Akshaya Tritiya 2025: जब भी बाजार में अनिश्चितता के बादल छाते हैं तो निवेशकों का भरोसा सबसे पहले सोने (Gold) पर टिकता है। सोना हमेशा से ही निवेशकों के लिए एक सुरक्षित निवेश विकल्प (Safe Haven) रहा है। हाल के दिनों में सोने की कीमतें ₹1 लाख के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई। इस बेशकीमती पीली धातु की चमक ने एक बार फिर से निवेशकों का ध्यान आकर्षित किया है। इसके दमदार प्रदर्शन को देखते हुए निवेशक अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर गोल्ड में अपना निवेश बढ़ाने पर विचार कर सकते हैं। सोना खरीदना सिर्फ धार्मिक मान्यता तक सीमित नहीं है, बल्कि फाइनेंशियल प्लानिंग के लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण है। ज्वेलरी, सिक्कें और बिस्कुट के रूप में फिजिकल गोल्ड में निवेश का चलन आज भी कायम है। इसके अलावा आज के समय में डिजिटल गोल्ड में निवेश का क्रेज बढ़ा है। लोग गोल्ड ईटीएफ (Gold ETF), सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB), गोल्ड म्युचुअल फंड (Gold Mutual Fund) और डिजिटल गोल्ड (Digital Gold) में भी जमकर पैसा लगा रहे हैं।
आमतौर पर सोने खरीदने के दो विकल्प होते हैं। अगर आप पहनने के लिए खरीदारी कर रहे हैं, तो चेन, अंगूठी या अन्य ज्वेलरी खरीद सकते हैं। लेकिन आपका मकसद सिर्फ निवेश का है, तो फिजिकल गोल्ड (सिक्के या बार्स), डिजिटल गोल्ड, गोल्ड ईटीएफ या सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) जैसे विकल्पों पर ध्यान दे सकते हैं।
गोल्ड ईटीएफ (Gold ETF): अगर आप सोने में निवेश करना चाहते हैं लेकिन फिजिकल गोल्ड संभालने की झंझट नहीं चाहते तो गोल्ड एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड्स यानी गोल्ड ईटीएफ आपके लिए एक बेहतरीन विकल्प हो सकता हैं। आनंद राठी वेल्थ लिमिटेड के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अमिताभ लारा कहते हैं, गोल्ड ETFs खास इसलिए माने जाते हैं क्योंकि वे मुख्य रूप से 99% शुद्धता वाले गोल्ड बुलियन में निवेश करते हैं। ये डिजिटल निवेश का विकल्प प्रदान करते हैं, अत्यधिक तरल (liquid) होते हैं और स्टॉक एक्सचेंज पर आसानी से खरीदे-बेचे जा सकते हैं। इसके अलावा, ये टैक्स के लिहाज से भी फायदेमंद हैं— यदि इन्हें दो वर्षों से अधिक समय तक होल्ड किया जाए, तो होने वाला लाभ लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (LTCG) के रूप में गिना जाता है।
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सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB): सरकार द्वारा जारी किए जाने वाले सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGBs) को सोने में निवेश के सबसे सुरक्षित विकल्पों में से एक माना जाता है। ये न सिर्फ सोने की कीमतों को ट्रैक करते हैं, बल्कि इसके साथ एक निश्चित ब्याज दर भी प्रदान करते हैं, जिससे निवेशकों को दोहरा लाभ मिलता है। SGBs की अवधि आठ साल होती है, हालांकि पांच साल पूरे होने के बाद समय से पहले बाहर निकलने (एग्जिट) का विकल्प भी उपलब्ध रहता है। यह उन लॉन्ग टर्म निवेशकों के लिए अच्छा विकल्प हैं जो फिजिकल सोने को स्टोर करने के जोखिम के बिना स्थिर रिटर्न चाहते हैं।
लारा कहते हैं, लिक्विडिटी और और टैक्स में बचत के लिहाज से SGBs को सबसे अच्छा विकल्प माना जाता है। हालांकि, अब इनका जारी होना कम हो गया है। ऐसे में गोल्ड ETFs एक बेहतर विकल्प के तौर पर सामने आए हैं।
गोल्ड म्युचुअल फंड (Gold Mutual Fund): गोल्ड म्युचुअल फंड्स सोने से जुड़े एसेट्स में निवेश करते हैं। लारा कहते हैं, गोल्ड म्युचुअल फंड्स, जो कि गोल्ड ETFs में निवेश करने वाले फंड ऑफ फंड्स होते हैं, अपनी संरचना के कारण थोड़े ज्यादा खर्च अनुपात (expense ratio) के साथ आते हैं। इसी वजह से ये गोल्ड ETFs की तुलना में कम प्रभावी माने जाते हैं।
मिरे असेट इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स (इंडिया) के प्रोडक्ट हेड (ईटीएफ) सिद्धार्थ श्रीवास्तव बताते हैं, “गोल्ड और सिल्वर ETFs में निवेशकों की ओर से अच्छी मांग देखने को मिल रही है। पिछले एक वर्ष में कमोडिटी ETFs में लगभग ₹24,000 करोड़ का निवेश आया है, जबकि पिछले छह महीनों में लगभग ₹13,500 करोड़ की आमद हुई है। इसके साथ ही 31 मार्च 2025 तक कमोडिटी ETFs का कुल AUM (एसेट अंडर मैनेजमेंट) बढ़कर ₹74,000 करोड़ से ज्यादा हो गया है।”
उन्होंने आगे कहा कि फोलियो काउंट और एक्सचेंज पर ट्रेडिंग में भी उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। इसकी प्रमुख वजह है गोल्ड और सिल्वर जैसे कीमती धातुओं का मजबूत प्रदर्शन और कमोडिटी ETFs की बढ़ती लोकप्रियता। ये ETFs कम लागत, उच्च शुद्धता, सुरक्षित और अत्यधिक तरलता के साथ निवेश का एक आसान माध्यम प्रदान करते हैं, जिसकी वजह से निवेशकों का रुझान तेजी से बढ़ रहा है।
अमिताभ लारा ने कहा, पिछले तीन वर्षों में सोने ने लगभग 18% की CAGR से रिटर्न दिया है। वैश्विक अनिश्चितता, बढ़ती महंगाई, भू-राजनीतिक तनाव और केंद्रीय बैंकों की मजबूत मांग के कारण सोने की कीमतों में भारी इजाफा देखने को मिला। इन कारकों ने सोने की सुरक्षित निवेश विकल्प (Safe-Haven Asset) के रूप में स्थिति को और मजबूत किया है। श्रीवास्तव कहते हैं कि इन सभी कारणों से सोने की कीमतों को अभी भी मजबूती मिल रही है। हालांकि ज्वेलरी बाजार में मांग में थोड़ी नरमी देखी जा रही है।
श्रीवास्तव ने कहा, भले ही सोने के समर्थन में काम करने वाले बुनियादी कारक अब भी मौजूद हैं, लेकिन आने वाले समय में सोने की कीमतों में कुछ सुधार देखा जा सकता है। जो भी निवेशक इस समय सोने में निवेश करने की सोच रहे हैं, उन्हें इसे केवल शॉर्ट टर्म गेन के लिए नहीं, बल्कि लॉन्ग टर्म एसेट एलोकेशन स्ट्रैटेजी के तहत निवेश करना चाहिए। मौजूदा परिस्थितियों में निवेशकों को बाजार में उतार-चढ़ाव या गिरावट के अवसर को ध्यान में रखते हुए चरणबद्ध (staggered) तरीके से निवेश करना चाहिए।
लारा कहते हैं, “सोने का लॉन्ग टर्म प्रदर्शन लगातार स्थिर नहीं रहा है। सोना आमतौर पर अनिश्चित माहौल में अच्छा प्रदर्शन करता है, लेकिन स्थिर या तेजी वाले इक्विटी बाजारों में इसका प्रदर्शन कमजोर रहता है। ऐतिहासिक आंकड़े बताते हैं कि जब शेयर बाजार में 10% की गिरावट आती है, तब सोना केवल 4–5% का रिटर्न देता है, जबकि डेट इंस्ट्रूमेंट्स के जरिए निवेशक लगभग 7% का रिटर्न कमाते हैं, वह भी कम उतार-चढ़ाव के साथ।”
इसलिए, भले ही सोना जोखिम प्रबंधन (Hedging) में मदद करता है, लेकिन उस पर अधिक निर्भरता आपके पोर्टफोलियो की ग्रोथ को सीमित कर सकती है। हम सलाह देते हैं कि पोर्टफोलियो का संयोजन 80:20 के अनुपात में इक्विटी और डेट में रखा जाए। यदि आप फिर भी सोने में निवेश करना चाहते हैं, तो कुल पोर्टफोलियो का 5-10% हिस्सा ही सोने में रखने की सिफारिश की जाती है।