सरकार ने सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) की परिभाषा में कुछ अहम बदलाव किए हैं। नई परिभाषा लागू होने पर करीब 99 फीसदी पंजीकृत कंपनियां और बाजार में सूचीबद्ध करीब 70 फीसदी कंपनियां एमएसएमई के दायरे में आ जाएंगी। इस तरह इन सभी कंपनियों को सरकार की तरफ से एमएसएमई क्षेत्र के लिए घोषित लाभ एवं सुविधाएं मिल सकेंगी।
बदलाव के बाद एमएसएमई क्षेत्र का दायरा काफी बड़ा हो जाएगा। पुरानी परिभाषा के तहत आने वाली कंपनियां देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में करीब 25 फीसदी योगदान देती रही हैं। इन इकाइयों का देश के कुल निर्यात में करीब 45 फीसदी अंशदान रहा है। एमएसएमई क्षेत्र में कार्यरत लोगों की संख्या करीब 12 करोड़ है। लेकिन परिभाषा में बदलाव के बाद एमएसएमई क्षेत्र की हिस्सेदारी एवं आंकड़े और भी बढ़ जाएंगे। बदलावों के असर की भयावहता का अतिशय अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। आखिर ये बदलाव किस तरह के हैं? संकल्पना के स्तर पर सेवा और विनिर्माण इकाइयों दोनों के लिए अलग-अलग मापदंड की व्यवस्था खत्म कर दी गई है। यह एक बड़ा बदलाव है। इससे भी बड़ा संकल्पनात्मक बदलाव यह है कि टर्नओवर और संयंत्रों एवं मशीनरी में निवेश का स्तर दोनों ही अब विनिर्माण एवं सेवा इकाइयों के मापदंड होंगे।
पहले संयंत्र एवं मशीनरी में निवेश ही यह तय करने का एकमात्र पैमाना होता था कि कोई इकाई एमएसएमई दायरे में आती है या नहीं। इसके पीछे सोच यह थी कि एक सेवा इकाई में जरूरी निवेश की मात्रा विनिर्माण इकाई में जरूरी निवेश से कम ही होगी। इस तरह विनिर्माण एवं सेवा इकाइयों दोनों के लिए अलग-अलग मापदंड तय किए गए थे।
विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्रों में सूक्ष्म इकाइयों के लिए निवेश सीमा क्रमश: 25 लाख एवं 10 लाख रुपये तय की गई थी। लघु उद्यमों के लिए निवेश की सीमा विनिर्माण इकाई के लिए 5 करोड़ और सेवा इकाई के लिए 2 करोड़ रुपये रखी गई थी। मध्यम दर्जे के उद्यमों के लिए निवेश सीमा विनिर्माण इकाई के लिए 10 करोड़ और सेवा इकाई के लिए 5 करोड़ रुपये थी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गत 13 मई को एमएसएमई निर्धारण के नए मापदंडों की घोषणा की थी जिसमें सूक्ष्म इकाइयों के लिए निवेश सीमा को 300 फीसदी, लघु एवं मध्यम इकाइयों के लिए 200 फीसदी बढ़ाने के साथ ही टर्नओवर की नई शर्त भी जोड़ दी गई है। इस तरह नई परिभाषा कुछ इस तरह है: विनिर्माण एवं सेवा दोनों ही क्षेत्रों में सूक्ष्म इकाइयों के लिए 1 करोड़ रुपये निवेश एवं 5 करोड़ रुपये का टर्नओवर हो, लघु उद्यमों के लिए 10 करोड़ रुपये का निवेश एवं 50 करोड़ रुपये का टर्नओवर हो और विनिर्माण एवं सेवा दोनों ही क्षेत्रों में सक्रिय मध्यम उद्यमों के लिए 20 करोड़ रुपये के निवेश एवं 100 करोड़ रुपये के टर्नओवर की शर्त रखी गई है। गत 1 जून को मध्यम उद्यमों के लिए शर्त को और शिथिल करते हुए 50 करोड़ रुपये निवेश एवं 250 करोड़ रुपये टर्नओवर कर दिया गया। हालांकि सीमा में इतनी भारी बढ़ोतरी करने के बावजूद भारत के एमएसएमई का आकार जर्मनी या दक्षिण कोरिया की समृद्धि में योगदान देने वाली एमएसएमई इकाइयों के आसपास भी नहीं होगा। जर्मनी या यूरोपीय संघ में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम इकाइयों की टर्नओवर सीमा 17 करोड़ रुपये से लेकर 427 करोड़ रुपये के बीच है। वहीं दक्षिण कोरिया में ऐसी इकाइयों के लिए अलग स्लैब हैं लेकिन उन सबकी निवेश सीमा भारत में किए गए बदलाव के बाद भी काफी अधिक है। उनकी निवेश सीमा 300 करोड़ रुपये से लेकर 1,130 करोड़ रुपये के बीच है।
ऐसे में भारतीय एमएसएमई क्षेत्र के जर्मनी या दक्षिण कोरिया की लघु एवं मध्यम इकाइयों की बराबरी कर पाने का सपना फिलहाल पूरा होता हुआ नहीं दिख रहा है। आकार का अंतर तो घटा है लेकिन अब भी यह काफी अधिक है। लेकिन निवेश एवं टर्नओवर सीमाओं में किए गए बदलावों से भारत के एमएसएमई क्षेत्र को नए अवसरों के दोहन एवं सरकार की तरफ से दी जा रही सुविधाओं का लाभ उठाने में मदद मिलनी चाहिए। सरकार ने कोविड महामारी से निपटने के लिए घोषित राहत पैकेज के क्रम में एमएसएमई क्षेत्र के लिए कई रियायतों की घोषणा की है।
सरकार ने सरकारी खरीद की प्रक्रिया में एमएसएमई को एक तरह का सुरक्षा आवरण दिया है। अब यह तय किया गया है कि 200 करोड़ रुपये से कम राशि की सरकारी खरीद के ठेकों में वैश्विक निविदा जारी करने की जरूरत नहीं होगी। दूसरे शब्दों में, भारत के एमएसएमई को 200 करोड़ रुपये से कम के सरकारी ठेकों के लिए वैश्विक कंपनियों से प्रतिस्पद्र्धा का सामना नहीं करना होगा। लेकिन ऐसी रोक होने से सरकार को कम कीमत पर बेहतर गुणवत्ता सुनिश्चित करने में वैश्विक प्रतिस्पद्र्धा के लाभ नहीं मिल पाएंगे। लेकिन ऐसा लगेगा कि मध्यम इकाइयों के लिए निवेश एवं टर्नओवर सीमाओं को बढ़ाकर क्रमश: 50 करोड़ रुपये और 250 करोड़ रुपये करना भारत में एमएसएमई क्षेत्र के लिए एक संपूर्ण वरदान नहीं है।
मझोले उद्यमों में शामिल अपेक्षाकृत छोटी इकाइयों को अब उन बड़ी कंपनियों से प्रतिस्पद्र्धा का सामना करना होगा जिन्हें नई परिभाषा के तहत एमएसएमई का दर्जा मिल गया है। इसलिए अपेक्षाकृत छोटी कंपनियों को प्रतिस्पद्र्धा के लायक एवं मजबूत बनाने के लिए घरेलू स्तर पर तत्काल नीतिगत सुधार करने की जरूरत है। इससे उनकी कारोबारी सुगमता में भी सुधार होगा। किसी तालाब में बड़ी मछली का आना छोटी मछलियों के लिए अच्छी खबर नहीं मानी जा सकती है। भारत के एमएसएमई क्षेत्र में दशकों पुराना मत्स्य न्याय सिद्धांत जल्द ही अपेक्षाकृत छोटी मध्यम इकाइयों को निगलने लगेगा। ऐसे में सूक्ष्म एवं लघु इकाइयां आने वाले समय में अपने से बड़ी इकाइयों से खतरा महसूस होने पर सरकार से अधिक राहत की मांग करते हुए दिखाई दे सकती हैं।