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आर्थिक सुधार से मिलेगी अर्थव्यवस्था को रफ्तार

मुद्रास्फीति, विशेषकर गैर-खाद्य एवं ईंधन (Core Inflation) कम हो रही है और खुदरा मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2025 के अंत तक घटकर 4 प्रतिशत के करीब आ सकती है।

Last Updated- May 31, 2024 | 9:33 PM IST
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ऊंची आर्थिक वृद्धि दर निरंतर बनाए रखने के लिए देश को कठिन सुधारों के मार्ग पर चलना होगा। बता रहे हैं सौगत भट्टाचार्य

निकट अवधि के वृहद आर्थिक हालात पर 2024 के आम चुनाव का संभवतः असर नहीं होगा। हालांकि, वैकल्पिक नीतिगत दृष्टिकोण के साथ कठिन नीतिगत उपायों और सुधार कार्यक्रमों से माध्यम से दीर्घ अवधि में आर्थिक तस्वीर काफी अलग दिख सकती है।

वैश्विक स्तर पर परिस्थितियां अब भी अस्थिर एवं अनिश्चित लग रही हैं, मगर जी-7 अर्थव्यवस्थाएं अस्थायी चुनौतियों का सामना करने के बाद सामान्य स्थिति में लौटती दिख रही हैं। इसे देखते हुए जो नीतिगत उपाय किए जाएंगे वे आर्थिक विकास के लिए अधिक अनुकूल होंगे और ब्याज दरें धीरे-धीरे कम होनी शुरू हो जाएंगी। तेजी से उभरते बाजारों के लिए यह स्थिति अनुकूल साबित होगी और निवेशकों में जोखिम लेने का साहस बढ़ने से पूंजी निवेश भी बढ़ेगा।

इस संदर्भ में विवेचना करें तो घरेलू आर्थिक तस्वीर अधिक साफ लग रही है और ताजा अनुमान मांग लगातार मजबूत रहने के संकेत दे रहे हैं। वित्त वर्ष 2023-24 में आर्थिक वृद्धि दर लगभग 8 प्रतिशत रहने का अनुमान है और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने वित्त वर्ष 2025 के लिए जो अनुमान दिए हैं वे भी वास्तविकता के करीब ही लग रहे हैं।

केंद्र ने विवेकपूर्ण मौद्रिक नीति के अनुरूप राजकोषीय स्तर पर सधी नीति अपनाई है जिससे निवेशकों का उत्साह बढ़ा है। भारत में मौद्रिक नीति का क्रियान्वयन बेहतरीन रहा है और यह दुनिया में सबसे अधिक चुस्त-दुरुस्त लग रही है।

घरेलू उपभोग की बात करें तो वित्त वर्ष 2024 की चौथी तिमाही में उपभोक्ता कंपनियों के नतीजे ग्रामीण क्षेत्रों में मांग में सुधार के संकेत दे रहे हैं। सामान्य मॉनसून के अनुमानों से इन इलाकों में मांग और अधिक मजबूत मिली है।

उपभोक्ता वस्तुओं का आयात भी अवश्य बढ़ेगा मगर इससे भारत का चालू खाते का घाटा बहुत अधिक प्रभावित होने की आशंका नहीं दिख रही है। यह घाटा पिछले वर्ष के अनुमानित 1 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2025 के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 1.2 प्रतिशत तक रह सकता है।

मुद्रास्फीति, विशेषकर गैर-खाद्य एवं ईंधन (Core Inflation) कम हो रही है और खुदरा मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2025 के अंत तक घटकर 4 प्रतिशत के करीब आ सकती है। इससे मौद्रिक नीति के स्तर पर भी राहत मिलेगी।

सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यमों (MSME) को ऋण आवंटन मजबूत रहा है। इसमें 24 मार्च, 2024 तक सालाना आधार पर 20.1 प्रतिशत इजाफा हुआ है। एमएसएमई को गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) की तरफ से मिलने वाले ऋणों की रफ्तार वित्त वर्ष 2024 के पहले नौ महीनों में थोड़ी सुस्त रही है। मगर यह तब भी मजबूत लग रही है।

हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में दर्ज आर्थिक सफलता के बावजूद अगले 10 वर्षों तक 7 प्रतिशत दर से आर्थिक वृद्धि हासिल करना आसान नहीं रहने वाला है। यह सिलसिला बनाए रखने के लिए कई उपाय करने होंगे और एक दूसरे के साथ पूरे समन्वय के साथ क्रियान्वित होने पर ही वे कारगर साबित होंगे।

पूर्ण समन्वय के साथ क्रमबद्ध तरीके से सुधार कार्यक्रमों को आगे बढ़ाना देश की अर्थव्यवस्था के लिए खासा अहम होगा। संसाधनों की उपलब्धता एक बड़ी बाधा साबित हो सकती है जिससे विभिन्न आवश्यक लक्ष्यों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य का चयन करना पड़ सकता है। यह करना बिल्कुल सरल नहीं होगा मगर परिस्थितियों के अनुसार निर्णय तो लेने पड़ेंगे।

कम होती ब्याज दरें, बहीखाते पर कर्ज का बोझ कम होने और अनुमानित खपत बढ़ने के बीच निजी कंपनियों द्वारा पूंजीगत व्यय बढ़ाने से सार्वजनिक क्षेत्र को समर्थन मिलेगा। वर्ष 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य हासिल करने के लिए भारी भरकम निवेश की आवश्यकता होगी। इसके लिए वैश्विक पूंजी कोष से भी मदद लेने का विकल्प भी खुला रखना होगा।

हालांकि, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि देश की अर्थव्यवस्था आर्थिक चुनौतियों की जद से पूरी तरह बाहर नहीं हुई है। नीतिगत एवं नियामकीय उपायों से संरचनात्मक खामियों को दूर करना होगा। बेरोजगारी, खासकर युवाओं के बीच, सबसे विकट समस्या है और अब तकनीक के स्तर पर प्रगति से यह समस्या और गहराती जाएगी।

नौकरी की गुणवत्ता उनकी उपलब्धता की तरह ही महत्त्वपूर्ण है। वित्त वर्ष 2024 की चौथी तिमाही के सावधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के आंकड़े दर्शाते हैं कि शहरी क्षेत्रों में केवल 47.4 प्रतिशत नौकरियां वेतनभोगी या नियमित वेतन वाली थीं। लगभग 40.2 प्रतिशत लोग स्व-रोजगार से जुड़े थे। 12.5 प्रतिशत अनियमित श्रमिक थे। ग्रामीण क्षेत्रों में वेतनभोगी कर्मचारियों की संख्या काफी कम है।

बेरोजगारी की समस्या दूर करने और रोजगार को बढ़ावा देने के लिए एमएसएमई क्षेत्र के सूक्ष्म एवं लघु खंडों से जुड़ी नीतियों पर ध्यान देना होगा। इस खंड के आकार एवं मानकों से जुड़े आंकड़े काफी पुराने हैं और अब उपयोगी नहीं रह गए हैं। आखिरी आर्थिक सर्वेक्षण 2013 में किया गया था और गैर-सूचीबद्ध उद्यमों का सर्वेक्षण 2016 में हुआ था। अन्य सर्वेक्षण प्रतिष्ठानों, रोजगार एवं आर्थिक गतिविधियों पर अलग-अलग आंकड़े देते हैं।

एक प्रगतिशील एमएसएमई तंत्र के लिए ऋण आवंटन में इजाफा, सरकारी खरीद समर्थन, कर्मचारियों को हुनरमंद एवं उद्यमशील बनाने पर जोर, व्यापक बीमा सुरक्षा, विपणन समर्थन (उदाहरण के लिए ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स), निर्यात से जुड़ी संभावनाएं बढ़ाने सहित अन्य उपाय करने होंगे।

एमएसएमई को बढ़ावा देने के साथ ही वस्तु एवं सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा देने की भी आवश्यकता है। भारत ने वर्ष 2030 तक 1 लाख डॉलर का निर्यात लक्ष्य रखा है मगर इसके लिए सालाना 15 प्रतिशत वृद्धि की आवश्यकता होगी। इसके साथ ही नए एवं मौजूदा बाजारों में पहुंच बढ़ाने और नए मुक्त व्यापार एवं निवेश समझौतों की भी दरकार होगी। भारत को वैश्विक आपूर्ति एवं मूल्य व्यवस्थाओं के साथ अधिक गहराई के साथ जुड़ना होगा। श्र

म उन्मुखी रोजगार सृजन करने वाले उद्यमों को बढ़ावा देना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। सेवाओं का निर्यात न केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ जुड़ने का अवसर देता है बल्कि मूल्य व्यवस्था में आगे (उच्च शोध एवं नए ढांचे तैयार करने की क्षमता विकसित करना) बढ़ने का भी मौका देता है।

1 लाख करोड़ डॉलर का महत्त्वाकांक्षी निर्यात लक्ष्य का यह भी मतलब है कि आयात 1.5 लाख करोड़ डॉलर पार कर जाएगा। इतने बड़े पैमाने पर वस्तुओं का परिवहन करने के लिए विश्व-स्तरीय परिवहन सुविधा चाहिए। सुदूर क्षेत्रों तक संपर्क मुहैया कराने वाले बंदरगाह टर्मिनल को अद्यतन करना होगा।

सरकार ने परिवहन एवं माल ढुलाई प्रणाली में सुधार के व्यापक कदम उठाए हैं मगर गति शक्ति और भारतमाला जैसी पहल को और मजबूती देनी होगी। दो समर्पित माल गलियारों का परिचालन (जिनका काम लगभग पूरा होने वाला है) और अधिक व्यस्त मार्गों पर नए गलियारों का क्रियान्वयन खासा महत्त्वपूर्ण होगा।

दीर्घ अवधि में सरकार को महत्त्वपूर्ण संरचनात्मक बदलाव को आगे बढ़ाना होगा। यह सतत विकास के लिए जरूरी उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए महत्त्वपूर्ण है। वैश्विक स्तर पर शहरीकरण के कारण उत्पादकता में वृद्धि हुई है।

भारत में शहरीकरण की रफ्तार कमजोर रही है। वर्ष 2012 में शहरी आबादी का अनुपात लगभग 31.6 प्रतिशत था, जो 2022 में बढ़कर महज 35.9 प्रतिशत हो पाया। इसी अवधि में चीन में शहरी आबादी 53.1 प्रतिशत से बढ़कर 64.9 प्रतिशत हो गई (1980 में यह अनुपात 19.4 था जो मोटे तौर पर भारत के बराबर ही था)।

भारत में जमीन की कम उपलब्धता शहरीकरण की राह में सबसे बड़ी समस्या है, हालांकि बेहतर सड़क, रेल एवं मेट्रो संपर्क शहरों की सीमा का विस्तार कर रहे हैं। पहले शुरू की गई पहल प्रोवाइडिंग अर्बन एमेनिटीज इन रूरल एरियाज पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

अंत में, एक उच्च मध्य-आय अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ने में जरूरी ऊंची वृद्धि दर कायम रखने के लिए आवश्यक सुधार कार्यक्रमों का प्रभावी ढंग से क्रियान्वयन जरूरी होगा। इसके लिए इसके लिए संघवाद के मूल सिद्धांतों के अनुरूप केंद्र, राज्य और स्थानीय निकायों के बीच सटीक तालमेल होना जरूरी है।

(लेखक अर्थशास्त्री हैं)

First Published - May 31, 2024 | 9:25 PM IST

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