सरकार द्वारा सितंबर 2018 में राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति की घोषणा के 2 साल बाद ‘डिजिटल इंडिया’ विजन का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य हकीकत से दूर नजर आ रहा है।
इस योजना के तहत फाइबर के माध्यम से वाई-फाई हॉट स्पॉट की सुविधा मुहैया कराकर देश भर में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी मुहैया कराना है, जो मोबाइल ब्रॉडबैंड के पूरक के रूप में होगा। यह लक्ष्य हासिल करने के लिए 2020 तक 50 लाख से ज्यादा वाई-फाई हॉटस्पॉट की सुविधा दी जानी थी, जिसे 2022 तक दोगुना किया जाना है।
जमीनी हकीकत अलग है। सरकार द्वारा लक्ष्य की घोषणा के 2 साल बाद सिर्फ 6 प्रतिशत लक्ष्य हासिल किया जा चुका है। डिजीएनॉलिसिस के मुताबिक सिर्फ 30.6 लाख हॉटस्पॉट स्थापित करने का लक्ष्य हासिल किया जा सका है। रिसर्च एजेंसी ने अनुमान लगाया है कि 2021 के अंत तक यह 21 लाख हो जाएगा, जो 2022 के लक्ष्य का महज पांचवां हिस्सा होगा।
इस नीति में 4 साल में देश भर में 20 लाख ग्रामीण हॉट स्पॉट स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया था। अब तक सिर्फ लक्ष्य का सिर्फ 4 प्रतिशत ही स्थापित किया जा सका है। अगर ग्रामीण इलाकों में परिचालन वाले वाई-फाई की स्थिति देखें तो महज 30,000 परिचालन में हैं, जो लक्ष्य की तुलना में बहुत कम हो जाता है।
ब्रॉडबैंड इंडिया फोरम के टीवी रामचंद्रन ने कहा, ’50 लाख वाई-फाई हॉटस्पॉट स्थापित करने का लक्ष्य हासिल करने के लिए हमारे पास 100 दिन बचे हैं। 2022 तक 1 करोड़ हॉटस्पॉट स्थापित किए जाने हैं। यह बड़ी चुनौती है और इसके बाद भी संभवत: इस क्षेत्र के वैश्विक अग्रणी देशों की स्थिति में नहीं पहुंचा जा सकता है।’ रामचंद्रन का कहना है कि पिछले 2 दशक के दौरान वाई-फाई इकोसिस्टम तैयार करने की नीति कारगर नहीं रही है। उन्होंने कहा, ‘हमें वाई-फाई को उदार बनाने के लिए ट्राई की सिफारिशों को स्वीकार करना चाहिए और स्थानीय उद्यमियों को अनुमति देकर बाधारहित गतिविधियों का सृजन करना चाहिए। ऐसा किए बगैर सबको ब्राडबैंड मुहैया कराने का लक्ष्य संभवत: हकीकत में नहीं बदल सकता।’
बहरहाल दूरसंचार कंपनियां इस तरह के किसी कदम के पक्ष में नहीं हैं। ट्राई के चेयरमैन आरएस शर्मा ने हाल में सार्वजनिक रूप से कहा है कि दूरसंचार कंपनियों की धारणा है कि वाई-फाई हॉटस्पॉट की वजह से उनका डेटा वायरलेस राजस्व खत्म होगा, जो कम अवधि के हिसाब से देखा जा रहा है। बहरहाल इस पर अंतिम फैसला दूरसंचार विभाग को करना है।
इस नीति के तहत 24.8 करोड़ परिवारों में से 50 प्रतिशत को फिक्स्ड लाइन ब्रॉडबैंड से जोड़ा जाना है। लेकिन 2 करोड़ से कम फिक्स्ड ब्रॉडबैंड कनेक्शन को देखते हुए यह बड़ी चुनौती हो सकती है। साथ ही इसमें यह भी समस्या है कि रिलायंस जियो जैसी कई कंपनियां अपने पहले की योजना का फिर से आकलन कर रही हैं।
योजना के तहत 2020 तक सभी ग्रामपंचायतों को 1 जीबीपीएस कनेक्टिविटी मुहैया कराई जानी है। लेकिन अब यह संभव नहीं लगता, क्योंकि परियोजना को लागू कर रही बीबीएनएल के मुताबिक 2.5 लाख ग्रामपंचायतों में से सिर्फ 57 प्रतिशत को ही ऑप्टिक फाइबर से जोड़ा गया है और यहां उपकरण स्थापित किए गए हैं।
अच्छी खबर यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में देश के हर गांव (5 लाख से ज्यादा) को 1000 दिन में ऑप्टिक फाइबर से जोडऩे का लक्ष्य रखा है।
ग्रामीण भारत को जोडऩे की विभिन्न योनजाओं की अंतिम तिथि में चूक को देखते हुए यह बहुत बड़ा लक्ष्य नजर आ रहा है। ईवाई के मुताबिक मौजूदा रफ्तार की तुलना में 1.6 गुना तेज रफ्तार से केबल बिछाने की जररूरत होगी।
फाइबराइजेशन अभियान के तहत इस नीति में 2022 तक कम से कम 60 प्रतिशत मोबाइल टावरों के फाइबरेशन की जरूरत बताई गई है। इसकी वजह यह है कि 5जी के लिए इसकी जरूरत है। इसके अलावा ओपन रेडियो एक्सेस (जहां सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर को अलग कर ओपन प्लेटफॉर्म पर काम किया जासकता है) के लिए फाइबर सुविधा के प्रभावी तरीके से काम करना जरूरी है।
एक प्रमुख टावर कंपनी के शीर्ष अधिकारी ने कहा, ‘इस समय उद्योग का 30 प्रतिशत फाइबराइजेशन हुआ है। 2023 तक इसे दोगुना करने के लिए 3.5 अरब डॉलर निवेश की जरूरत है।’ ज्यादातर कंपनियों का मानना है कि 5जी लागू करने में देरी होगी और यह 2022 के पहले नहीं हो पाएगा और ऐसा कुछ ही शहरों में होगा। इस तरह से यह कारोबारी परिदृश्य पर निर्भर होगा।
दूरसंचार विश्लेषक महेश उप्पल का कहना है कि मुख्य समस्या एनटीपी की है। उन्होंने कहा, ‘नीति में लक्ष्य दिया गया है, लेकिन इसका विश्लेषण नहीं किया गया है कि इन क्षेत्रों में समस्या क्या है और उसका समाधान कैसे किया जाना है।’