अन्य समाचार

डिजिटल अरेस्ट की कोशिश पर घबराएं नहीं, पुलिस से लें मदद

मुंबई की 86 वर्षीय महिला को दो महीने तक डिजिटल अरेस्ट कर रखा गया। इस दौरान उनसे करीब 20 करोड़ रुपये की ठगी कर ली गई।

Published by
कार्तिक जेरोम   
संजय कुमार सिंह   
Last Updated- June 03, 2025 | 11:16 PM IST

हाल ही में आई एक खबर के मुताबिक, मुंबई की 86 वर्षीय महिला को दो महीने तक डिजिटल अरेस्ट कर रखा गया। इस दौरान उनसे करीब 20 करोड़ रुपये की ठगी कर ली गई। उन पर धनशोधन का आरोप लगाया गया और उन्हें ऑनलाइन फर्जी अदालत की कार्यवाही में शामिल करने के लिए मजबूर किया गया। इस दौरान उन्हें घर में ही रहने का आदेश दिया गया और साइबर अपराधी हर तीन घंटे पर इसकी जांच भी करते रहे।

कैसे होता है फर्जीवाड़ा

साइबर अपराधी खुद को पुलिस, आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी), केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) अथवा आयकर विभाग के अधिकारी बनकर पीड़ितों से फोन कॉल अथवा मैसेज से संपर्क साधते हैं।

ईवाई इंडिया फॉरेंसिक ऐंड इंटीग्रिटी सर्विसेज में पार्टनर (साइबर फॉरेंसिक) रंजीत बेल्लारी का कहना है, ‘पीड़ितों पर धनशोधन, नशीली दवाओं की तस्करी, साइबर धोखाधड़ी, कर चोरी जैसे आरोप लगाए जाते हैं।’

साइबर अपराधी विश्वसनीय बनने के लिए पीड़ित का आधार नंबर, स्थायी खाता संख्या (पैन) और बैंक विवरण जैसी व्यक्तिगत जानकारी खुद ही बताते हैं। एसएमएस अथवा व्हाट्सऐप के जरिये फर्जी गिरफ्तारी वारंट और कानूनी नोटिस तक भेजते हैं।

इसके अलावा, पीड़ितों को वीडियो कॉल पर बने रहने के लिए मजबूर तक किया जाता है। ग्रांट थॉर्टन भारत के पार्टनर अक्षय गार्केल का कहना है, ‘अपराधी इस दौरान पीड़ित को डिजिटल हाउस अरेस्ट और अपने परिजनों से संपर्क नहीं करने के लिए भी कहते हैं।’ इसके अलावा कॉल काटने पर उन्हें गिरफ्तार करने तक की धमकी दी जाती है। अंततः उन्हें गिरफ्तारी से बचने के लिए पैसे भेजने अथवा संवेदनशील वित्तीय जानकारी साझा करने के लिए कहा जाता है। आमतौर पर साइबर अपराधी वैसे बुजुर्गों को निशाना बनाते हैं, जिन्हें साइबर अपराध के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती है।

कब समझें खतरे की घंटी

साइबर अपराधी आमतौर पर पीड़ितों से ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिये संपर्क साधते हैं। गार्केल कहते हैं, ‘असल प्रवर्तन अधिकारी फोन कॉल, ईमेल अथवा सोशल मीडिया पर संदेश भेजकर किसी को गिरफ्तार अथवा उसकी जांच नहीं करते हैं।’

साइबर अपराधी द्वारा लगाए गए आरोप डराने वाले तो होते हैं मगर स्पष्ट नहीं होते हैं। खेतान ऐंड कंपनी में पार्टनर सुप्रतिम चक्रवर्ती ने कहा, ‘वे तुरंत अनुपालन की भी मांग करते हैं। अगर पीड़ित हिचकिचाता है तो उनकी धमकी भी बढ़ जाती है।’

साइबर अपराधी गोपनीयता पर भी जोर देते हैं। पीड़ितों को यहां तक कहा जाता है कि वे अपने परिजनों अथवा दोस्तों को भी इसके बारे में नहीं बताएं। बेल्लारी कहते हैं कि साइबर अपराधी गोपनीय रखने का कारण यह बताते हैं कि मामला देश की सुरक्षा से जुड़ा है और अगर आपने किसी से कुछ भी बताया तो इससे जांच प्रभवित होने का जोखिम है। चक्रवर्ती ने कहा कि साइबर अपराधी गिफ्ट कार्ड और क्रिप्टोकरेंसी जैसे तरीकों से भुगतान करने के लिए कहते हैं, ताकि उनका पता नहीं लगाया जा सके।

ऐसे फर्जीवाड़े में इस्तेमाल किए जाने वाले नकली दस्तावेजों में अक्सर गलतियां होती हैं। गार्केल का कहना है, ‘वर्तनी की गलतियां, अनौपचारिक ईमेल का डोमेन और व्यक्तिगत तौर पर मिलने से इनकार करना धोखाधड़ी का संकेत होता है।’

कैसे निपटें

अगर आपको कॉल करने वाला व्यक्ति संदिग्ध लग रहा है तो घबराएं नहीं बल्कि फोन काट दें। बंबई उच्च न्यायालय में अधिवक्ता और साइबर कानून के जानकार प्रशांत माली का कहना है, ‘फोन काट देने से साइबर अपराधियों द्वारा मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने का जोखिम कम हो जाता है।’

आप चाहें तो कॉल करने वाले से बहस भी कर सकते हैं। चक्रवर्ती ने कहा, ‘अगर कोई व्यक्ति खुद को प्रवर्तन अधिकारी होने का दावा करे तो आप उससे सरकारी पहचान पत्र अथवा नंबर मांगें। इसके अलावा, आप समन अथवा वारंट की कॉपी देने का भी अनुरोध करें।’

अगर ये जानकारी नहीं दी जा रही है तो कॉल करने वाले को साइबर अपराधी समझ लें। माली ने कहा, ‘अपराधियों द्वारा दिए गए नंबर के बजाय कथित एजेंसी से उसकी वेबसाइट (पुलिस स्टेशन अथवा सीबीआई) पर दिए आधिकारिक नंबर के जरिये संपर्क करे।’ इसके अलावा पीड़ित अपने खिलाफ वारंट अथवा समन की जांच करने के लिए किसी वकील के साथ स्थानीय पुलिस थाने भी जा सकते हैं।

इस दौरान बाहरी दुनिया से संपर्क तोड़ने से पहले पीड़ित व्यक्ति को किसी कानूनी अथवा प्रवर्तन अनुभव वाले व्यक्ति से परामर्श करना चाहिए।

बेल्लारी ने बताया कि किसी भी परिस्थिति में फोन या व्हाट्सऐप पर कोई भी व्यक्तिगत या वित्तीय जानकारी साझा नहीं की जानी चाहिए और कभी भी ऑनलाइन पैसे ट्रांसफर नहीं करें। माली स्थानीय पुलिस अथवा राष्ट्रीय साइबर अपराध हेल्पलाइन (भारत में 1930) में मामले की रिपोर्ट करने की सलाह देते हैं, जिसमें कॉलर का विवरण और ऐप आईडी प्रदान की जाती है। ऐसी घटनाओं की रिपोर्ट राष्ट्रीय साइबर अपराध पोर्टल पर भी की जा सकती है। जांचकर्ताओं की सहायता के लिए कॉल लॉग, संदेश और स्क्रीनशॉट को सुरक्षित रखना चाहिए।

First Published : June 3, 2025 | 10:36 PM IST