उत्तर प्रदेश के डीजे वाले बाबू कोरोना काल में गाना बजाना भूल चुके हैं। बीते पांच महीनों से प्रदेश के हजारों डीजे वाले बेकार बैठे हैं। इनके साथ ही ज्यादातर शहरों के ब्रास बैंड वाले भी खाली बैठे हैं। इनमें से ज्यादातर को लंबे समय से एक भी बुकिंग नहीं मिली है और आने वाले समय के लिए भी बयाना आना बंद हो चुका है। डीजे संचालकों का कहना है कि कोरोना काल में दिहाड़ी मजदूरों या फेरी वालों की तरह उन्हें किसी तरह की कोई सरकारी मदद भी नहीं मिली है और न ही किसी तरह का कोई काम उनके पास है। हालात इतने खराब हैं कि अमूमन एक कार्यक्रम का 15,000 से 20,000 रुपये लेने वाले बड़े डीजे संचालक अब जनवरी फरवरी के लिए 5,000 रुपये की बुकिंग भी लेने लगे हैं। ब्रास बैंड के संचालकों को जरुर इधर शादी ब्याह या अन्य कार्यक्रमों में बुलाया जाने लगा है पर उनका मेहनताना घट कर आधा रह गया है। ज्यादातर ब्रास बैंडों में दिहाड़ी पर बजाने वाले रखे जाते हैं जिनकी आमदनी का जरिया बंद हो गया है।
लखनऊ के मशहूर ब्रास बैंड जयभारत के संचालक मुन्ना वाल्मीकि बताते हैं कि शादियों में भीड़ को लेकर प्रशासन ने प्रतिबंध लगा रखा है और बारातें नही निकल रही हैं जिसके चलते तय पैसे के अलावा नजराना मिलना बंद हो गया है। उनका कहना है कि अक्सर फिक्स रकम से कहीं ज्यादा तो बारात में नजराना आ जाता था जो अब न के बराबर है। न्यू सोनी ब्रास बैंड के संचालक सिद्धार्थ धानुक का कहना है कि मार्च से लेकर जून तक का सीजन तो पूरी तरह से खाली गया और आने वाले समय में भी काम आने की उम्मीदें न के बराबर हैं। हालांकि उनका कहना है कि अधिकांश ब्रास बैंडों में बजाने का काम करने वाले अंशकालिक ही होते हैं और वो जीविका के लिए कोई और भी काम करते हैं पर बहुत से लोगों की रोजी रोटी का जरिया यही है। राजधानी लखनऊ के नाका इलाके में ब्रास बैंड के चार दर्जन से ज्यादा दफ्तर हैं और उनमें से कुछ के ही शटर इन दिनों उठते हैं। हाहाकारी बैंड के विजय कश्यप का कहना है कि दुकानों का किराया देना और वाद्ययंत्रों का रखरखाव का खर्च निकलना तक मुश्किल हो गया है। उनके मुताबिक बैंड में बजाने वालों के अलावा लाइट, जनरेटर व गाड़ी लेकर चलने वालों तक कमाई पर आफत आई है और सभी खाली बैठे हैं।
डीजे के लिए डांस फ्लोर तैयार करने वाले राजधानी के ऐशबाग इंडस्ट्रियल एरिया के हरिमोहन पांडे का कहना है कि पहले हर महीने आर्डर आते थे पर इन दिनों कोई काम नहीं है। उनका कहना है कि डीजे डांस फ्लोर के लिए पीवीसी की मोटी शीट बनती थी जो आमतौर पर शेड वगैरह छाने के काम नहीं आती है। इन दिनों इस शीट का निर्माण बिल्कुल बंद है। डीजे संचालक अजय त्रिवेदी बताते हैं कि पूरे सहालग, गणेश पूजा, नवरात्रि या किसी त्योहार या शगुन के मौके पर काम नहीं आया है और आगे कब तक ये हालात जारी रहेंगे कहा नही जा सकता है। त्रिवेदी का कहना है कि अकेले लखनऊ में ही पूरे जिले में 4,000 से ज्यादा डीजे वाले हैं जो गाना बजाना भूल चुके हैं। हालांकि उनका कहना है ब्रास बैंड वालों की तरह उनके सामने रख रखाव या कामगारों को वेतन देने जैसा संकट तो नहीं पर खुद का परिवार चलाना जरुर मुश्किल हो रहा है।
लखनऊ में शादियों व अन्य कार्यक्रमों का प्रबंधन करने वाले इवेंट मैनेजर दीपक सिंह का कहना है कि ब्रास बैंड व डीजे का कारोबार अकेले लखनऊ में ही 100 करोड़ रुपये सालाना से ज्यादा का है जो बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। उनका कहना है कि कमोबेश प्रदेश के छोटे कस्बे व गांवों तक फैल चुके डीजे कारोबार की हर जगह हालत खस्ता है।