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SEBI का बड़ा फैसला, 7 एग्री-कमोडिटीज पर फ्यूचर्स ट्रेडिंग बैन 2025 तक बढ़ाया

सेबी ने इस बैन की वजहों का जिक्र नहीं किया, लेकिन माना जाता है कि यह कदम कमोडिटी प्राइस को कंट्रोल करने के लिए उठाया गया।

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संजीब मुखर्जी   
Last Updated- December 19, 2024 | 6:55 AM IST

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने सात कृषि उत्पादों के डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट्स पर ट्रेडिंग रोक को 31 जनवरी 2025 तक बढ़ा दिया है। लेट-नाइट जारी नोटिफिकेशन के मुताबिक, इन उत्पादों – धान (गैर-बासमती), गेहूं, चना, सरसों और इसके डेरिवेटिव्स, सोयाबीन और इसके डेरिवेटिव्स, क्रूड पाम ऑयल और मूंग – पर फ्यूचर्स ट्रेडिंग का सस्पेंशन पहले 20 दिसंबर 2024 को खत्म होना था। लेकिन अंतिम तारीख से एक दिन पहले Sebi ने इसे आगे बढ़ाने का फैसला लिया।

ट्रेड सोर्सेज का कहना है कि इस बार सेबी ने कमोडिटी फ्यूचर्स ट्रेडिंग पर बैन को थोड़ा ज्यादा समय, यानी एक महीने से ज्यादा के लिए बढ़ाया है। इससे उम्मीद की जा रही है कि एडिबल ऑयल समेत कुछ एग्रीकल्चरल कमोडिटीज की फ्यूचर्स ट्रेडिंग जल्द फिर से शुरू हो सकती है।

दिसंबर 2021 में सेबी ने गेहूं, सोयाबीन, क्रूड पाम ऑयल, धान और मूंग जैसी पांच कमोडिटीज की फ्यूचर्स ट्रेडिंग को एक साल के लिए सस्पेंड कर दिया था। इससे पहले, 17 अगस्त 2021 में चने और 8 अक्टूबर 2021 में सरसों/सरसों तेल के फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स पर भी रोक लगाई गई थी। तब से यह बैन हर बार बढ़ता रहा है, और इसका मौजूदा एक्सटेंशन 20 दिसंबर 2024 तक के लिए है।

हालांकि, सेबी ने इस बैन की वजहों का जिक्र नहीं किया, लेकिन माना जाता है कि यह कदम कमोडिटी प्राइस को कंट्रोल करने के लिए उठाया गया।

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बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी (BIMTECH), IIT खड़गपुर के विनोद गुप्ता स्कूल ऑफ मैनेजमेंट, और IIT बॉम्बे के शैलेश जे मेहता स्कूल ऑफ मैनेजमेंट के रिसर्चर्स ने स्टडी में यह पाया कि जिन कमोडिटीज पर फ्यूचर्स ट्रेडिंग रोकी गई, उनकी रिटेल प्राइस में कोई गिरावट नहीं आई। इसके उलट, कई कमोडिटीज की कीमतों में उतार-चढ़ाव और बढ़ गया। रिसर्च का मानना है कि इन प्राइस मूवमेंट्स को फ्यूचर्स ट्रेडिंग से ज्यादा डोमेस्टिक और इंटरनेशनल डिमांड-सप्लाई का असर पड़ा।

अध्ययनों ने बताया कि अगर Futures Contracts नहीं होते, तो FPOs (किसान उत्पादक संगठन) कीमतों के उतार-चढ़ाव से खुद को नहीं बचा पाते। इससे उन्हें बाजार में होने वाले बदलावों का सीधा नुकसान होता है।

कमोडिटी एक्सचेंज किसानों और व्यापारियों की समस्याओं को हल करने में अहम भूमिका निभाते हैं। ये एक्सचेंज ट्रेनिंग, गोदाम की सुविधा, दाम का सही अनुमान, गुणवत्ता जांच और बेहतर सौदेबाजी की ताकत प्रदान करते हैं। यह जानकारी BIMTECH की एक स्टडी में सामने आई है।

BIMTECH और IIT-खड़गपुर की स्टडी में सोयाबीन, सोया तेल, सरसों के बीज और सरसों के तेल पर फोकस किया गया, जबकि IIT-बॉम्बे की स्टडी ने सरसों, रिफाइंड सोया तेल, सोयाबीन, चना और गेहूं पर सस्पेंशन के असर का विश्लेषण किया।

BIMTECH की स्टडी के अनुसार, सस्पेंशन के बाद रिटेल और होलसेल दाम के बीच का अंतर बढ़ गया। सरसों के तेल के लिए यह अंतर ₹9.22 से बढ़कर ₹11.97 हो गया।

स्टडी में यह भी बताया गया कि घरेलू हेजिंग विकल्पों की कमी के चलते व्यापारियों को अंतरराष्ट्रीय फ्यूचर्स बाजारों का रुख करना पड़ा। इससे उन्हें बेसिस रिस्क का सामना करना पड़ा, जो स्पॉट और फ्यूचर्स प्राइस में अंतर के कारण उत्पन्न होता है।

आईआईटी बॉम्बे की स्टडी में पाया गया कि कमोडिटी फ्यूचर्स ट्रेडिंग पर बैन लगाने के बाद सरसों और सोयाबीन के मंडी प्राइस में वोलैटिलिटी बढ़ गई। अप्रैल 2021 के बाद से डेली वोलैटिलिटी बढ़ने लगी।

इस एनालिसिस ने यह भी साफ किया कि कमोडिटी फ्यूचर्स ट्रेडिंग और फूड इंफ्लेशन के बीच पॉजिटिव रिलेशन होने की धारणा गलत है। स्टडी में इस बात का कोई सबूत नहीं मिला कि फ्यूचर्स ट्रेडिंग फूड इंफ्लेशन बढ़ाता है।

स्टडी ने यह भी बताया कि रिटेल प्राइस, चाहे बैन लगे कमोडिटी हो या नॉन-सस्पेंडेड कमोडिटी, ज्यादातर समय ऊंचे ही रहे।

इसके अलावा, स्टडी में फ्यूचर्स और स्पॉट प्राइस के बीच बाय-डायरेक्शनल रिलेशनशिप को हाइलाइट किया गया। इससे पता चला कि फ्यूचर्स मार्केट ने प्राइस डिस्कवरी में अहम रोल निभाया, जो स्पॉट मार्केट को डायरेक्शन देने में मदद करता है और उसी तरह से स्पॉट मार्केट फ्यूचर्स मार्केट को।

ये फाइंडिंग्स एक्सचेंज-ट्रेडेड कमोडिटी फ्यूचर्स की मार्केट स्टेबिलिटी और एफिशिएंसी बनाए रखने में अहमियत को दर्शाती हैं।

First Published : December 19, 2024 | 6:55 AM IST