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हिंडनबर्ग प्रकरण से उबर जाएगा भारत

Published by
मिहिर एस शर्मा
Last Updated- February 14, 2023 | 10:35 PM IST

भारत में किसी भी विषय पर एक राय बना पाना काफी मुश्किल होता है। मगर अदाणी समूह की वित्तीय स्थिति पर हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के संभावित असर पर लोगों की राय काफी मिलती है।

इस समय अदाणी के कुछ शेयर कई वर्षों के निचले स्तर पर पहुंच गए हैं। ऐसे में कई लोगों को लगता है कि अदाणी समूह के लिए अब आगे कारोबारी दबाव कायम रख पाना मुश्किल हो जाएगा। कुछ लोगों का मानना है कि अदाणी मामले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गंभीर राजनीतिक परिणाम भुगतने होंगे। लोगों के मन में ऐसे भाव आते रहे हैं कि मोदी का कद बढ़ने के साथ ही अदाणी समूह का कारोबार भी फलता-फूलता रहा है।

मगर मोदी की लोकप्रियता ऐसी है कि अदाणी जैसा एक मामला उनकी छवि को कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा। भारत की वर्तमान आर्थिक रणनीति देश के अग्रणी क्षेत्रों और दिग्गज उद्योगपतियों की पहचान पर निर्भर है। किसी को भी नहीं लगता कि केवल एक उद्योगपति के दबाव में होने से भारत की यह आर्थिक रणनीति बदल जाएगी।

हालांकि आलोचकों एवं समर्थकों दोनों को ही लगता है कि अदाणी मामले का वास्तविक असर भारत की छवि पर जरूर पड़ेगा। उनके अनुसार एक नीतिगत क्षेत्र निवेश के एक बाजार और कारोबार के केंद्र के रूप में भारत की छवि धूमिल हो सकती है।

देश के कुछ लोगों को यह भी लगता है कि अदाणी समूह पर हिंडनबर्ग समूह की रिपोर्ट एक साजिश है जो भारत को नीचा दिखाने के लिए रची गई है। हालांकि, कुछ लोग ऐसे हैं जो इस पूरे मामले के बाद यह सोच कर चिंतित हैं कि भारत की लोकप्रियता ऐसे समय में निवेशकों की नजरों में कम हो जाएगी जब उनकी रुचि यहां के बाजारों में लगातार बढ़ रही है।

ये दोनों ही विचार वास्तविकता की कसौटी पर खरा नहीं उतरते हैं। एक विचार एक सीमा से अधिक अप्रासंगिक लगता है और दूसरा तुलनात्मक रूप से थोड़ा कम। जिन लोगों को लग रहा है कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट एक साजिश का नतीजा है उन्हें यह जरूर समझना चाहिए कि पश्चिमी जगत में ऐसा कोई खेमा नहीं है जो भारत को कमजोर करना चाहता है। वास्तव में स्थिति इसके उलट है।

पश्चिमी जगत ने भारत की लांग टर्म की आर्थिक संपन्नता पर मोटा दांव लगाया है। पश्चिमी जगत में ऐसे लोग नहीं है जो सोचते हैं कि भारत कमजोर हो जाएगा। अगर पश्चिमी जगत में भारत को लेकर कोई संस्थागत पूर्वग्रह है तो वे कुछ इस तरह हैं।

पहली धारणा यह है कि भारत चीन के प्रभाव को कम करने के लिए पर्याप्त आर्थिक तरक्की करने में सक्षम है। दूसरी धारणा यह है कि भारत में निवेश के बड़े अवसर होंगे जिनसे पश्चिमी जगत के निवेशकों को मुनाफा कमाने के मौके प्राप्त होंगे। तीसरी धारणा यह है कि भारत चीन से इस मायने में अलग है कि यहां अधिक खुली एवं पारदर्शी व्यवस्था है। सरल शब्दों में कहें कि पश्चिमी जगत में ऐसा कोई खेमा नहीं है जो भारत को कमजोर करने में किसी तरह की दिलचस्पी रखता है।

साजिश की बात करने वाले लोग कभी भी सच्चे मन से और तर्कसंगत रूप से यह साबित कर पाएंगे कि पश्चिमी जगत में ऐसे खेमे को भारत को कमजोर कर क्या फायदा होगा। उन लोगों के बारे में क्या कहा जाए जो इस बात से दुखी हैं कि अदाणी समूह पर हिंडनबर्ग रिसर्च जैसी रिपोर्ट दुनिया को भारत से दूर ले जा सकती हैं? ऐसे लोग पूरी तस्वीर पर विचार नहीं कर रहे हैं।

अदाणी समूह पर आई रिपोर्ट के बाद पैदा हुए इस पूरे विवाद पर भारतीय संस्थानों, नियामकों या राजनीतिज्ञों पर मुख्य आरोप यह लगाया गया है कि अदाणी समूह में निवेश से संबंधित विवादित मामलों में प्रतिभूति बाजार नियामक ने तेजी से कदम नहीं उठाए हैं।

यह एक ऐसा आरोप है जिसका उत्तर आसानी से दिया जा सकता है। अगर यह आरोप सही साबित होता है तब भी इसमें आसानी से सुधार किया जा सकते हैं। वृहद भारतीय अर्थव्यवस्था पर ऐसे किसी बदलाव का असर बहुत अधिक नहीं होना चाहिए। मसलन एक तर्कसंगत जवाब दे दिया जाए तो भारतीय संस्थानों पर भरोसा और पुख्ता हो जाएगा।

यह ध्यान देने योग्य बात है कि इस पूरे मामले पर सरकारी अधिकारियों का बयान काफी नपा-तुला रहा है। इससे स्पष्ट होता है कि सरकार इस विषय से स्वयं को दूर रखने का प्रयास कर रही है।

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि ‘केवल ऐसे एक मामले से, भले ही दुनिया में इसकी कितनी भी चर्चा क्यों नहीं हो रही हो, भारतीय बाजार पर कोई असर नहीं होने जा रहा हैं।‘ यह किसी भी तरह से आरोपों की सच्चाई का आकलन नहीं करता है, बस केवल इस बात की ओर इशारा करता है कि भारतीय बाजार के संचालन एवं नियमन इस मामले से परे हैं और इस मामले से उनका कोई लेना-देना नहीं है।

यह पता नहीं चल रहा कि वित्त मंत्री के इस बयान को किस तरह और बेहतर बनाया जा सकता था। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री ने संसद में कहा कि भारत सरकार इस मामले से किसी तरह नहीं जुड़ी है। उन्होंने कहा कि इस मामले में तथाकथित आंकड़े शेयर बाजार की गणना पर आधारित है।

इस बीच, खबर है कि कंपनी मामलों के महानिदेशक ने इस मामले में लगाए गए आरोपों पर विचार करने के बाद अपनी प्रतिक्रिया दी है।

अगर ऐसे मामलों में सरकार का रुख ऐसा रहता है तो इस बात की पूरी आशंका है कि भारतीय संस्थानों की विश्वसनीयता पर गहरा धब्बा लग जाएगा।

भारत का कद दुनिया में बढ़ रहा है और इसकी अर्थव्यवस्था का आकार भी बढ़ रहा है, साथ ही कंपनियों एवं संस्थानों का रुतबा भी दुनिया में बढ़ रहा है। ऐसे में उनकी तहकीकात और समीक्षा तो होगी ही।
इसे खतरे के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि दुनिया में भारत एवं इसके संस्थानों के बढ़ते दबदबे के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए। ऐसे मामले सकारात्मक भी हो सकते हैं और नकारात्मक भी। मगर यह जरूरी नहीं है कि नकारात्मक मामले व्यापक राष्ट्रीय हित को नुकसान पहुंचाए। जब तक हमारा रवैया तर्कसंगत और पारदर्शी रहेगा तब तक कोई नुकसान नहीं होगा। अदाणी प्रकरण से हमें तत्काल यही सबक लेना चाहिए।
First Published : February 14, 2023 | 10:35 PM IST