इन तीनों में सबसे ज्यादा इक्विटी में एक्सपोजर ELSS में है। साथ ही लॉक-इन पीरियड (lock-in period) के मामले में भी ELSS पहले नंबर पर है। इस खास म्युचुअल फंड स्कीम का लॉक- इन पीरियड महज 3 साल है। इस कैटेगरी के फंडों ने पिछले 1 साल, 3 साल और 5 साल में औसतन 17 फीसदी, 20 फीसदी और 15 फीसदी से ज्यादा का सालाना रिटर्न दिया है।
आप चाहते हैं कि टैक्स में छूट के साथ-साथ बेहतर रिटर्न भी मिले तो ELSS एक अच्छा विकल्प हो सकता है। जिन्होंने अभी तक इक्विटी में निवेश नहीं किया है उनके लिए तो इक्विटी में निवेश शुरू करने का यह बेहतर जरिया हो सकता है।
अब पैसिव ELSS फंडों में भी कर सकते हैं निवेश
जब से एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (asset management companies यानी AMC) को सेबी (SEBI) की तरफ से पैसिव फंड (passive scheme) लॉन्च करने की अनुमति मिली है निवेशकों के पास एक्टिव के साथ-साथ पैसिव ELSS फंडों में भी निवेश का विकल्प खुल गया है। इसलिए वैसे निवेशक जो कम जोखिम लेना चाहते हैं, पैसिव ELSS के साथ जा सकते हैं। पैसिव ELSS में फंड मैनेजर की सक्रिय भूमिका नहीं होती है, इसलिए टोटल एक्सपेंस रेश्यो (total expense ratio) भी एक्टिव स्कीम के मुकाबले कम है। निवेश की रणनीति में निरंतरता (continuity) और पारदर्शिता (transparency) की वजह से भी निवेशक इस नए विकल्प को पसंद कर सकते हैं।
मार्केट में अभी कितने पैसिव फंड
अभी मार्केट में सिर्फ 3 पैसिव फंड ही लॉन्च हुए हैं – 360 ONE ELSS Tax Saver Nifty 50 Index Fund, Navi ELSS Tax Saver Nifty 50 Index Fund और Zerodha ELSS Tax Saver Nifty Large Midcap 250 Index Fund। बाकी जो भी ELSS फंड उपलब्ध हैं वे एक्टिव हैं।
प्रदर्शन के मामले में बेहतर कौन
अभी तक जो तीन पैसिव फंड लॉन्च हुए हैं उनमें से एक – Zerodha ELSS Tax Saver Nifty Large Midcap 250 Index Fund तो इसी महीने जबकि बाकी दो – 360 ONE ELSS Tax Saver Nifty 50 Index Fund और Navi ELSS Tax Saver Nifty 50 Index Fund इस साल की शुरुआत में लॉन्च हुए। इसलिए पिछले छह महीने के प्रदर्शन को ध्यान में रखकर इनकी तुलना एक्टिव फंडों से की जा सकती है। पिछले छह महीने में 360 ONE ELSS Tax Saver Nifty 50 Index Fund और Navi ELSS Tax Saver Nifty 50 Index Fund ने 9 फीसदी से ज्यादा का रिटर्न दिया है जबकि इसी अवधि के दौरान एक्टिव फंडों का प्रदर्शन 12 फीसदी से लेकर 23 फीसदी तक रहा है। इसलिए रिटर्न के मामले में पैसिव फंड एक्टिव फंडों के मुकाबले काफी पीछे हैं। समान अवधि के दौरान बेंचमार्क Nifty 50 ने 8 फीसदी का रिटर्न दिया है। इन दोनों पैसिव फंड – 360 ONE ELSS Tax Saver Nifty 50 Index Fund और Navi ELSS Tax Saver Nifty 50 Index Fund के लिए बेंचमार्क Nifty 50 ही है।
ELSS funds (return in last 6 months)
Passive funds
Navi ELSS Tax Saver Nifty 50 Index Fund Direct Growth – 9.28%
360 ONE ELSS Tax Saver Nifty 50 Index Fund – Direct Plan – 9.17%
Active funds
Quant Tax Plan Direct Growth – 23.02%
Bandhan ELSS Tax Saver Fund Direct Plan Growth – 16.16%
Parag Parikh Tax Saver Fund Direct Growth – 15.97%
Kotak ELSS Tax Saver Fund Direct Growth – 14.18%
SBI Long Term Equity Fund Direct Plan Growth – 21.88%
DSP Tax Saver Direct Plan Growth – 16.52%
Mirae Asset Tax Saver Fund Direct Growth – 14.58%
Canara Robeco ELSS Tax Saver Direct Growth – 12.48%
HDFC ELSS Tax Saver Direct Plan Growth – 18.42%
ICICI Prudential ELSS Tax Saver Direct Plan Growth – 14.68%
Edelweiss Long Term Equity Fund (Tax Savings) Direct Growth – 13.51%
Axis Long Term Equity Direct Plan Growth – 12.37%
Nippon India ELSS Tax Saver Fund Direct Growth – 17.38%
Aditya Birla Sun Life ELSS Tax Relief 96 Direct Growth – 12.74%
Mahindra Manulife ELSS Tax Saver Fund Direct Growth – 14.31%
(Source: Value Research)
Passive ELSS क्या हैं?
मार्केट रेगुलेटर भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की तरफ से पिछले साल जून में आए सर्कुलर के मुताबिक फंड हाउस 1 जुलाई 2022 से इंडेक्स-आधारित यानी पैसिव टैक्स-सेविंग ELSS फंड लॉन्च कर सकते हैं। इससे पहले, भारत में सभी इक्विटी-लिंक्ड सेविंग्स स्कीम एक्टिव रहे हैं जहां फंड मैनेजर फंड के पोर्टफोलियो को मैनेज करते हैं। पैसिव ELSS फंड के मामले में, पोर्टफोलियो केवल एक अंडरलाइंग इंडेक्स को रिफ्लेक्ट करता है। रिटर्न भी कमोबेश उसी इंडेक्स को ट्रैक करता है।
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सेबी के सर्कुलर के अनुसार पैसिव ELSS फंड उन चुनिंदा सूचकांकों पर आधारित होंगे जो मार्केट कैप के मामले में टॉप-250 कंपनियों के शेयरों को ट्रैक करते हैं। लेकिन एसेट मैनेजमेंट कंपनियों के पास एक्टिव और पैसिव दोनों तरह के ईएलएसएस फंड नहीं हो सकते। उन्हें दो विकल्पों में से एक को चुनना होगा।
इसी साल की शुरुआत यानी जनवरी 2023 में SEBI ने एसेट मैनेजमेंट कंपनियों को पैसिव ELSS शुरू करने से पहले अपनी एक्टिव इक्विटी लिंक्ड बचत योजनाएं बंद करने के निर्देश दिए। मतलब जिन AMC के पास ऐक्टिव ELSS हैं, वे इसमें नया निवेश बंद करने के बाद ही पैसिव ELSS शुरू कर सकते हैं।
एक्टिव ELSS क्या हैं?
एक्टिव ELSS एक डाइवर्सिफाइड (diversified) /मल्टीकैप इक्विटी MF स्कीम है जिसमें आपकी रकम को अलग अलग साइज की कंपनियों के शेयरों में निवेश किया जाता है। किसी भी अन्य MF की तरह आप 500 रुपये से इसमें निवेश प्रारंभ कर सकते हैं। जबकि अधिकतम निवेश की कोई सीमा नहीं है।
ELSS पर डिडक्शन का फायदा
अगर आप पुरानी टैक्स व्यवस्था में हैं तो एक वित्त वर्ष में 80C के तहत deduction का फायदा अधिकतम 1.5 लाख रुपये तक के निवेश (अन्य विकल्पों में निवेश की राशि को मिलाकर) पर ही मिलेगा। नई टैक्स व्यवस्था में ELSS पर इस तरह की कोई छूट नहीं है।
लॉक-इन पीरियड (Lock-in period)
अन्य MF स्कीम की तरह इसे जब चाहें रिडीम यानी बंद नहीं कर सकते हैं। ELSS का अनिवार्य लॉक-इन पीरियड 3 वर्ष है। मतलब आप तीन वर्ष से पहले इस स्कीम से नहीं निकल सकते हैं। लेकिन निवेश के उन सारे विकल्पों जिन पर पुरानी टैक्स व्यवस्था में 80C के तहत इनकम टैक्स में छूट मिलती है की तुलना में ELSS का lock-in period सबसे कम है।
उदाहरण के तौर पर पीपीएफ का lock-in period 15 वर्ष है जबकि NSC, सीनियर सिटीजन सेविंग्स स्कीम (SCSS), टैक्स सेविंग एफडी बैंक/पोस्ट ऑफिस FD, ULIP का 5 वर्ष है। जबकि NPS तो खासकर रिटायरमेंट के लिए है। Lock-in period के बाद भी आप ELSS में निवेश जारी रख सकते हैं।
ELSS से कमाई पर टैक्स
ELSS एक इक्विटी MF स्कीम है क्योंकि इस स्कीम में मिनिमम 80 फीसदी निवेश इक्विटी और इक्विटी-रिलेटेड इंस्ट्रूमेंट में होता है। अन्य MF स्कीम की तरह इस स्कीम में भी निवेश के दो प्लान — ग्रोथ (growth) और डिविडेंड (dividend) — में से एक चुनने का विकल्प है। ग्रोथ प्लान में रिटर्न स्कीम के बीच नहीं मिलता है। कहने का मतलब रिटर्न रिडेम्शन से पहले नहीं। लेकिन अनिवार्य lock-in period के बाद 1 लाख रुपये से ज्यादा के सालाना रिटर्न पर 10 फीसदी (4 फीसदी सेस मिलाकर कुल 10.4 फीसदी) लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन (LTCG/एलटीसीजी) टैक्स का प्रावधान है।
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अगर आप dividend प्लान लेते हैं तो निवेश की अवधि के दौरान (lock-in period से पहले और बाद दोनों), जो रिटर्न dividend के रूप में मिलता है वह आपके सालाना इनकम में जुड़ जाएगा और आपको अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से उस रकम पर टैक्स अदा करना होगा।
कितना रिटर्न?
ELSS में वही जोखिम हैं जो इक्विटी MF में निवेश के हैं। इसमें फिक्स्ड रिटर्न जैसी कोई चीज नहीं है। लेकिन अगर आप लांग टर्म में यानी कम से कम 7 से 10 वर्ष के लिए निवेश करेंगे तो आपको फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट्स (fixed income instruments) की तुलना में बेहतर रिटर्न मिलेगा। इसलिए बेहतर होगा कि 3 वर्ष के अनिवार्य lock-in period के बाद भी ELSS में निवेश को बरकरार रखें। कुल मिलाकर कहें तो टैक्स में छूट पाने से कहीं ज्यादा यह लांग-टर्म इन्वेस्टमेंट का बेहतर विकल्प है।
एकमुश्त या SIP?
एकमुश्त (lump sum) के बजाए सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी या SIP) —यानि एक निश्चित मासिक, तिमाही, छमाही, या सालाना अंतराल पर एक निश्चित रकम का निवेश — के जरिए MF में निवेश करना हमेशा बेहतर माना जाता है। क्योंकि इसमें मार्केट को टाइम करने का जोखिम नहीं है। साथ ही मार्केट से संबंधित उतार-चढाव का एवरेजिंग (averaging) भी हो जाता है। लेकिन अगर आप SIP के माध्यम से निवेश करेंगे तो हर किस्त का lock-in period अलग अलग होगा।