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SME कंपनियों का मुख्य बोर्ड पर माइग्रेशन धीमा, सेबी के कड़े नियम लागू होने से असर

नियमों में सख्ती और नए मानकों से एसएमई कंपनियों का माइग्रेशन धीमा हुआ

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खुशबू तिवारी   
Last Updated- May 05, 2025 | 11:04 PM IST

लघु और मझोले उद्यमों (एसएमई) के शेयरों का स्टॉक एक्सचेंजों के मुख्य प्लेटफॉर्म पर पहुंचने का सफर धीमा हो गया है। मुख्य बाजार में पहुंचने से जुड़े नियमों में सख्ती की वजह से 2024 और 2025 में ऐसे मामलों में बड़ी गिरावट आई है। इस कैलेंडर वर्ष में सिर्फ एक कंपनी ही एसएमई प्लेटफॉर्म से मुख्य प्लेटफॉर्म पर पहुंचने में सफल रही है जबकि 2024 में यह संख्या 12 थी। वर्ष 2020 और 2022 के बीच इसका औसत सालाना करीब 50 का रहा है। उसके मुकाबले संख्या में यह बड़ी गिरावट है।

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने दिसंबर 2024 की अपनी बोर्ड बैठक में एसएमई कंपनियों के शेयरों के मेन बोर्ड में जाने से जुड़े नियमों में बदलाव किया था जिसके बाद स्टॉक एक्सचेंजों ने पात्रता की शर्तें कड़ी कर दीं। इससे मुख्य बाजार में जाने की रफ्तार सुस्त पड़ गई। इस संशोधित व्यवस्था को मार्च 2025 में अधिसूचित किया गया। इससे एसएमई प्लेटफॉर्म में सूचीबद्ध कंपनियों की स्टॉक एक्सचेंजों के मुख्य बोर्ड तक पहुंचने की राह और ज्यादा धीमी हो सकती है।

इसके अलावा, एसएमई लिस्टिंग और मेनबोर्ड पर जाने के बीच भी अंतर बढ़ गया है। जहां वर्ष 2019 में किसी एसएमई शेयर के लिए मेनबोर्ड तक पहुंचने का औसत समय दो वर्ष से कम था, वहीं अब 2024 में यह लगभग पांच वर्ष तक पहुंच गया है। इसका कारण खासतौर पर एक नियम है जिसके तहत मेनबोर्ड पर जाने से पहले एसएमई प्लेटफॉर्म पर कम से कम तीन साल तक लिस्टिंग जरूरी है।

पिछले महीने नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) ने इससे संबंधित पात्रता नियम और सख्त बना दिए। ऐसी कंपनियों के लिए अब अनिवार्य है कि उन्होंने पिछले वित्त वर्ष में कम से कम 100 करोड़ रुपये का राजस्व कमाया हो। इसके अलावा, पिछले तीन वर्षों में से कम से कम दो में सकारात्मक परिचालन लाभ हासिल किया हो। साथ ही, प्रमोटरों की ऊंची हिस्सेदारी भी जरूरी है और लिस्टिंग के समय उनकी शुरुआती हिस्सेदारी का कम से कम 50 प्रतिशत होना चाहिए।

नए नियमों में कॉरपोरेट संचालन मानकों को भी सख्त बनाया गया है, जैसे नियामकीय उल्लंघनों पर सख्ती और डिबेंचर और सावधि जमा धारकों को भुगतान में चूक। कानूनी विश्लेषकों ने ज्यादा अनुपालन मांग और वित्तीय बेंचमार्कों को भी गिरावट के लिए जिम्मेदार बताया है।

किंग स्टब एंड कासिवा, एडवोकेट्स ऐंड एटॉर्नीज में पार्टनर, पृथ्वीराज सेंथिल नाथन ने कहा, ‘कई एसएमई इन ऊंची वित्तीय सीमाओं और शर्तों को पूरा नहीं कर पाती हैं, भले ही वे अच्छी तरह से संचालित या अच्छी वृद्धि वाले व्यवसाय करती हों। इस कारण जो कंपनियां पहले पात्र थीं, वे भी अब अयोग्य बन गई हैं।’ उन्होंने कहा कि प्रमोटरों की ऊंची शेयरधारिता के मानक उन लोगों की राह में बाधा पैदा करते हैं जिन्होंने लिस्टिंग के बाद हिस्सेदारी कम कर दी या जिनकी मुख्य बाजार में पहुंचने के दौरान शेयर बिक्री की योजना है।

हालांकि कुछ का मानना है कि अब नियामकीय स्पष्टता से ज्यादा कंपनियों को माइग्रेशन में मदद मिल सकती है। एक अन्य विश्लेषक ने कहा, ‘नियामकीय बदलाव के बाद कंपनियों को अक्सर लंबा इंतजार करना पड़ता है। नियम स्पष्ट होने से अब कई कंपनियां इस पर चर्चा शुरू कर सकती हैं।’ जेनसोल, सिक्योर क्रेडेंशियल्स और वेरेनियम क्लाउड समेत कई एसएमई मेनबोर्ड पर पहुंची जिनकी सेबी से जांच (संदिग्ध लेनदेन, शेयर में हेरफेर और धन का गलत इस्तेमाल जैसे मसलों के कारण) के बाद ताजा सख्ती बढ़ी है।

अपने नवंबर 2024 के परामर्श पत्र में सेबी ने एसएमई सूचीबद्धताओं के तुरंत बाद प्रमोटर शेयरधारिता में गिरावट पर चिंता जताई और उसने लॉक-इन शर्तों को चरणबद्ध तरीके से हटाने को मंजूरी दी। उसने बढ़ते कदाचार जोखिमों के बीच मजबूत कंपनी संचालन की जरूरत पर भी जोर दिया। इन जोखिमों में धन की हेराफेरी और लिस्टिंग के बाद प्रमोटरों का बाहर निकलना मुख्य रूप से शामिल है।

संभावित राहत के रूप में बाजार नियामक ने अब एसएमई को बिना माइग्रेशन के राइट्स इश्यू, तरजीही आवंटन और बोनस इश्यू के जरिये पैसा जुटाने की अनुमति दे दी है। यह पहले के नियमों में बदलाव है। पिछले नियमों के तहत पूंजी जुटाने के लिए माइग्रेशन की प्रक्रिया से जूझना पड़ता था।

First Published : May 5, 2025 | 11:04 PM IST