ताओं का मानना है कि केवल वित्तीय मदद के वादे से महामारी से प्रभावित बच्चों का पुनर्वास सुनिश्चित नहीं किया जा सकेगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि जो बच्चे अपने माता-पिता को खो चुके हैं उनमें अवसाद बढऩे का खतरा अधिक होता है और वे स्कूल की पढ़ाई छोड़ देते हैं। इनके शोषण की संभावना अधिक हो जाती है और कई दफा उनकी तस्करी भी की जाती है। इसके अलावा, पिंटू और बृजेश के दादा-दादी की तरह कई परिवारों में ऐसे सदस्य हैं जो ऐसे बच्चों की बेहतर देखभाल के लिए सक्षम नहीं हैं और न ही वे उनको घर का सुरक्षित माहौल दे सकते हैं।
एसओएस चिल्ड्रन विलेज ऑफ  इंडिया के महासचिव सुमंत कर कहते हैं, ‘हमें महामारी की मार की वजह से असुरक्षित हुए बच्चों के लिए एक बहुस्तरीय रणनीति अपनानी होगी। हमें न केवल उनकी शारीरिक और मनोवैज्ञानिक सामाजिक जरूरतों को समझने की जरूरत होगी बल्कि हमें उन मुद्दों पर भी विचार करना होगा जिनका सामना उनकी देखभाल कर रहे परिवारों और अन्य लोगों को करना पड़ रहा है।’
एसओएस चिल्ड्रन विलेज को पिछले दो महीनों में देश के 32 गांवों से 240 बच्चे देखभाल के लिए मिले हैं जिनमें से ज्यादातर महामारी का शिकार हुए हैं। 2001 के भुज भूकंप और 2004 की सुनामी जैसी आपदाओं में अनाथ हुए बच्चों की देखभाल के दौरान जो उनके अनुभव हुए हैं उसके आधार पर उन्होंने बच्चों की देखभाल के लिए अलग-अलग मॉडल बनाए हैं।
पिछले दो महीनों में बच्चों वाले करीब 1980 परिवारों के मुख्य सदस्य की मौत हो गई जो आजीविका कमा कर लाते थे। इन परिवारों ने अपनी आजीविका क्षमता को बढ़ाने के लिए एसओएस विलेज फैमिली स्ट्रेंथनिंग प्रोग्राम में नामांकन कराया है। इनमें से 30 परिवार कोविड से अनाथ हुए बच्चों की देखभाल करने वाले परिवारों के लिए शुरू किए गए किनशिप केयर प्रोग्राम से जुड़े हैं और 125 परिवार 18 साल से अधिक उम्र के अनाथ युवाओं की देखभाल के लिए इनके आफ्टर केयर प्रोग्राम से जुड़े हैं।
कर कहते हैं, ‘हमारे घरों में 10 बच्चे देखभाल करने वाली एक मां के साथ परिवार जैसे माहौल में रहते हैं।’ उनका कहना है, ‘हमारी मानक परिचालन प्रक्रिया सभी के लिए है जिनमें कोविड से अनाथ हुए बच्चे भी हैं और देखभाल करने के लिए मां की भूमिका निभाने वाली महिला भी हैं जो एक मददगार माहौल में बच्चों को मनोवैज्ञानिक-सामाजिक समर्थन भी देती हैं।’ उन्होंने उन बच्चों के लिए भी कम समय के लिए ठहरने की सेवाएं देनी शुरू की है जिनका परिवार कोविड की वजह से बीमार है।
बाल अधिकार से जुड़े वकीलों का कहना है कि सरकार की ओर से दिए जा रहे वित्तीय पैकेज अक्सर लालफीताशाही और लाभार्थियों में जागरूकता की कमी से नहीं मिल पाते हैं। इसके अलावा, ये योजनाएं केवल उन बच्चों पर केंद्रित होती हैं जिनके माता-पिता की मौत हो गई है।
सेव द चिल्ड्रन फाउंडेशन की निदेशक (नीति एवं कार्यक्रम प्रभाव) नम्रता जेटली कहती हैं, ‘अभी कमजोर बच्चों के तीन प्रकार हैं। एक, वैसे बच्चे जिनके माता-पिता में से एक या दोनों की ही मौत हो गई है। दूसरे, जिनके परिवार के कमाने वाले सदस्य की महामारी की वजह से मौत हो गई है। तीसरी श्रेणी में वैसे बच्चे शामिल हैं जिनके माता-पिता या अभिभावक किसी गंभीर बीमारी से पीडि़त हैं या विकलांग हैं। उनका कहना है, ‘हम कुछ फायदा न केवल अनाथ बच्चों को बल्कि कमजोर बच्चों की अन्य दो श्रेणियों के लिए भी दिलाना चाहते हैं।’ इन बच्चों की जोखिम और असुरक्षा के स्तर की परवाह किए बगैर भी महामारी का शिकार हुए इन पीडि़तों को लंबे समय तक मदद और परामर्श की जरूरत होगी। इनकी तादाद बढऩे की संभावना है।
कर कहते हैं, ‘अब जब लॉकडाउन हटा लिया गया है तब मुझे इस बात का डर है कि बच्चों से जुड़े खतरे वाले कई और मामले सामने आएंगे। कई अन्य लोगों का मानना है कि सरकार को जिला प्रशासन से केवल रिपोर्ट मंगाने पर भरोसा करने और इनके चाइल्डलाइन नंबर (1098) पर कॉल करने के बजाय पूरी सक्रियता दिखाते हुए कोविड मृतकों के बच्चों की तलाश करनी चाहिए।’ जेटली कहती हैं, ‘अपने माता-पिता के खोने से सदमे में आए बच्चों को जहां तक संभव हो उनके अपने परिवार के भीतर ही रहने में मदद दी जानी चाहिए। सभी कमजोर बच्चों को मदद की राशि का सही तरीके से हस्तांतरण और लंबे समय तक उनकी निगरानी से मदद मिलेगी।’
(बच्चों के नाम उनकी पहचान गोपनीय रखने के लिए बदल दिए  गए हैं)

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