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पचास साल पुराना हुआ कॉफी का प्याला

Last Updated- December 07, 2022 | 7:44 AM IST

हजरतगंज के पॉश इलाके में युवाओं को ध्यान में रखते हुए जैसे ही हैंगआउट जोन की संख्या बढ़ने लगी, 50 साल पुराने इंडियन कॉफी हाउस ने भी समय के साथ अपने को बदलना शुरु कर दिया है।


प्रबंधन इसके परंपरागत लुक को बदलकर इसे आधुनिक बनाने की सोच रहा है और इस योजना को पूरा करने में 4 से 5 महीने का वक्त लग सकता है। कॉफी हाउस एसोसिएशन के अध्यक्ष आर के सिंह ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि हमें दूसरे ईटिंग ज्वाइंट्स से बेहतर करना होगा।

पिछले कुछ सालों में चीजें काफी बदल रही है और इसमें आधुनिकता का पुट दिखाई दे रहा है। इसलिए इसकी मूल संरचना को जीवित रखते हुए इसे इस तरह से बदलना होगा ताकि इसमें आधुनिकता का पुट किया जा सके। इंडियन कॉफी हाउस की स्थापना ऑल इंडिया कॉफी वर्कर्स को-ऑपरेटिव सोसाइटी के तहत लखनऊ में 1958 में की गई थी।

इंडियन कॉफी हाउस पर लखनऊ के रईसों और बुद्धिजीवियों की काफी भीड़ लगा करती थी, लेकिन इसके अगल बगल नए जमाने के रेस्टोरेन्ट खुल जाने की वजह से बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। साठ के दशक में कॉफी हाउस बातचीत, मौज-मस्ती, बौद्धिक परिचर्चाओं, दिमाग को झकझोरने वाले वाद-विवाद के लिए एक पसंदीदा जगह माना जाता था।

हालांकि इसे 90 के दशक में बंद कर दिया गया था और फिर इसे 2001 में खोला गया। इस जगह की खास बात यह है कि यहां युवा और वृद्ध दोनों का जमावडा होता है। वैसे इनकी संख्या आए दिन घटती जा रही है क्योंकि लोगों को इससे बेहतर विकल्प मिलने लगे हैं। कॉफी हाउस पर पिछले 40 साल से लगातार आने वाले एक ग्राहक ने कहा कि आज कॉफी हाउस जिस रूप में दिख रहा है, वह पहले की अपेक्षा कुछ भी नही है।

जो लोग इस जगह के महत्व को जानते हैं, वे इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि कॉफी हाउस को अपने में बदलाव लाना चाहिए। एक दूसरे कॉफी प्रेमी ने कहा कि यहां नेतागण घंटों बैठकर राजनीतिक मुद्दों पर बहस किया करते थे और रणनीतियां बनाया करते थे। यह जगह केवल पैसे कमाने के लिए ही नहीं थी बल्कि यहां आकर लोग अपने आप को तरोताजा भी महसूस करते थे। वैसे समय के साथ बदलाव जरुरी है, लेकिन जो पहले का एहसास यहां मौजूद रहा करता था, उसे बरकरार रखना सबसे ज्यादा अहम है।

First Published - June 26, 2008 | 10:25 PM IST

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