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मिल निजीकरण की राह नहीं आसान

Last Updated- December 10, 2022 | 12:42 AM IST

उत्तर प्रदेश चीनी निगम की 33 खस्ताहाल चीनी मिलों के निजीकरण के लिए आईएफसीआई (जिसे पहले भारतीय औद्योगिक वित्तीय निगम के नाम से जाना जाता था) को सलाहकार नियुक्त किया है।
आईएफसीआई के अलावा अर्न्सट ऐंड यंग ने भी इसके लिए प्रस्ताव और योग्यता के लिए आवेदन जमा कराया था। पिछले साल इन मिलों को खरीदने के लिए यूफ्लेक्स, गैमन और चङ्ढा समूह दौड़ में शामिल थे। पर सरकार ने इन मिलों की खरीद के लिए 2,200 करोड़ रुपये का मूल्य निर्धारित किया था ।
जबकि कंपनियां 600 करोड़ रुपये से अधिक कुछ भी देने को राजी नहीं थे। भले ही राज्य सरकार ने इन चीनी मिलों के निजीकरण की घोषणा तो कर दी है, पर यह राह इतनी आसान नजर नहीं आ रही है।
दरअसल, राज्य सरकार ने 33 निगम और 28 सरकारी चीनी मिलों के निजीकरण की घोषणा की है, पर इनमें से कई अब भी कानूनी पचड़े में फंसी हुई हैं। गन्ना विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि कई मिलें फिलहाल औद्योगिक एवं वित्तीय पुनर्संरचना बोर्ड के दायरे में हैं। उन्होंने बताया कि सीतापुर, बाराबंकी, हरदोई, बरेली और मेरठ जिले में ऐसी कई इकाइयां हैं।
राज्य सरकार चीनी क्षेत्र का पूरी तरह से निजीकरण करना चाहती है। राज्य में निगम चीनी मिलों के पास मशीनरी की कोई दिक्कत तो नहीं है, पर चूंकि ये प्रमुख जगहों पर बनी हैं इस वजह से इन इकाइयों का आकार बहुत बड़ा नहीं है और इनका विस्तार भी बहुत आसानी से नहीं किया जा सकता है। 

सरकार ने 2007 में इन चीनी मिलों के निजीकरण की घोषणा की थी।

First Published - February 11, 2009 | 9:17 PM IST

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