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डीलिस्टिंग से पहले देनी होगी तफसील

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 08, 2022 | 9:41 AM IST

शेयर बाजार से डीलिस्ट होने यानी अपने शेयर हटाने की योजना बना रही कंपनियों के प्रस्ताव पर बाजार नियामक (सेबी) उसी सूरत में विचार करेगा जब वे अपने भविष्य की योजनाओं का खुलासा करेंगी।


नए दिशानिर्देश के तहत कंपनी को रणनीतिक साझेदारी और डीलिस्टिंग के बाद छह महीने के लिए कैपिटल इंफ्यूजन आदि अहम मुद्दों पर अपने योजना दस्तावेज भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) को सौंपने होंगे। पिछली सप्ताह सेबी बोर्ड की बैठक में इस मामले पर चर्चा हुई।

इस बैठक का एजेंडा पेपर सेबी ने सोमवार को जारी किया है। हालांकि डीलिस्टिंग नियमावली को कंपनी बोर्ड ने ही मंजूरी दी थी लेकिन कंपनी संबंधी मामलों के मंत्रालय की ओर से इस मामले से संबंधित आकलन के मिलने के बाद बोर्ड बैठक में चर्चा हुई।

इसके तहत डीलिस्टिंग की इच्छुक कंपनियों को यह प्रस्ताव स्वीकार करने वाले शेयरधारकों का भुगतान के लिए एक आउटर लिमिट का प्रावधान रखना होगा। यह उन कंपनियों के लिए होगा जिनकी पब्लिक शेयर होल्डिंग या पूंजी एक करोड़ रुपये या फिर इससे कम है।

अगर बीआईएफआर ने डीलिस्टिंग को मंजूरी दे दी है तो सेबी एक निश्चित अवधि के दौरान डीलिस्ट इक्विटी शेयरों की लिस्टिंग में छूट दे सकती है। बीआईएफआर यह मंजूरी संबंधित कंपनी को पुरर्संरचना और प्रबंधन में बदलाव की स्थिति में देता है।

इस छूट से पब्लिक शेयर होल्डरों को बाहर निकलने में मददगार साबित होगी। सूचीबध्द कंपनियों को बिना वोटिंग अधिकार के शेयर, नॉन कन्वर्टिबल डिबेंचर (एनसीडी) के साथ वारंट जैसी अलग तरह  की प्रतिभूतियों की लिस्टिंग की छूट मिल सकती है।

अगर ऐसा होता है तो कंपनियां क्वालिफाइड इंस्टीटयूशन प्लेसमेंट (क्यूआईपी) के माध्यम से अलग-अलग अधिकार वाले शेयर लिस्ट करा सकेंगी। सेबी ने जिन स्थितियों को अपने प्रस्ताव में शामिल किया है वे डीआईपी में शामिल हैं। यह प्रस्ताव सभी मौजूदा शेयरधारकों को दिया जाना चाहिए।

साथ ही, कंपनी को न्यूनतम पब्लिक शेयरहोल्डिंग आवश्यकताओं को भी पूरा करना होगा और उसे अलग अलग वोटिंग राइट वाले शेयरों में शेयर होल्डिंग पैटर्न सार्वजनिक करना होगा।

इस तरह की स्थितियों में छूट तभी दी जा सकती है जब एनसीडी कारोबार और वारंट का न्यूनतम कारोबार एक लाख रुपये के लॉट में हो।

सेबी ने हाल में 55 फीसदी से कम हिस्सेदारी रखने वाले प्रमोटरों को 5 फीसदी की दर से क्रिपिंग अधिग्रहण के जरिए 75 फीसदी तक अपनी हिस्सेदारी बढाने की छूट दी थी।

सेबी पहले ही डेट और इक्विटी आवंटन के लिए 70:30 के अनुपात के साथ विदेशी संस्थागत निवेशकों  को 100 फीसदी डेट इन्वेस्टमेंट या 100 फीसदी इक्विटी को पंजीकृत कराने की अनिवार्यता खत्म कर चुकी है।

First Published : December 16, 2008 | 9:05 PM IST