बाजार नियामक सेबी ने ट्रैफिकसोल आईटीएस टेक्नोलॉजिज की कथित अनियमितता मामले में हस्तक्षेप किया है। कंपनी ने पिछले महीने बीएसई के एसएमई प्लेटफॉर्म पर 45 करोड़ रुपये का आईपीओ मसौदा दाखिल किया था। एकतरफा आदेश में नियामक ने कहा है कि वह कंपनी मसौदा दस्तावेज में किए गए खुलासों की विस्तृत जांच करेगा।
बीएसई ने ट्रैफिकसोल की सूचीबद्धता को इश्यू से मिलने वाली रकम के इस्तेमाल और गलत डिस्क्लोजर की शिकायतों के बाद रोक दिया था। सेबी की जांच एक महीने के भीतर पूरी होने की संभावना है। ट्रैफिकसोल के आईपीओ को 345 गुना आवेदन मिले थे। अपने पेशकश दस्तावेज में कंपनी ने खुलासा किया था कि वह थर्ड पार्टी सॉफ्टवेयर वेंडर पर 17.7 करोड़ रुपये का इस्तेमाल करेगी।
सेबी की शुरुआती जांच से पता चलता है कि थर्ड पार्टी वेंडर ने तीन साल से ज्यादा समय से कंपनी मामलों के मंत्रालय के पास वित्तीय विवरण जमा नहीं कराया है और पिछले साल उसने कोई राजस्व अर्जित नहीं किया, जिसका वित्तीय विवरण जमा कराया गया था। इसके अलावा वेंडर के पिछले तीन साल के वित्तीय विवरण पर सूचीबद्धता से कुछ दिन पहले एक ही दिन हस्ताक्षर किए गए थे। वेंडर का पंजीकृत कार्यालय भी बंद था और उसके जीएसटी रिटर्न भी खुलासा किए गए कारोबार से मेल नहीं खाते।
सेबी के पूर्णकालिक सदस्य अश्वनी भाटिया ने आदेश में कहा कि इस स्तर पर इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि इस चरण में वेंडर को सॉफ्टवेयर अनुबंध दिए जाने की कोशिश कंपनी की तरफ से निवेशकों को गुमराह करने और आईपीओ की रकम को दूसरी जगह ले जाने की सोची-समझी कोशिश थी। यह वेंडर प्रथम दृष्टया मुखौटा कंपनी मालूम होती है, जिसके पास कंपनी के डीआरएचपी में घोषित सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म विकसित करने का कोई पूर्व अनुभव नहीं है।
कार्रवाई की जरूरत बताते हुए सेबी के आदेश में कहा गया है कि अगर ऐसे आईपीओ को सूचीबद्ध होने की इजाजत मिली तो इससे सूचीबद्ध एसएमई तंत्र में निवेशकों का भरोसा हिल सकता है। नियामक ने मर्चेंट बैंकरों की चूकों की तरफ भी इशारा किया है। निवेशकों ने हालांकि अपनी रकम वापस मांगी है लेकिन सेबी ने बीएसई को निर्देश दिया है कि वह आईपीओ से मिली रकम को अगले आदेश तक ब्याज देने वाले एस्क्रो खाते में रखना सुनिश्चित करे। कंपनी की इन फंडों तक कोई पहुंच नहीं होगी।
एसएमई सूचीबद्धता को लेकर दस्तावेज की जांच बाजार नियामक नहीं करता और इसके बजाय एक्सचेंज मंजूरी देता है।