कोरोनावायरस के कारण हुए लॉकडाउन से बेजार महाराष्ट्र और खास तौर पर मुंबई की आर्थिक तथा कारोबारी गतिविधियां बंदिशें हटने के बाद भी पटरी पर नहीं लौट पाई हैं। जून की शुरुआत में लॉकडाउन खुलने के बाद देश भर में तो कारोबार तेजी से सुधरा मगर मुंबई और आसपास के इलाकों में चार महीने बाद भी हलचल कम है। इसकी सबसे बड़ी वजह यातायात है, जिसकी व्यवस्था ठीक नहीं होने के कारण 25-30 फीसदी कारोबार ही पटरी पर लौट पाया है। यह बात अलग है कि कारोबारियों को दीवाली तक हालात ठीक होने की उम्मीद नजर आ रही है।
लोकल ठप तो सब ठप
महाराष्ट्र में मई के अंत में ही औद्योगिक इकाइयां खोलने की इजाजत दे दी गई थी। कारखाने और दुकानें खुल गईं मगर वाणिज्यिक राजधानी कहलाने वाले मुंबई महानगरीय क्षेत्र में आवाजाही मुश्किल होने के कारण सुस्ती ही दिख रही है। मुंबई की जीवनरेखा कहलाने वाली लोकल ट्रेन सेवा अभी तक आम आदमी के लिए सुलभ नहीं है, जिससे कामगार और कारोबारी दफ्तर तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। मुंबई में कारोबार के सबसे बड़े अड्डे दक्षिण मुंबई में कालबादेवी, कोलाबा, ग्रांट रोड, मुंबई सेंट्रल आदि है। लेकिन इन सभी में दुकानें और शोरूम कामचलाऊ ही दिख रहे हैं। कारोबारी संगठनों में सक्रिय राजीव सिंघल कहते हैं कि यातायात के साधन कम होने की वजह से कर्मचारी और ग्राहक दफ्तरों, दुकानों, शोरूमों में पहुंच ही नहीं पा रहे हैं तो कारोबार कहां से होगा। यही वजह है कि दक्षिण मुंबई में बमुश्किल 20 फीसदी कारोबार हो रहा है। ग्रांट रोड पर वाहन शोरूम चलाने वाले राकेश पुजारी कहते हैं कि कोरोनावायरस के डर और यातायात के अभाव में वही ग्राहक शोरूम आ रहे हैं, जिन्हें बहुत जरूरत है। इसलिए 25 फीसदी कारोबार भी नहीं हो रहा है।
कॉर्पोरेट दफ्तरों के केंद्र बीकेसी में भी सन्नाटा है। यहां हीरा बाजार भारत डायमंड बोर्स में दफ्तर चलाने वाले नाइन डायमंड के प्रबंध निदेशक संजय शाह को भी सरकार से ऐसी ही शिकायत है। वह कहते हैं, ‘कहने को सब खुला है मगर सब कुछ बंद भी है। सरकार को समझना होगा कि ज्यादातर कर्मचारी उपनगरीय इलाकों में रहते हैं। अगर परिवहन ही नहीं होगा तो वे काम पर कैसे पहुंचेंगे। सड़क के रास्ते आने-जाने में 6 से 8 घंटे लग जाते हैं। ऐसे में आदमी काम क्या करेगा?’
मजदूरों की वापसी जरूरी
शोरूम और दुकानें ही नहीं उनके लिए माल तैयार करने वाले कारखाने भी मजदूरों के अभाव में हांफ रहे हैं। मुंबई से करीब 80 किलोमीटर दूर भिवंडी होजरी का गढ़ रहा है, जहां हथकरघों और पावरलूम की आवाज चौबीसों घंटे आती थी। मगर इस समय वहां 20-25 फीसदी काम ही शुरू हो पाया है। भिवंडी ऑटो पावरलूम वीवर्स एसोसिएशन के विजय नोगजा ने बताया कि पावरलूम चलने लगे हैं मगर काम एक पाली में ही हो रहा है क्योंकि पहले से जमा स्टॉक निकालने पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। लॉकडाउन के कारण तैयार माल बिक नहीं पाया था और कई व्यापारियों ने खरीदा माल भी लौटा दिया था। इसलिए बचे माल को निकालना ही प्राथमिकता है।
मगर नोगजा बताते हैं कि मजदूरों की किल्लत भी परेशानी खड़ी कर रही है। उन्होंने कहा कि यहां काम करने वाले ज्यादातर मजदूर बिहार, उत्तर प्रदेश और बंगाल के हैं, जो लॉकडाउन में घर लौट गए। अब वे लौटना चाहते हैं मगर ट्रेन बहुत कम चल रही हैं। जो चल रही हैं, उनमें भी कन्फर्म टिकट वाले ही यात्रा कर सकते हैं। इसलिए 10-15 फीसदी कारीगर ही लौटे हैं।
बदला कारोबारी तरीका
महामारी ने कारोबार को झटका तो दिया है मगर यह कारोबारियों को नए तरीके भी सिखा रही है। यही वजह है कि अनलॉक शुरू होने के बाद से कारोबार का तरीका बदल रही है। कबीरा फैशन्स के प्रबंध निदेशक विनोद गुप्ता कहते हैं कि अब ज्यादातर सौदे ऑनलाइन ही हो रहे हैं। जितने कर्मचारी और मजदूर जरूरी हैं, उतने निजी वाहनों से बुला लिए गए हैं। अब देश भर में ऑनलाइन सैंपल भेजे जा रहे हैं और ऑनलाइन सौदे के बाद माल भेज दिया जा रहा है। मगर गुप्ता को सूरत जल्द बदलने की उम्मीद है क्योंकि दीवाली और जाड़ों के लिए माल की मांग शुरू हो गई है। अगर श्रमिकों को वापस लाने के लिए भी विशेष ट्रेन चलाई जाती हैं तो दिसंबर तक मामला पटरी पर लौट सकता है।
मुंबई को सरकारी लॉकडाउन का ज्यादा झटका इसीलिए लगा क्योंकि शुरू में वायरस का प्रकोप महाराष्ट्र में ही सबसे अधिक था। इस कारण उद्योग बंद हो गए और बड़ी संख्या में कामगार-मजदूर यहां से पलायन कर गए। यही वजह है कि अनलॉक में भी उत्पादन बेहद सुस्त है मगर 40 फीसदी तक पहुंच चुका है।
सरकार से आस
एक और चुनौती नकदी की भी है। कारोबारियों का कहना है कि बाजार में नकदी नहीं है और माल की मांग भी कमजोर है। पुराने भुगतान निपटेंगे तो नकदी बढ़ेगी और सरकार समुचित कदम उठाएगी तो मांग बढ़ेगी। इसलिए सरकार को जमीनी स्तर पर अधिक ठोस कदम उठाने चाहिए।