देश में श्रम संबंधों का संचालन करने वाले 40 केंद्रीय और 100 राज्यस्तरीय कानून मौजूद हैं जो औद्योगिक विवादों के निस्तारण, कार्य परिस्थितियों, सामाजिक सुरक्षा और वेतन भत्तों जैसे विभिन्न मामलों से संबंधित हैं।
बीते वर्षों के दौरान देश में श्रम कानूनों की बहुलता, पुरातन प्रावधानों, परिभाषाओं की अनिश्चितता और अस्पष्टता के कारण इनका अनुपालन कठिन हो गया। दरों की बहुलता के अलावा श्रम कानूनों की जटिलता भी देश की औद्योगिक वृद्धि को प्रभाावित कर रही थी। इस मसले को हल करने के लिए सरकार ने साहसी कदम उठाते हुए श्रम कानूनों को सरलीकृत करते हुए चार व्यापक श्रम संहिताओं में शामिल करने का प्रावधान किया।
मौजूदा 44 केंद्रीय कानूनों और 29 केंद्रीय श्रम कानूनों को समेकित करके चार श्रम संहिताओं में शामिल किया गया- वेतन संहिता (2019), सामाजिक सुरक्षा संहिता (2020), औद्योगिक संबंध संहिता (2020) और व्यावसायिक, सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य परिस्थिति संहिता (2020)।
इन श्रम संहिताओं को संसद के दोनों सदनों की मंजूरी मिली और राष्ट्रपति ने भी उन्हें स्वीकृति प्रदान की। चारों श्रम संहिताओं पर मसौदा केंद्रीय नियम केंद्र सरकार द्वारा पूर्व प्रकाशित किए गए। चार वर्ष बाद उनके अनुमानित लाभ अभी भी हासिल होने बाकी हैं क्योंकि इनका क्रियान्वयन नहीं हो पाया।
इस संदर्भ में श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने राज्य सरकारों के अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित करने की योजना की घोषणा की है ताकि उन्हें श्रम संहिताओं से परिचित कराया जा सके।
इस पहल का स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि इन संहिताओं में कारोबारी सुगमता बढ़ाने और औपचारिक रोजगार निर्माण करने की पूरी संभावना है। ये संहिताएं कई अहम बदलाव लाएंगी जिसमें मौजूदा 100 के बजाय 300 कर्मचारियों वाले औद्योगिक प्रतिष्ठानों में कर्मचारियों की छंटनी की सीमा बढ़ाने जैसी बातें शामिल हैं।
नियोक्ताओं के लिए इस प्रकार लचीलापन बढ़ाने से और अधिक निवेश आएगा क्योंकि तब कंपनियां अपनी श्रम शक्ति को कारोबार की जरूरत के हिसाब से घटा-बढ़ा सकेंगी और उन्हें किसी नियामकीय बाधा का सामना नहीं करना होगा। कामगारों के हड़ताल करने के अधिकार को लेकर भी बदलाव किए गए हैं।
इसके अलावा सामाजिक सुरक्षा के लाभ को बढ़ाकर श्रमिकों के एक बड़े हिस्से तक कर दिया गया है। इसके कारण परिचालन लागत में इजाफा हो सकता है लेकिन इससे श्रम शक्ति अधिक सुरक्षित और प्रेरित महसूस करेगी। इससे उत्पादक में भी इजाफा देखने को मिलेगा।
श्रम समवर्ती सूची का विषय है जिस पर संसद और विधानसभाएं दोनों कानून बना सकती हैं। क्रियान्वयन में अवश्य देरी होती रही है क्योंकि कुछ राज्यों को अभी भी इन संहिताओं के अधीन नियम तय करने हैं। वीवी गिरि राष्ट्रीय श्रम संस्थान के मुताबिक 24 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने इन चारों संहिताओं के अधीन नियम बना लिए हैं।
पश्चिम बंगाल, मेघालय, नगालैंड, लक्षद्वीप और दादरा एवं नागर हवेली को अभी नियम बनाने हैं। स्पष्ट है कि केंद्र सरकार संहिताओं को तभी लागू करना चाहती है जब सभी राज्य एकमत हों। ऐसा इसलिए कि क्रियान्वयन के बाद कानूनी दिक्कतों से बचा जा सके।
इसके अलावा कुछ राज्यों में जहां मसौदा नियम बन चुके हें वहां राज्यों की संहिताएं केंद्र की संहिताओं से अलग हैं। इससे क्रियान्वयन में दिक्कत आएगी। केंद्र ने राज्य सरकारों के अधिकारियों को श्रम संहिताओं के बारे में संवेदी बनाने काम शुरू करके अच्छा किया है। उसे मतभेदों को दूर करने पर काम करना चाहिए।
भारत को कारोबारी सुगमता सुधारने, विनिर्माण आधार बढ़ाने और बाहरी प्रतिस्पर्धा में बेहतरी के लिए आधुनिक श्रम कानूनों की आवश्यकता है। इससे बहुप्रतीक्षित रोजगार तैयार होंगे और अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक वृद्धि संभावनाओं में सुधार होगा।