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गुजरात में काम, दिल्ली की कमान

Last Updated- December 11, 2022 | 6:41 PM IST

खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के निवर्तमान अध्यक्ष एवं दिल्ली के नए उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना (64 वर्षीय) की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह थकते नहीं और बेहद परिश्रमी हैं। एक बार जब वह किसी मुद्दे को उठाते हैं तब उसे यूं ही नहीं छोड़ते, भले ही इस प्रक्रिया में उन्हें किसी का आक्रोश झेलना पड़े या फिर उच्चतम न्यायालय के तीखे निर्देशों का सामना करना पड़े।
वह अपनी प्रतिभा को छिपाने में यकीन नहीं रखते हैं। केवीआईसी की वेबसाइट पर संस्था के अध्यक्ष के रूप में दिए गए उनके परिचय में उन्हें ‘बहुआयामी व्यक्तित्व’ वाला बताया गया है। इसमें इस बात का भी जिक्र है कि वह ‘यात्रा करने वाले कॉरपोरेट नेता, मुखर समाज सुधारक, उत्साही पर्यावरणविद्, एक प्रतिबद्ध जल-संरक्षणवादी, एकीकृत विकास के मुखर समर्थक और एक लाइसेंसधारी पायलट’ है।
यह संभवत: पहली बार है कि केवीआईसी जैसी सम्मानित संस्था का नेतृत्व कॉरपोरेट पृष्ठभूमि वाले किसी व्यक्ति ने किया जबकि यह ऐसी संस्था रही जिसने अपने अध्यक्षों को जीवन भर खादी पहनने का संकल्प लेना अनिवार्य कर दिया था। सक्सेना को 2015 में केवीआईसी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। वह मूल रूप से कानपुर के हैं और उन्होंने 1995 में अदाणी पोट्र्स लिमिटेड और जे के व्हाइट सीमेंट द्वारा तैयार की जा रही धोलेरा बंदरगाह परियोजना के महाप्रबंधक के रूप में गुजरात जाने से पहले राजस्थान में एक निजी कंपनी में सहायक अधिकारी के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी। उन्हें न केवल मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) बनाया गया था बल्कि परियोजना के निदेशक के रूप में उन्हें पदोन्नति भी मिली थी।
वर्ष 2000 से लेकर आज तक सक्सेना के लिए मेधा पाटकर काफी चुनौतीपूर्ण रही हैं। वर्ष 1990 के दशक में जब कार्यकर्ता बाबा आमटे और पाटकर के नेतृत्व में सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने के खिलाफ नर्मदा बचाओ आंदोलन अपने उभार पर था उन दिनों सक्सेना ने एक गैर सरकारी संगठन, नैशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज (एनसीसीएल) का गठन किया। उन्होंने पाटकर की गतिविधियों के खिलाफ लेख प्रकाशित करने के साथ ही भुगतान वाले विज्ञापन प्रकाशित कर आरोप लगाए कि मेधा पाटकर राष्ट्र विरोधी हैं और उन्हें संदिग्ध विदेशी स्रोतों से पूंजी मिल रही है। पाटकर की मांगें सरल थीं। उनका कहना था कि बांध की ऊंचाई बढ़ाने से निस्संदेह गुजरात और राजस्थान कई क्षेत्रों को पानी मिलेगा, लेकिन इससे मध्य प्रदेश के सैकड़ों हजारों परिवारों की जमीन को जलमग्न कर देगा जिनका बांध की ऊंचाई बढ़ाने और जलग्रहण क्षेत्र का विस्तार करने से पहले पुनर्वास करना जरूरी था।
हालांकि इन तर्कों में जो भी वाजिब हो लेकिन कुछ वक्त के लिए ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ गुजरात में एक तरह से बदनाम रहा क्योंकि तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने रुख पर अडिग रहे और उन्होंने इसके लिए समर्थन मांगने के लिए एड़ी-चोटी एक कर दी। सक्सेना ने राज्य सरकार की ओर से यह मुद्दा उठाया और पाटकर के खिलाफ मामले लड़े। बदले में पाटकर ने मानहानि के मामले दायर किए जो अब भी चल रहे हैं। इस साल की शुरुआत में, सक्सेना सुनवाई के लिए उपस्थित नहीं थे और अदालत ने उन पर दो बार जुर्माना लगाया था।
गुजरात सरकार के मुद्दों के लिए सक्सेना का समर्थन यहीं तक नहीं रुका। जब कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार द्वारा नियुक्त गुजरात की राज्यपाल कमला बेनीवाल ने गुजरात सरकार को अपनी पसंद से लोकायुक्त की नियुक्ति करने से रोक दिया तब उनके एनजीओ ने इस मुद्दे कानूनी रूप से चुनौती दी।
उनके ही एनजीओ ने मशहूर बुद्धिजीवी आशिष नंदी के खिलाफ पुलिस में एक शिकायत दर्ज कराई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि 2007 के विधानसभा चुनावों के बाद नंदी द्वारा लिखे गए एक लेख में राज्य की छवि खराब करके पेश की गई थी और इसकी वजह से ‘हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक असंतोष को बढ़ावा मिला था।’
नंदी ने तर्क दिया कि एफआईआर दुर्भावनापूर्ण इरादे से दर्ज की गई थी और इसका उद्देश्य अपने वास्तविक विचारों को व्यक्त करने के लिए उन्हें दंडित करना था। उच्चतम न्यायालय ने 2011 में नंदी को राहत दी थी जब गुजरात पुलिस ने उनकी गिरफ्तारी के लिए प्राथमिकी दर्ज की थी।
एक ऐसे व्यक्ति जिन्होंने गुजरात राज्य को इतना समर्थन और मदद दी उनकी अहमियत आगे बढऩी लाजिमी थी। उन्हें न केवल केवीआईसी की नौकरी मिली बल्कि उन्हें महत्त्वपूर्ण सरकारी समितियों का सदस्य भी बनाया गया जिसमें पद्म पुरस्कारों पर निर्णय लेने वाली समितियां और गृह मंत्रालय को रिपोर्ट करने जैसी जिम्मेदारी भी शामिल हैं।
अध्यक्ष के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान, केवीआईसी ने खादी की मार्केटिंग के लिए रेमंड और अरविंद मिल्स जैसे प्रमुख कपड़ा ब्रांडों के साथ समझौतों पर हस्ताक्षर किए। पहली बार 2017 में फैबइंडिया और एमेजॉन और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियों को ट्रेडमार्क उल्लंघन के लिए कानूनी नोटिस भेजा गया क्योंकि केवीआईसी ने तर्क दिया था कि वे जिस कपड़े को खादी बताकर बेच रहे थे वे बिल्कुल भी खादी नहीं हैं और उसमें ‘केवीआईसी द्वारा जारी किया गया कोई लेबल या टैग नहीं है।’
केवीआईसी ने अपने कारोबार और मुनाफे में भारी वृद्धि की। हालांकि खादी में तकनीकी नवाचारों के आधार पर, बांस और मधुमक्खी पालन जैसे क्षेत्रों में केवीआईसी की गतिविधियों के विस्तार और अन्य ग्राम उद्योग के प्रयासों के आधार कम थे। इस महीने की शुरुआत में, प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक रूप से केवीआईसी के काम की प्रशंसा की।
 एक विपक्ष शासित राज्य के उप राज्यपाल के रूप में सक्सेना की वर्तमान भूमिका भी न केवल उनके लिए बल्कि सत्तारूढ़ दल आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के लिए अहम होगी जो भारत की राजधानी में केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के साथ किसी भी विवाद से उलझने में गुरेज नहीं करती है। नए उप राज्यपाल को पूरा समर्थन है और केंद्र सरकार में अहम लोगों तक उनका अच्छा संपर्क भी है। निश्चित रूप से राजधानी के लिए यह दिलचस्प समय है।

First Published - May 27, 2022 | 12:16 AM IST

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