राष्ट्रीय राजमार्ग 1 के पास तेजी से बढ़ते भूमि के दाम हरियाणा सरकार के लिए मुश्किल का सबब बनते जा रहे हैं।
जमीन की कीमत बढ़ने के कारण अब रियल एस्टेट और कॉर्पोरेट जगत कन्नी काट रहा है। इसके साथ जैव पदार्थ पर आधारित बिजली परियोजनाओं के लिए हरियाणा अक्षय ऊर्जा विकास विभाग द्वारा चुनी गई स्वतंत्र विद्युत उत्पादक कंपनियां भी परियोजनाओं के लिए महंगी जमीन खरीदने से परहेज कर रही हैं।
राज्य सरकार ने साल 2006 में अक्षय ऊर्जा से रोजाना लगभग 130 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन करने की योजना बनाई थी। हालांकि जमीन के दाम बढ़ने के कारण अब ऐसा होना दूर की कौड़ी ही नजर आ रहा है।
महंगी जमीन के कारण परियोजनाओं में पहले से ही काफी देर हो रही है। इसीलिए इन परियोजनाओं को समय पर पूरा करने के लिए अक्षय ऊर्जा विभाग नीति में फेरबदल करने की योजना बना रहा है। सूत्रों ने बताया कि इन परियोजनाओं की देरी की मुख्य वजह महंगी भूमि है, इसीलिए विभाग की योजना उन कंपनियों को ढूंढने की है, जिनके पास इस क्षेत्र में पहले से ही जमीन है।
हालांकि नीति में फेरबदल कैबिनेट की मंजूरी से ही किया जा सकता है। जैव पदार्थ आधारित बिजली संयंत्र उन्हीं क्षेत्रों में लगाए जा सक ते हैं, जहां पर्याप्त मात्रा में यह उपलब्ध हो सकें। इसके लिए तय मानकों पर खरी उतरने वाली कंपनियों से ऑनलाइन आवेदन मंगाए जा रहे हैं।
दरअसल सरकार जल्द से जल्द इन परियोजनाओं को पूरा करना चाहती है। फरवरी 2007 से अप्रैल 2008 तक में लगभग 5 कंपनियों ने हरियाणा अक्षय ऊर्जा विभाग के साथ समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। इन कंपनियों को राज्य में यमुनानगर, करनाल, सोनीपत, कैथल, हिसार और भिवानी समेत करीब 20 स्थानों पर जैव पदार्थों से लगभग 183 मेगावाट बिजली का उत्पादन करना था।
होना तो यह चाहिए था कि समझौता पत्र पर हस्ताक्षर होने के लगभग 30 महीने के भीतर ही परियोजनाएं पूरी हो जानी चाहिए थी। इनमें से लगभग पांच साइटों के लिए भूमि का अधिग्रहण किया जा चुका है, जबकि दो मामलों के लिए ही पर्यावरण संबंधी मामलों की सुनवाई हो पाई है।
इन कंपनियों को बिजली शुल्क के साथ ही स्थानीय क्षेत्र विकास कर भी नहीं देना पड़ेगा। इसीलिए राज्य सरकार इन कंपनियों को भूमि अधिग्रहण करने पर कोई छूट देने के मूड में नहीं है।