केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ बातचीत में आज कहा कि अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ाने के लिए सरकार अपने सार्वजनिक पूंजीगत व्यय कार्यक्रम का ही सहारा लेगी और उसे किसी खास क्षेत्र के लिए राजकोषीय उपाय शायद ही करने पड़ें।
विभिन्न मुद्दों पर विस्तार से बात करते हुए उन्होंने कहा कि केंद्र जल्द ही सार्वजनिक क्षेत्र के एक बैंक के निजीकरण को अंतिम रूप दे देगा। साथ ही उन्होंने कहा कि बाहरी चुनौतियों के बावजूद राजकोषीय घाटे और वृद्धि की स्थिति इस साल काफी सहज रही।
सीतारमण ने कहा, ‘हमने पूंजीगत व्यय का रास्ता चुना है और हम उसी पर चलते रहेंगे। हमने महामारी के दौरान भी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए पूंजीगत संपत्तियों पर खर्च का तरीका ही अपनाया। राज्यों ने भी दिखाया कि वे इस व्यय का इस्तेमाल कर सकते हैं।’
वित्त वर्ष 2023 में केंद्र का पूंजीगत व्यय 7.5 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। वित्त मंत्री ने कहा कि इसमें से 1 लाख करोड़ रुपये राज्यों को पूंजीगत व्यय के लिए दीर्घावधि, ब्याज-मुक्त ऋण के रूप में दे दिए जाएंगे।
1 लाख करोड़ रुपये की यह पूरी राशि राज्यों को जुलाई-सितंबर तिमाही में दी जा सकती है। सीतारमण ने कहा, ‘कई राज्यों ने नई और पुरानी परियोजनाओं पर पूंजीगत व्यय के लिए अपनी योजना तैयार भी कर ली हैं। 1 लाख करोड़ रुपये के ऋण आवंटन के नियम अपैल के अंत में बनाए गए थे और राज्य मई में अपनी परियोजनाएं मूल्यांकन के लिए लेकर आए थे।’ उन्होंने कहा कि 1 लाख करोड़ रुपये की राशि अभी राज्यों ने ली नहीं है मगर उन्हें पूरा भरोसा है कि दूसरी तिमाही खत्म होने से पहले राज्य यह रकम ले लेंगे।’
राजकोषीय और मौद्रिक नीति निर्माताओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती मुद्रास्फीति है, जिस पर बात करते हुए सीतारमण ने कहा कि मौद्रिक नीति समिति ने मध्यम अवधि में मुद्रास्फीति का लक्ष्य 6 फीसदी रखा है, जिसे ऊपर नहीं जाने देना है। उन्होंने कहा, ‘सारी चुनौतियां बाहर की हैं। हमारे देश में महंगाई उतनी नहीं हुई है, जितनी दूसरे देशों ने झेली है। मगर इतनी महंगाई भी हमारे देश की जनता के लिए बड़ा बोझ साबित होगी क्योंकि हमारे यहां के लोगों की आमदनी कम है।’ मई 2022 में मुख्य खुदरा महंगाई घटकर 7.04 फीसदी रही, जबकि अप्रैल में यह 8 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी। बहरहाल लगातार पांचवें महीने तक इसका आंकड़ा मौद्रिक नीति समिति के मध्यम अवधि के लक्ष्य 4 फीसदी (+/-2) से ऊपर है। भारतीय रिजर्व बैंक को लगता है कि अक्टूबर-दिसंबर तिमाही तक औसत मुद्रास्फीति 6 फीसदी के स्तर से ऊपर ही रहेगी। सीतारमण ने कहा कि कोविड-19 महामारी की तीन लहरें झेलने के बाद भी अर्थव्यवस्था तेजी से पटरी पर लौटी
क्योंकि केंद्र ने विभिन्न क्षेत्रों के लिए अलग-अलग रणनीति अपनाई है और सभी के लिए एक ही तरह के उपाय नहीं किए।
उन्होंने कहा, ‘महामारी से निटपने का हमारा तरीका अलग था और यह भारतीय अर्थव्यवस्था की खासियत के हिसाब से ही था। हमारे यहां विभिन्न क्षेत्रों में मध्यम, लघु उद्योग बड़ी तादाद में हैं और हरेक क्षेत्र की समस्याओं से निपटने के लिए आपको उसके अनुकूल उपाय ही करने पड़े।’
वित्त मंत्री ने कहा, ‘हम बैंकों के निजीकरण की योजना पर आगे बढ़ रहे हैं और बढ़ते रहेंगे और हम जल्द ही बैंकिंग विनियमन अधिनियम में संशोधन करेंगे।’
सीतारमण ने कहा कि बैंकिंग महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है और केंद्र कुछ बैंकों में अपना स्वामित्व बनाए रख सकता है। मगर जिन बैंकों से सरकार ने निकलने का फैसला किया है, उनमें वह अपनी पूरी हिस्सेदारी बेच सकता है। उन्होंने कहा, ‘हम कुछ बैंकों से पूरी तरह अपनी हिस्सेदारी खत्म कर सकते हैं। लेकिन हम ऐसा करेंगे या बैंकों में अपनी कुछ हिस्सेदारी बनाए रखेंगे, ये सभी बातें निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा हैं।’
हालांकि सरकार की तरफ से आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है लेकिन चर्चा है कि सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज बैंक का निजीकरण किया जा सकता है।
जीएसटी परिषद की हाल में हुई बैठक के बाद राज्यों की मुआवजा अवधि में विस्तार के बारे में वित्त मंत्री ने कहा कि केंद्र और राज्यों के बीच भरोसा बना हुआ है क्योंकि केंद्र सरकार ने अपना कोई भी वादा तोड़ा नहीं है। उन्होंने कहा, ‘मैंने राज्यों की बात सुनी है। राजस्व में वृद्धि का प्रतिशत मापने के लिए उन दो वर्षों को नहीं लिया जा सकता, जो कोविड से प्रभावित रहे थे। और उसके बाद भी सुधार के बीच सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्य अधिकतम 8-9 प्रतिशत वृद्धि के स्तर पर ही पहुंच पाए हैं।’