बाजार

अमेरिकी बाजार को ‘दर में नरमी’ की उम्मीद

US economic indicators : अमेरिका में बॉन्ड प्रतिफल बढ़ रहा है, जो हाल में 4.16 प्रतिशत पर पहुंच गया। इससे इक्विटी बाजार के निवेशकों में खलबली बढ़ गई है।

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पुनीत वाधवा   
Last Updated- January 23, 2024 | 9:55 PM IST

जेफरीज में इक्विटी रणनीति के वैश्विक प्रमुख क्रिस्टोफर वुड ने निवेशकों को भेजी अपनी ताजा रिपोर्ट ग्रीड ऐंड फियर में लिखा है कि अमेरिका में इक्विटी और मुद्रा बाजार अलग अलग तरीके से ध्रुवीकृत बने हुए हैं और दोनों आगामी महीनों में दो अलग अलग नतीजों पर दांव लगा रहे हैं।

उन्होंने लिखा है कि जहां अमेरिकी शेयर बाजार अर्थव्यवस्था में नरम उधारी को शामिल करके चल रहा है वहीं मुद्रा बाजार कुछ हद तक मौद्रिक नरमी को लेकर तल रहे हैं। अमेरिका में एक अहम घटनाक्रम यह है कि अगले कुछ महीनों में वैश्विक इक्विटी बाजारों की नजर इस पर रहेगी कि राष्ट्रपति चुनाव से पहले राजनीतिक परिदृश्य क्या आकार लेता है।

वुड का मानना है कि हाल में आयोवा में 30 अंक के अंतर से डॉनाल्ड ट्रंप की जीत इसका ताजा प्रमाण है कि उनके (ट्रंप) खिलाफ जितने अधिक आरोप लगाए जाते हैं, उनके लिए समर्थन उतना ही अधिक बढ़ता है।

वुड का कहना है, ‘ताजा सर्वेक्षण से यह भी पता चला कि महत्त्वपूर्ण चुनाव क्षेत्र मिशीगन में बाइडेन से ट्रम्प आठ प्रतिशत के अंतर से आगे थे। 45वें अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए मुख्य समस्या यह है कि अभी उसके चुनाव नहीं हो रहे हैं। लेकिन अगर आने वाले महीनों में अमेरिका में मंदी आती है, जिससे शेयर बाजार में बिकवाली होती है, तो यह ट्रंप की विकास-समर्थक नीतियों की उम्मीद में शेयर बाजार में तेजी लाने में मददगार होगा।’

बॉन्ड प्रतिफल

अमेरिका में बॉन्ड प्रतिफल बढ़ रहा है, जो हाल में 4.16 प्रतिशत पर पहुंच गया। इससे इक्विटी बाजार के निवेशकों में खलबली बढ़ गई है। विश्लेषकों का कहना है कि विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने उभरते बाजारों से निकासी की है।

पिछले कुछ कारोबारी सत्रों में एफआईआई ने करीब 20,500 करोड़ रुपये की बिकवाली की। विश्लेषकों का कहना है कि बाहरी कारकों की वजह से होने वाली एफआईआई बिकवाली से हमेशा खरीदारी के अवसर पैदा हुए हैं।

बाजार रणनीति

बीएनपी पारिबा इंडिया के विश्लेषकों के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है, क्योंकि मुद्रास्फीति और आम चुनाव के परिणामों से जुड़ी चिंताएं अब घट रही हैं। हालांकि वे महंगे मूल्यांकन की वजह से सतर्क बने हुए हैं।

बीएनपी पारिबा इंडिया में इक्विटी शोध प्रमुख कुणाल वोरा के अनुसार अन्य चिंता यह है कि आर्थिक सुधार की रफ्तार ज्यादा मजबूत नहीं है। खपत से जुड़ी श्रेणियों पर दबाव अभी भी बना हुआ है। चीन में फिर से दिलचस्पी बढ़ने और इक्विटी पर एलटीसीजी कर में वृद्धि की आशंका से भी जोखिम बढ़ने का अनुमान है।

First Published : January 23, 2024 | 9:55 PM IST