बीएस बातचीत
रूस और यूक्रेन में भूराजनीतिक घटनाक्रम गहराने के बाद वैश्विक वित्तीय बाजारों में अनिश्चितता बढ़ी है। राबोबैंक इंटरनैशनल में वित्तीय बाजार के वैश्विक शोध प्रमुख एवं प्रबंध निदेशक जेन लैम्ब्रेट्स और उसके अर्थशास्त्री वाउटर वेन आइजेलेनबर्ग ने पुनीत वाधवा को दिए साक्षात्कार में बताया कि आरबीआई की अनुकूल नीति के साथ साथ ऊर्जा जिंसों, खासकर तेल में तेजी से मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिला है। साथ ही रुपये में उतार-चढ़ाव से भी निवेशक भारत में निवेश से परहेज कर सकते हैं। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश:
क्या आप मानते हैं कि रूस-यूक्रेन संकट की वजह से वैश्विक वित्तीय बाजारों में और ज्यादा दबाव दिखेगा? कौन से इक्विटी बाजार/अर्थव्यवस्थाएं ज्यादा प्रभावित होंगे?
लैम्ब्रेट्स: इसका संक्षिप्त जवाब ‘हां’ है। यूक्रेन पर रूसी हमले का जोखिम ‘रिमोट टेल रिस्क’ से ‘मैन-रिस्क’ परिदृश्य में बदल गया है। वित्तीय बाजार इस बदलते समाचार प्रवाह से मुकाबले की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें इस तरह के परिवेश में गिरावट से बचने के लिए संघर्ष का सामना करना पड़ता है।
बाजार विश्लेषकों को मार्च में अमेरिकी फेड द्वारा 25 आधार अंक तक की दर वृद्घि की उम्मीद है। क्या आप मानते हैं कि यह वृद्घि कम यानी 10 आधार अंक हो सकती है, जिससे सभी इक्विटी बाजारों में तेजी से संबंधित आश्चर्यजनक स्थिति देखी जा सकती है?
लैम्ब्रेट्स: यदि कुछ भी हुआ, यूक्रेन-रूस मामलों से हमें पता चलता है कि आश्चर्य संभव है। फिर भी मौजूदा हालात में फेड की स्थिति स्पष्ट होना और दर वृद्घि को लेकर परिदृश्य का संकेत मिलना बेहद जरूरी है।
आप 2022 में निवेशक प्रवाह को कैसे देखते हैं, क्योंकि फेडरल और अन्य केंद्रीय बैंक दर वृद्घि की संभावना तलाश रहे हैं?
लैम्ब्रेट्स: बढ़ते दर वृद्घि के परिवेश में, विकसित बाजारों (डीएम) का रुझान उभरते बाजारों के मुकाबले अधिक लचीला है।
आपकी नजर में कौन से कारक उभरते बाजारों में फिर से चर्चा में रह सकते हैं?
लैम्ब्रेट्स: ईएम के मुकाबले डीएम यानी विकसित बाजारों का अच्छा परिदृश्य संभावित है, हालांकि राह में कुछ चुनौतियां भी हैं।
अगले कुछ महीनों के दौरान दर वृद्घि के बीच दुनियाभर में इक्विटी बाजारों में मजबूती के लिए बॉन्ड बाजार/प्रतिफल कितना खतरा पहुंचाएंगे?
लैम्ब्रेट्स: केंद्रीय बैंक यह स्पष्ट कर रहे हैं कि वे अब सबसे पहले मुद्रास्फीति से मुकाबला रहे हैं और फिर रोजगार प्रदाता और वृद्घि पर जोर दे रहे हैं। स्पष्ट है कि जब आर्थिक कारकों में बदलाव आता है तो उनमें अपनी धारणा बदलने की संभावना रहती है। कई चुनौतियों और ऊंची मुद्रास्फीति तथा भूराजनीतिक घटनाक्रम से वृद्घि पर दबाव पड़ रहा है।
इन घटनाक्रम के बीच आप निवेश स्थान के तौर पर भारत को किस नजरिये से देखते हैं?
आईजेलेनबर्ग: भूराजनीतिक टकराव बढऩे की स्थिति में, निवेशक सामान्य तौर पर सुरक्षित समझे जाने वाले ईएम की ओर रुख करेंगे। इसके अलावा हमें महामारी से उबरने के लिए ईएम के केंद्रीय बैंकों और सरकार की नीति के बीच अंतर में तेजी भी देख रहे हैं। आरबीआई की अनुकूल मौद्रिक नीति के साथ साथ ऊर्जा जिंसों, खासकर तेल में वृद्घि से ऊंची मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिला है। इन सबसे और रुपये में कमजोरी से निवेशक भारत में निवेश से कुछ हद तक परहेज कर सकते हैं।