माइक्रोफाइनैंस सेक्टर में स्व-नियामक संगठन ‘सा-धन’ ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को भेजे अपने सुझावों में कर्जदारों की आय के आकलन के लिए एक समान व्यवस्था की मांग की है, जिसका इस्तेमाल इस क्षेत्र के सभी ऋणदाताओं द्वारा किया जा सके।
पिछले महीने अपने परामर्श पत्र में आरबीआई ने कहा था कि सभी विनियमित संस्थाओं को घरेलू आय आकलन के लिए निर्धारित कारकों की गणना के लिए बोर्ड-स्वीकृत नीति होनी चाहिए। सा-धन ने कहा है कि उसने सटीक आय आकलन सुनिश्चित करने के लिए इस क्षेत्र को मदद प्रदान करते हुए एक क्रेडिट एसेसमेंट टूल विकसित किया है।
कई विश्लेषकों का कहना था कि आय आकलन के लिए साझा ढांचा निर्धारित नहीं किए जाने के लिए आरबीआई द्वारा सकारात्मक पहल की गई थी, और इसके बजाय व्यक्तिगत संगठनों पर स्वयं आकलन की जिम्मेदारी छोड़ दी गई थी। कर्जदार के नजरिये से, अच्छी बात यह है कि पारिवार की आय की गणना होगी, व्यक्तिगत आय की नहीं।
सा-धन ने यह भी सुझाव दिया है कि ‘राशन कार्ड’ का इस्तेमाल प्रवासी श्रमिक होने की स्थिति में परिवार की पहचान के लिए आधार के तौर पर किया जाना चाहिए। आरबीआई के अनुसार, परिवार की परिभाषा (जिसे नैशनल सैम्पल सर्वे ऑफिस से लिया गया) है – सामान्य तौर पर साथ रह रहे और साझा किचन से भोजन लेने वाले लोगों का समूह, जिससे एक परिवार बनेगा।
सा-धन ने कहा है कि जहां प्रवासी श्रमिक एक साथ नहीं रहते होंगे और एक आम रसोई का इस्तेमाल करते होंगे, इसलिए वे पारिवारिक आय में योगदान करते हैं। ‘इसलिए, इन सदस्यों को अलग किया जाना अनुचित पारिवारिक आय आकलन को बढ़ावा देगा।’
हालांकि ग्रामीण आबादी का करीब 19 प्रतिशत और शहरी आबादी का 33 प्रतिशत हिस्सा राशन कार्ड से वंचित है। उनका कहना है, ‘यदि राशन कार्ड उपलब्ध न हो, तो ऐसी स्थिति में आधार को पहचान के तौर पर अनुमति दी जानी चाहिए। यह जरूरी है, क्योंकि इससे माइक्रोफाइनैंस संस्थानों को (राशन कार्ड के अभाव में) यह निष्कर्ष निकालने की अनुमति दी जा सकती है कि परिवार क्या है।’
यह भी सुझाव दिया गया है कि ग्रामीण और शहरी परिवारों की आय सीमा उन्हें सूक्ष्म वित्त कर्जदार के तौर पर चिह्निïत किए जाने के लिए 2 लाख रुपये सालाना पर समान होनी चाहिए। आरबीआई मानकों के अनुसार, सूक्ष्म वित्त कर्जदार की पहचान ग्रामीण के लिए सालाना आय 1.25 लाख रुपये तक और शहरी तथा अद्र्घ-शहरी क्षेत्रों के लिए 2 लाख रुपये तक की सालाना पारिवारिक आय के तौर पर की गई है।
आरबीआई ने माइक्रोफाइनैंस सेक्टर पर अपने परामर्श पत्र में माइक्रोफाइनैंस संस्थानों (एमएफआई) पर ब्याज दर सीमा बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है, जिससे कि इस क्षेत्र में कुछ खास बाजार कारोबारी इसका लाभ न उठा सकें। साथ ही उसने ऋण-आय अनुपात सीमा काभी प्रस्ताव दिया और कहा कि ऋण इस तरह से दिए जाने चाहिए कि किसी परिवार के सभी बकाया ऋणों के लिए ब्याज का भुगतान और मूल की अदायगी किसी भी समय पारिवारिक आय के 50 प्रतिशत के पार नहीं पहुंचे। आरबीआई का मानना है कि यह ऋण-आय सीमा सिर्फ एमएफआई के समक्ष पैदा हुए विभिन्न प्रतिबंधों की जरूरत को समाप्त कर देगी।
सा-धन ने अपने सुझावों में कहा है कि आय सीमा मुद्रास्फीति से संबधित होनी चाहिए, जिससे कि इसे नियमित आधार पर, हरेक दो-तीन साल में एक बार संशोधित किया जा सके।