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सेविंग अकाउंट का पैसा यूं ही मत छोड़िए, कुछ हफ्तों और महीनों वाले फंड से कर सकते हैं कमाई

सेविंग अकाउंट में पैसा रखने से महंगाई के मुकाबले आपका पैसा कम काम करेगा, इसलिए शॉर्ट-टर्म फंड्स से बेहतर रिटर्न हासिल करें

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देवव्रत बाजपेयी   
Last Updated- September 19, 2025 | 9:48 AM IST

Short-Term Funds: क्या आप भी अपना पैसा सेविंग अकाउंट में ही छोड़ देते हैं? अगर हां, तो आप अकेले नहीं हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि वहां मिलने वाला ब्याज इतना कम है कि महंगाई के सामने उसका कोई मतलब ही नहीं बचता? एक्सपर्ट्स मानते हैं कि अगर वही पैसा Short-Term funds में लगाया जाए, तो थोड़े ही समय में बेहतर रिटर्न मिल सकता है।

निवेश की दुनिया का ‘गोल्डन रूल’

म्युचुअल फंड एक्सपर्ट एके निगम कहते हैं, “निवेश का गोल्डन रूल यही है कि जितने समय के लिए पैसा लगाना है, उसी अवधि का फंड चुनो।” मतलब, अगर आपको कुछ हफ्तों में पैसों की जरूरत है, तो लिक्विड फंड्स सबसे सही हैं। इनमें पैसा सुरक्षित भी रहता है और जरूरत पड़ने पर तुरंत मिल भी जाता है। अगर निवेश 1–2 महीने का है, तो शॉर्ट-टर्म डेट फंड्स ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकते हैं।

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पंकज मठपाल की सलाह

ऑप्टिमा मनी के फाउंडर और एमडी पंकज मठपाल भी यही बात दोहराते हैं। वे कहते हैं-

1–2 हफ्ते: ओवरनाइट फंड्स चुनो, इनमें रिस्क लगभग जीरो होता है।

करीब 1 महीना: लिक्विड फंड्स सही हैं, थोड़ा ज्यादा रिटर्न भी मिलेगा।

3–6 महीने: अल्ट्रा शॉर्ट ड्यूरेशन फंड्स अच्छे रहते हैं।

6–12 महीने: लो ड्यूरेशन या मनी मार्केट फंड्स पर भरोसा किया जा सकता है।

मठपाल का कहना है कि अगर आप निवेश की अवधि और फंड की मैच्योरिटी को साथ मिलाते हैं, तो ब्याज दरों के उतार-चढ़ाव का असर लगभग खत्म हो जाता है।

किन गलतियों से बचें?

निगम कहते हैं कि बहुत से लोग सिर्फ ज्यादा रिटर्न के लालच में जल्दीबाजी कर बैठते हैं। वे यह नहीं देखते कि फंड किन कंपनियों में पैसा लगा रहा है। अगर कंपनियों की क्वालिटी अच्छी है, तो रिस्क कम रहेगा। लेकिन कम रेटिंग वाले बॉन्ड्स में डिफॉल्ट का खतरा बढ़ जाता है।

मठपाल भी चेतावनी देते हैं, “फंड चुनते वक्त तीन चीजें हमेशा चेक करो: क्रेडिट क्वालिटी, एक्सपेंस रेश्यो और एग्ज़िट लोड।” कम खर्चा और कम चार्ज वाले फंड्स आपके लिए शॉर्ट-टर्म में ज्यादा फायदे का सौदा साबित होंगे।

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टैक्स और चार्ज का भी रखें ध्यान

सिर्फ रिटर्न देखकर फंड चुनना सही नहीं है। मठपाल बताते हैं कि डेट फंड्स से मिलने वाला मुनाफा अब सीधे आपकी इनकम टैक्स स्लैब में टैक्सेबल होता है। यानी चाहे पैसा 1 महीने के लिए लगाया हो या 1 साल के लिए, टैक्स उतना ही देना होगा। इसके अलावा, हर फंड हाउस एक फीस लेता है जिसे एक्सपेंस रेश्यो कहते हैं। जितना कम होगा, उतना अच्छा है। साथ ही, कुछ फंड्स में जल्दी पैसा निकालने पर एग्जिट लोड देना पड़ सकता है। जैसे, लिक्विड फंड्स में अगर 7 दिन के भीतर पैसा निकालते हैं तो थोड़ा चार्ज लगता है।

लंबी अवधि के लिए इक्विटी है असली हथियार

अगर आपका लक्ष्य लंबी अवधि का है। जैसे रिटायरमेंट, बच्चों की पढ़ाई या प्रॉपर्टी बनाना तो सिर्फ डेट फंड्स पर भरोसा न करें। एके निगम का कहना है कि लंबी अवधि में असली संपत्ति बनाने के लिए इक्विटी में निवेश करना बेहद जरूरी है। भले ही इसमें छोटे समय में उतार-चढ़ाव आते हैं, लेकिन लंबे समय में इक्विटी महंगाई को मात देती है।

पंकज मठपाल कहते हैं कि अगर निवेश की अवधि 1 से 3 साल की है, तो हाइब्रिड फंड्स बेहतर विकल्प साबित हो सकते हैं। इनमें डेट और इक्विटी दोनों का मिश्रण होता है, जिससे रिस्क थोड़ा कम हो जाता है और रिटर्न का मौका भी बना रहता है। वहीं, अगर निवेश की अवधि 3 साल से ज्यादा की है, तो निवेशकों को इक्विटी में ज्यादा हिस्सेदारी वाले फंड्स जैसे एग्रेसिव हाइब्रिड, बैलेंस्ड एडवांटेज, मल्टी-एसेट या डायवर्सिफाइड इक्विटी फंड्स चुनने चाहिए। ऐसे फंड्स लंबे समय में न सिर्फ महंगाई से बचाव करते हैं बल्कि वास्तविक संपत्ति बनाने में भी मदद करते हैं।

First Published : September 19, 2025 | 9:48 AM IST