निजी इक्विटी निवेशकों द्वारा निवेश समेटने के सौदों में वैश्विक महामारी के दौरान भारी गिरावट दर्ज की गई है। इसके कारणों पर लोगों ने अलग-अलग राय जाहिर की है। क्या एक अनिश्चित एवं डिजिटल दुनिया में जांच-परख के साथ सौदों को पूरा करने में अधिक समय लगने की वजह से ऐसा दिख रहा है? क्या खरीदार सौदों में अधिक दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं और निवेशक काफी गंभीर संकट में हैं? अथवा निजी इक्विटी निवेशक शायद स्टार्टअप द्वारा घोषित आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) का इंतजार कर रहे हैं जहां उन्हें अपने निवेश पर सबसे अच्छा रिटर्न मिलने की उम्मीद है। इसलिए वे आईपीओ की प्रक्रिया शुरू होने तक अपने निकास सौदों को स्थगित कर रहे हैं।
पीई निवेश पर नजर रखने वाली फर्म वीसीसी एज के आंकड़ों के अनुसार, चालू कैलेंडर वर्ष की पहली तिमाही में कुल पीई निकास सौदों का मूल्य 7 फीसदी घटकर 193.8 करोड़ डॉलर रह गया। हालांकि, समान अवधि में ताजा पीई निवेश में 43 फीसदी की वृद्धि हुई। परिणामस्वरूप, नए निवेश के प्रतिशत में पीई निकास सौदों का मूल्य इस वर्ष की पहली तिमाही में घटकर महज 29 फीसदी रह गया जो कैलेंडर वर्ष 2020 की पहली तिमाही में 45 फीसदी रहा था।
साल 2020 में भी इसी तरह का रुझान दिखा था लेकिन इस बार कहीं अधिक तेजी दिख रही है। कैलेंडर वर्ष 2020 में कुल निकास सौदों का मूल्य 34 फीसदी घटकर 437.7 करोड़ डॉलर रह गया था जो 2019 में 665 करोड़ डॉलर रहा था। हालांकि समान अवधि में ताजा निवेश 9 फीसदी बढ़कर 38.9 अरब डॉलर हो गया था।
निकास सौदों में गिरावट के बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि जब नए निवेश और निकास सौदों के मूल्य में अंतर कम होना बाजार के परिपक्व होने का एक महत्त्वपूर्ण संकेत है। मुनाफे को वापस निवेश किया जाता है और इससे बाजार में भरोसे की झलक मिलती है। लेकिन निकास सौदों में गिरावट के कारणों को लेकर विशेषज्ञों ने अलग-अलग राय जाहिर की है।
पीई कंपनी मेगाडेल्टा कैपिटल एडवाइजर्स की संस्थापक पार्टनर बाला देशपांडे ने कहा कि उनकी कंपनी मौजूदा वैश्विक महामारी के दौरान केवल तीन निकास सौदा करने में सफल रही। उन्होंने सौदों की संख्या में नरमी के लिए जांच-परख को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा, ‘मैं समझती हूं कि निकास सौदों में कमी की मुख्य वजह दिलचस्पी अथवा मंशा नहीं बल्कि जांच-परख में अधिक समय लगना है, विशेष तौर पर अंतरराष्ट्रीय अधिग्रहण सौदों में। लेकिन इससे गुणवत्ता वाली परिसंपत्तियों को बढ़ावा मिलेगा।’
देशपांडे ने कहा कि पहले किसी पूर्ण बिक्री अथवा हिस्सेदारी बिक्री सौदे को पूरा करने में औसतन तीन से छह महीने का समय लगता था जो उस क्षेत्र विशेष पर निर्भर करता है। लेकिन अब इन सौदों को पूरा करने में छह से नौ महीने लग रहे हैं। उन्होंने कहा कि संभावित खरीदार अब काफी जांच-परख करना चाहते हैं और खुद मिलने के बजाय अपनी विशेष टीम के जरिये यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि सौदा प्रवर्तकों और बाजार के लिए कितना उपयुक्त रहेगा।
कुछ फंड मैनेजरों ने इस पर चिंता जताई है। अमेरिका के एक वैश्विक पीई फंड के प्रबंध निदेशक ने कहा, ‘संभव है कि कुछ निवेशक अपनी पोर्टफोलियो कंपनियों में निवेश को चार से सात वर्षों से अधिक लंबी अवधि के लिए बरकरार रख रहे हैं। लेकिन कई मामलों में स्थिति ठीक न होने के संकेत दिख रहे हैं। इसका मतलब यह भी हुआ कि साल 2008 से 2013 के बीच आक्रामक तौर पर निवेश करने वाले कई पीई फंड योजनाबद्ध तरीके से अपना निवेश समेटने में असमर्थ दिख रहे हैं।’
एऑन कैपिटल के पूर्व पार्टनर और पीई क्षेत्र के दिग्गज पार्थ गांधी का मानना है कि निवेशक अपने निवेश वाली कंपनियों के आईपीओ आने तक निकास सौदे से परहेज कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘निकास के लिए एक व्यवहार्य ढांचे के तौर पर सूचीबद्ध बाजार के उभरने के कारण निकास सौदों में गिरावट आई है। जोमैटो जैसी कंपनियों के संभावित आईपीओ अभी तक लाभदायक नहीं हैं और पहले जिसे सूचीबद्ध नहीं किया सकता था वह अब संभव है। इससे पीई कंपनियों को बेहतर मूल्यांकन के साथ निकास का दमदार अवसर मिलेगा। हमें आगामी महीनों में निकास सौदों के दमदार आंकड़े दिखने चाहिए।’