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देश की व्यापक और विशिष्ट जनांकिकी और तमाम विरोधाभासों के बावजूद तेजी से उभरते टेक क्षेत्र और 108 यूनिकॉर्न के साथ भारत में प्रौद्योगिकी को अपनाने की प्रक्रिया तेज गति से चल रही है। ब्लॉकबस्टर एबीसीडी तकनीकों –आर्टिफिशल इंटेलिजेंस, ब्लॉकचेन, क्लाडड एडॉप्टेशन और डेटा एनालिटिक्स की परिवर्तनकारी क्षमताएं तो पूरी तरह निर्विवाद हैं और वे तेजी से हमारे रोजमर्रा के जीवन में पैठ बना रही हैं। अब हम अपने ऊपर एआई के प्रभाव को लेकर पहले की तरह लापरवाह नहीं रह सकते। चाहे बात खुदरा क्षेत्र की हो, अस्पतालों की, कृषि की या हमारी रक्षा प्रणालियों की। इसके बावजूद एक अहम चुनौती अभी तक अनसुलझी है और वह है डेटा संप्रभुता।
तकनीक वैश्विक आर्थिक व्यवस्था को निरंतर नया आकार दे रही है ऐसे में भारत को अपने विचारों को नए सिरे से सुसंगत बनाना होगा और इस बात को ध्यान में रखना होगा कि हमारा डिजिटल भविष्य सुनिश्चित करने का काम बाह्य संस्थाओं द्वारा नहीं तय होना चाहिए बल्कि उसकी बुनियाद सुरक्षित, संप्रभु और आत्मनिर्भर डेटा संचालन पर होनी चाहिए।
नए व्यापारिक शुल्कों और पहलगाम जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में सख्त सुरक्षा को देखते हुए डेटा सुरक्षा केवल नियामकीय चुनौती नहीं रह गई है। अब यह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मसला है। देश के बुनियादी ढांचे पर साइबर हमले भी बढ़े हैं। 2019 से 2023 के बीच भारतीय कंप्यूटर आपात प्रतिक्रिया दल (सीईआरटी-इन) के पास दर्ज साइबर सुरक्षा संबंधी घटनाएं चार गुना से अधिक बढ़ गई हैं। इस अवधि में सरकारी संगठनों से संबंधित मामले दोगुने से अधिक हो गए। इस समय देश में शासन से लेकर बैंकिंग और स्वास्थ्य सेवा तक सबकुछ डिजिटल किया जा रहा है। ऐसे में मामूली सेंध भी बड़ी क्षति पहुंचा सकती है।
सरकार ने देश को सेमीकंडक्टर का गढ़ बनाने की योजना बिल्कुल समय पर आरंभ की है लेकिन बिना एंड टु एंड डेटा संरक्षण में समानांतर निवेश किए हम डेटा समृद्ध लेकिन सुरक्षा की दृष्टि से कमजोर अर्थव्यवस्था बन सकते हैं। हमें डेटा संरक्षण में निजी, सार्वजनिक जैसे तमाम तरह के निवेश की आवश्यकता है।
दुनिया निरंतर संरक्षणवादी रुख अपना रही है। यूरोप और अमेरिका के डेटा कानून खासतौर पर जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (जीडीपीआर) और कैलिफोर्निया कंज्यूमर प्राइवेसी एक्ट (सीसीपीए) आदि वैश्विक डेटा निजता ढांचे को आकार दे रहे हैं। इससे दुनिया के विभिन्न देश अपने-अपने नियमन को दुरुस्त करने को लेकर प्रेरित हुए हैं। चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने मजबूत डेटा संचालन नीतियां बनाई हैं, वे निजता और आर्थिक तथा सुरक्षा चिंताओं के बीच संतुलन कायम कर रहे हैं। दक्षिण पूर्वी एशिया की अर्थव्यवस्थाएं जिनमें सिंगापुर और इंडोनेशिया शामिल हैं, वे अपने नियंत्रण सख्त कर रही हैं। जाहिर है वे विदेशी टेक दबदबे को लेकर चिंतित हैं। डिजिटल शक्ति में बदलाव के साथ डेटा स्वामित्व की लड़ाई वैश्विक भू राजनीति में एक बड़ा मुद्दा बनने जा रही है।
भारत का तेजी से विकास हो रहा है और वह मध्यम आय से उच्च आय वाली अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। केवल चुनिंदा दक्षिणपूर्वी एशियाई देश मसलन सिंगापुर, हॉन्गकॉन्ग, ताइवान और दक्षिण कोरिया ने ही सफलतापूर्वक यह हासिल किया है। भारत के लिए टिकाऊ वृद्धि का अहम स्रोत डिजिटली मजबूत होने में है और इसके लिए मजबूत डेटा संरक्षण आवश्यक है।
अनुकूल जनांकिकी
हमारे लिए बहुत कुछ घटित हो रहा है। भारत ने 2013 के बाद से वैश्विक नवाचार सूचकांक रैंकिंग में सबसे तेज छलांग लगाई है और 2013 के 65वें स्थान से वह 2024 में 39वें स्थान पर आ गया है। गार्टनर डिजिटल वर्कप्लेस सर्वे में भारत को डिजिटली सबसे निपुण देश बताया गया है। इस मामले में वह यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका से भी आगे है। इसके लिए इसकी बड़ी युवा श्रम शक्ति जिम्मेदार है। 1.59 लाख से अधिक स्टार्टअप तथा तेजी से विकसित होती डिजिटल अर्थव्यवस्था के साथ भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप हब है। अनुमान है कि 2030 तक देश में फोर्ब्स ग्लोबल 2000 कंपनियों के 620 से अधिक वैश्विक क्षमता केंद्र (जीसीसी) मौजूद होंगे। इससे तकनीकी पॉवर हाउस की हमारी छवि मजबूत होगी।
ऐतिहासिक रूप से देखें तो आर्थिक नीति का संबंध बाजार में दबदबे और प्रतिस्पर्धा से रहा है। आज, यह डेटा पर नियंत्रण से तय होती है। तकनीक ई-कॉमर्स को बदल रही है और चैटजीपीटी जैसे एआई संचालित नवाचार ने दिखाया है कि नवाचार और नई खोज में बढ़त बनाए रखना अहम है। माना जा रहा है कि भौतिक विस्तार के साथ देश की जनांकिकीय बढ़त और मांग आधारित वृद्धि की मदद से सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि 5-6 फीसदी रहेगी, जबकि वैश्विक अर्थव्यवस्था 1-2 फीसदी पर स्थिर रहेगी। तकनीक अपने आप में निरपेक्ष है लेकिन हमारे डेटा के संरक्षण के लिए नियामक की स्थापना सही दिशा में एक कदम होगा।
फरवरी 2025 तक भारत में 153 डेटा सेंटर थे। मुंबई 38 डेटा केंद्रों के साथ शीर्ष पर था जबकि बेंगलूरु में 21 केंद्र थे। क्रिसिल रेटिंग्स रिपोर्ट के अनुसार भारतीय डेटा सेंटर उद्योग की क्षमता वित्त वर्ष 27 तक 2-2.3 गीगावॉट हो जाएगी। जेएलएल इंडिया का अनुमान है कि 2026 तक कुल 1,521 मेगावॉट क्षमता होगी। इस तेज विस्तार के जोखिम भी हैं। सर्वस्वीकार्य डिजिटल संप्रभुता ढांचे की कमी ने वैश्विक डिजिटल पारिस्थितिकी को ऐसी स्थिति में बदल दिया है जहां बहुराष्ट्रीय कंपनियां नियामकीय कमियों का लाभ लेकर डेटा स्वामित्व की शर्तें तय कर रही हैं। कड़े घरेलू कानूनों के बावजूद भारत ने यह प्रत्यक्ष महसूस किया कि वैश्विक टेक कंपनियों ने कैसे नियमन को किनारे करके संवेदनशील डेटा पर नियंत्रण किया। ओपनएआई ने हाल ही में एक भारतीय अदालत में दोहराया है कि चैटजीपीटी के डेटा को हटाना अमेरिकी कानूनी दायित्वों का उल्लंघन होगा।
दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश हर क्षण बहुत अधिक डेटा तैयार करता है लेकिन इनमें से अधिकांश विदेशी सर्वरों में रखा जाता है। हमारी नागरिक सेवाएं अधिकांशतया चीनी चिप पर आधारित हैं जो असुरक्षित हैं। यह बात हमें कमजोर बनाएगी।
वर्तमान नवाचार
भारत को वैश्विक नियामकीय ढांचा बनाने का आह्वान करना चाहिए जो डेटा की संप्रभुता सुनिश्चित करे। पेरिस में आयोजित एआई एक्शन समिट जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सह-अध्यक्ष थे, उसमें इनमें से कुछ चिंताओं को दूर करने की कोशिश की गई परंतु प्रगति बहुत धीमी है। पीएम मोदी ने वहां कहा था, ‘हमारे साझा मूल्यों को बरकरार रखने, जोखिम को कम करने और विश्वास मजबूत करने के लिए सामूहिक वैश्विक प्रयासों की आवश्यकता है ताकि बेहतर मानक तैयार किए जाएं।’ उनके शब्द इस बात को रेखांकित करते हैं कि मजबूत डेटा संप्रभुता नीति की तत्काल आवश्यकता है। इससे जुड़ी तमाम चिंताएं हैं मसलन बौद्धिक संपदा अधिकार, निजता, सुरक्षा, डीपफेक और तमाम ऐसी बातें जो सामाजिक तानेबाने की परीक्षा ले सकती हैं। हमें इस पर नजर रखनी होगी।
भारत को अपने बढ़ते डिजिटल कद का लाभ लेते हुए एक नियामकीय ढांचा तैयार कराना चाहिए जो नागरिकों के डेटा की सुरक्षा करे। इसके लिए वैश्विक सहयोग करना चाहिए। कानूनी कमियों को दूर किया जाना चाहिए। भारत में सार्वजनिक क्लाउड सेवा बाजार के 2028 तक 25.5 अरब डॉलर होने की उम्मीद है। अंतरराष्ट्रीय डेटा निगम के मुताबिक यह सालाना 24.3 फीसदी की दर से बढ़ेगा। बिना मजबूत नियमन के यह वृद्धि केवल विदेशी संस्थाओं को ही लाभ पहुंचाएगी। जेनरेटिव एआई के कारण उत्पादकता सर्वथा नए क्षेत्र में पहुंच रही है। ऐसे में भारत को अपने डेटा पर नियंत्रण रखने का प्रयास करना चाहिए।