बड़ी संख्या में विदेशी कंपनियां भारत में तकनीकी सेवा उपलब्ध कराती हैं। ये कंपनियां या तो सीधे विदेशों से ही यहां सेवाएं देती हैं या फिर भारत में किसी दफ्तर के जरिए।
विदेशी कंपनियों को ऐसी सेवाएं उपलब्ध कराने पर जो आय होती है, उस पर भारत में डबल टैक्सेशन एवॉइडेंस एग्रीमेंट्स (डीटीएए) के तहत कर लगता है। भारत सरकार ने कई देशों के साथ यह कर समझौता किया है। हम इस मुद्दे पर विचार करेंगे कि क्या तकनीकी सेवाओं से होने वाली कमाई को ‘कारोबारी मुनाफा’ समझा जाए या फिर ‘तकनीकी सेवाओं के लिए शुल्क’ (एफटीएस) की श्रेणी में रखा जाए।
इस मुद्दे को स्पष्ट किया जाना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि भारत में विदेशी कंपनियों के कारोबारी मुनाफे पर 40 फीसदी की दर से कर लगाया जाता है (साथ ही अतिरिक्त सरचार्ज और शिक्षा उपकर भी लगाया जाता है)। वहीं एफटीएस पर आमतौर पर 10 फीसदी की दर से कर लगाया जाता है। इसलिए पहली बार देखने पर यही लगता है कि विदेशी कंपनियां यही चाहती होंगी कि उनकी आय को एफटीएस के दायरे में रखा जाए।इस संदर्भ में यह समझना जरूरी होगा कि एफटीएस पर राजस्व के कुल आंकड़े के हिसाब से कर लगाया जाता है।
पर अगर कारोबारी मुनाफा हो तो इस पर कर वसूलने के पहले कंपनियों के खर्चे को कुल राजस्व से घटा दिया जाता है और उसके बाद ही शेष राशि पर कर लगाया जाता है। यही वजह है कि कई बार ऐसा भी देखने को मिलता है कि कंपनियों के लिए हितकारी होता है कि उनकी आय को एफटीएस के दायरे में न रखकर कारोबारी मुनाफा ही समझा जाए। एक सामान्य गणना से यह स्पष्ट हो जाता है कि अगर किसी कंपनी का खर्चा कुल राजस्व के 75 फीसदी के बराबर हो तो ऐसी स्थिति में कंपनियों के लिए यही फायदेमंद होगा कि उनकी आय को एफटीएस की बजाय कारोबारी मुनाफा ही समझा जाए।
वर्ली पारसन्स सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड (2008) (170 टैक्समैन 91) के एक हालिया मामले में कुछ ऐसा ही मुद्दा अथॉरिटी ऑफ एडवांस रूलिंग (एएआर) के सामने उठाया गया था। मामला ऑस्ट्रेलिया की एक कंपनी का था जो भारत में इंजीनियरिंग, अधिप्राप्ति और प्रोजेक्ट मैनेजमेंट से संबंधित सेवाएं उपलब्ध कराती थी। इस कंपनी ने गेल इंडिया लिमिटेड के साथ एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में करार किया था। यह प्रोजेक्ट गेल की झोली में था। एक परमानेंट इस्टैब्लिशमेंट (पीई) के जरिए इस प्रोजेक्ट का अधिकतर काम भारत में पूरा किया गया था।
इस मामले में एएआर के पास जो मुद्दे उठाए गए थे, वे कुछ इस तरह हैं: इस कॉन्ट्रैक्ट से जो आय प्राप्त हुई है क्या वह भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच तैयार डीटीएए के अनुच्छेद 12 के अनुसार ‘रॉयल्टीज’ के दायरे में आती है। या फिर इस आय को डीटीएए के ही अनुच्छेद सात के तहत कारोबारी मुनाफा समझा जाता है। अगर इस आय को कारोबारी मुनाफा करार दिया जाता है तो फिर इस पर भारत में कर लगाने का क्या औचित्य है और यह कितना सही है। ऑस्ट्रेलियाई कंपनी का कहना था कि उसकी आय पर कारोबारी मुनाफे के तौर पर कर वसूला जाना चाहिए जबकि, विभाग का मानना था कि यह एफटीएस के दायरे में आता है।
इस पर अथॉरिटी ने कंपनी के तर्क से सहमति जताते हुए फैसला दिया कि, ‘भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच तैयार डीटीएए के अनुच्छेद 12 के तहत गेल के साथ किए गए करार से हुई आय को रॉयल्टीज नहीं माना जा सकता है। डीटीएए के ही अनुच्छेद 7 के अनुसार इस आय पर कारोबारी मुनाफा के हिसाब से ही कर वसूला जाना चाहिए।’ एएएआर भारत में एफटीएस पर लगाए जाने वाले कर पर नजर रखता रहा है।