धान का रकबा पिछले साल से अब करीब 6 फीसदी ही कम

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 4:16 PM IST

पश्चिम बंगाल और झारखंड में बारिश के कुछ रफ्तार पकड़ने से धान का रकबा 26 अगस्त को समाप्त सप्ताह में पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले अब केवल 5.99 फीसदी कम रह गया है। यह पिछले सप्ताह 8.25 फीसदी कम था। इससे उत्पादन में बड़ी गिरावट की चिंता कुछ कम हुई है। बाजार के भागीदारों ने कहा कि पूर्वी भारत में काफी रोपाई उपयुक्त समय के बाद हो रही , इसलिए उत्पादन का सही आकलन कटाई शुरू होने के बाद ही संभव हो पाएगा। 
कृषि मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 26 अगस्त को समाप्त सप्ताह के दौरान धान की रोपाई करीब 367.5 लाख हेक्टेयर में हुई थी, जबकि पिछले साल की इस अवधि के दौरान 390.9 लाख हेक्टेयर में रोपाई हो चुकी थी। पिछले सप्ताह तक देश भर में धान का रकबा 343.7 लाख हेक्टेयर था। इस साल 29 जुलाई तक धान की रोपाई सामान्य रकबे की 58.31 फीसदी थी, जो 19 अगस्त तक बढ़कर 92.5 फीसदी हो गई। सामान्य रकबा पिछले पांच साल का औसत रकबा है, जो 397 लाख हेक्टेयर है। 
धान के रकबे में कमी घटने से कीमतों पर भी असर पड़ सकता है। देश के चुनिंदा बाजारों में धान की कुछ सामान्य किस्मों के दाम 1 जुलाई से 15 अगस्त के बीच करीब 5.5 से 12 फीसदी बढ़े हैं। इसका अगले सप्ताह केंद्र और राज्य सरकारों की एक उच्च स्तरीय समिति की बैठक के फैसलों पर भी असर पड़ सकता है। इस बैठक में धान की रोपाई की प्रगति और कीमत की स्थिति का जायजा लिया जाएगा ताकि अगले फसल सीजन के लिए खरीद रणनीति तय की जा सके। अगला फसल सीजन 1 अक्टूबर 2022 से शुरू होगा। 
धान के रकबे में तगड़ी बढ़ोतरी का निर्यात पर बंदिशें लगाने के किसी कदम पर भी असर पड़ सकता है। भारत चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और सबसे बड़ा निर्यातक है। देश की वैश्विक चावल कारोबार में 40 फीसदी हिस्सेदारी है। भारत ने वित्त वर्ष 2021-22 में 2.12 करोड़ टन चावल का निर्यात किया था, जिसमें से 39.4 लाख टन बासमती चावल था। 
इस बीच आंकड़ों से पता चलता है कि सभी खरीफ फसलों का रकबा 26 अगस्त को समाप्त सप्ताह के दौरान बढ़ा है और करीब 10.45 करोड़ हेक्टेयर में खरीफ फसलों की रोपाई हो चुकी है। यह पिछले साल की इसी अवधि से केवल 1.58 फीसदी कम है। 
धान के रकबे में कुछ बढ़ोतरी का बड़ा कारण पश्चिम बंगाल और झारखंड में दक्षिणी-पश्चिमी मॉनसून में सुधार आना है। मौसम विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल के गंगा के मैदान वाले इलाकों में  1 जुन से 26 अगस्त तक मॉनसून में कुल कमी घटकर 27 फीसदी रह गई है, जो 1 जून से 29 जुलाई के बीच 46 फीसदी थी। इसी तरह झारखंड में मॉनसून में कुल कमी घटकर 26 अगस्त को 26 फीसदी पर आ गई, जो 29 जुलाई को 50 फीसदी थी। लेकिन बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे अन्य प्रमुख धान उत्पादक क्षेत्रों में मॉनसून में कमी का अंतर पिछले एक महीने के दौरान इतना अधिक नहीं घटा है।
ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि 26 अगस्त तक जिन प्रमुख राज्यों में धान की रोपाई पिछले साल से कम थी, उनमें झारखंड (-10.5 लाख हेक्टेयर), पश्चिम बंगाल (-4.6 लाख हेक्टेयर), छत्तीसगढ़ (-3.4 लाख हेक्टेयर), उत्तर प्रदेश (-2.6 लाख हेक्टेयर), बिहार (-2.4 लाख हेक्टेयर  और ओडिशा (-2.2 लाख हेक्टेयर) शामिल हैं। 
बार्कलेज में एमडी और भारत में मुख्य अर्थशास्त्री राहुल बाजोरिया ने कहा, ‘बारिश का स्तर कुल मिलाकर सामान्य रहा है। क्षेत्रीय वितरण में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है। फिर भी धान की फसल की रोपाई और उत्पादन में संभावित कमी से चिंताएं पैदा हो सकती है, खास पर उन देशों के लिए जो भारत से चावल का आयात करते हैं।’ राहत की बात इतनी ही है कि केंद्रीय पूल में चावल का स्टॉक जरूरत से काफी अधिक है। 

First Published : August 26, 2022 | 10:35 PM IST