प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज कहा कि कृषि क्षेत्र में आधुनिकीकरण की तत्काल आवश्यकता है क्योंकि पहले ही बहुत समय बर्बाद हो चुका है।
‘मन की बात’ कार्यक्रम में मोदी ने भारत में कोविड-19 के खिलाफ चलाए जा रहे दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान की तारीफ की और ‘दवाई भी, कड़ाई भी’ की बात पर जोर दिया। उन्होंने पिछले साल के ‘ताली थाली’ और दीपक जलाने के अभियान को याद करते हुए कहा कि यह अभियान ‘कोरोना योद्धाओं’ के दिल को छू गया।
उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र में आधुनिक पद्धतियां अपनाना आवश्यक है और जीवन के हर आयाम में नयापन, आधुनिकीकरण अनिवार्य है। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘भारत के कृषि क्षेत्र में आधुनिकीकरण वक्त की जरूरत है। इसमें देरी की गई और हमने पहले ही बहुत समय गंवा दिया है।’ उन्होंने कहा, ‘कृषि क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर पैदा करने, किसानों की आय बढ़ाने के लिए यह महत्त्वपूर्ण है कि खेती के पारंपरिक तरीकों के साथ ही नए विकल्पों, नवोन्मेष को अपनाया जाए।’
मोदी ने कहा कि देश ने श्वेत क्रांति के दौरान यह देखा और मधुमक्खी पालन भी ऐसे ही विकल्प के रूप में सामने आ रहा है। प्रधानमंत्री ने कृषि में ऐसे समय में आधुनिक तरीके अपनाने का आह्वान किया जब सैकड़ों किसान तीन नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर पिछले साल नवंबर से दिल्ली की सीमाओं- गाजीपुर, सिंघू और टिकरी बॉर्डर पर डेरा डाले हुए हैं।
सरकार का कहना है कि इन कानूनों से किसानों की आय बढ़ेगी और वे देश में कहीं भी अच्छे दाम पर अपनी फसल बेच सकेंगे। मोदी ने कहा कि देश में मधुमक्खी पालन, शहद या मीठा क्रांति की आधारशिला बन रहा है और बहुत से किसान इसे अपना रहे हैं।
नए कृषि कानूनों से ही दोगुनी होगी किसानों की आय
नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने कहा है कि यदि तीनों नए कृषि कानूनों का कार्यान्वयन जल्द नहीं होता है, तो 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य हासिल नहीं हो पाएगा। उन्होंने कहा कि किसान यूनियनों को सरकार की इन कानूनों पर धारा-दर-धारा के आधार पर विचार-विमर्श की पेशकश को स्वीकार करना चाहिए। नीति आयोग के सदस्य (कृषि) चंद ने कहा कि जीन संवर्धित फसलों पर पूर्ण प्रतिबंध सही रवैया नहीं होगा। दिल्ली की सीमा पर किसान यूनियनें पिछले चार महीने से इन नए कृषि कानूनों का विरोध कर रही हैं। सरकार और यूनियनों के बीच इन कानूनों को लेकर 11 दौर की बातचीत हो चुकी है। आखिरी दौर की वार्ता 22 जनवरी को हुई थी। 26 जनवरी को किसानों की ट्रैक्टर रैली में हुई हिंसा के बाद बातचीत का सिलसिला टूट गया था। किसानों का कहना है कि इन कानूनों से राज्यों द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद व्यवस्था समाप्त हो जाएगी। भाषा