असामान्य आयात निर्यात परिदृश्य के कारण देश में कंटेनर की कमी होने से शिपिंग लाइनों के साथ साथ आयात और निर्यात की लागत बहुत अधिक बढ़ती जा रही है। आईएमसी चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री के निदेशक मार्क एस. फर्नांडिस ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘सभी मार्गों पर माल भाड़े में 20 फीसदी से लेकर 100 फीसदी तक की वृद्घि हुई है जो अलग अलग क्षेत्र के आधार पर निर्भर करता है। ऐसे समय पर जब ग्राहक इस मूल्य वृद्घि को झेल पाने में सक्षम नहीं है तो निर्यातक घाटे में परिचालन कर रहे हैं।’
अप्रैल से नवंबर की अवधि में मात्रा के हिसाब से भारत में होने वाले आयात में 22 से 24 फीसदी की गिरावट आई जबकि समान अवधि में ही यहां से होने वाले निर्यात में 29 फीसदी की उछाल आई। इससे घरेलू बाजार में कंटेनर का असंतुलन खड़ा हो गया। यह जानकारी उद्योग के अधिकारियों ने दी है। मूल्य के संदर्भ में हालांकि, अप्रैल से नवंबर की अवधि में भारत के निर्यात और आयात में क्रमश: 18 फीसदी और 34 फीसदी की गिरावट हुई है।
कंटेनर फ्रेट स्टेशन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएफएसएआई) के महासचिव उमेश ग्रोवर ने कहा, ‘चीन भारत के लिए एक मजबूत आयातक साझेदार रहा है। चीन से होने वाले आयातों पर निगरानी बढ़ाए जाने और चीनी सामान पर रोक लगाए जाने के बाद, वहां से होने वाले आयात में काफी कमी आई जिसके परिणामस्वरूप देश में कंटेनर का असंतुलन हो गया है।’ माल भाड़े में वृद्घि होने से सभी तरह के निर्यातों में निर्यातकों के मुनाफे पर असर पड़ा है।
एक निर्यातक ने कहा, ‘हम असहाय स्थिति में हैं। ग्राहक बढ़ी हुई कीमतों पर सामान लेने के लिए तैयार नहीं है जबकि शिपिंग लाइन (नौवहन कंपनियों) ने माल भाड़ा बढ़ा दिया है। ऐसे में हमें ही इस बढ़ी हुई लागत का बोझ उठाना पड़ रहा है क्योंकि सामान का उत्पादन किया जा चुका है और उनकी आपूर्ति करना जरूरी है। पिछले चार महीने में माल भाड़े में 3 से 5 गुने का इजाफा हो चुका है। शिपिंग लाइन ने इस साल के आरंभ में विश्वव्यापी लॉकडाउन के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए अपना एक समूह बना लिया है।’
निर्यातक मोटे तौर पर अपनी खेप चीन और सूदूर पूर्व के देशों में भेजते हैं।
कंटेनर खंड में भाड़े में वृद्घि होने के बावजूद कंटेनर की उपलब्धता के मुद्दे पर मामूली सहूलियत मिली है, वह भी तब जबकि बुकिंग पहले से हुई हो।
फर्नांडिस ने कहा, ‘अब निर्यातक करीब 1 से 2 महीने पहले ही शिपिंग लाइन के साथ योजना बना रहे हैं और यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि माल सही समय पर चला जाए। यदि अच्छी तरह से योजना बनाई जाती है तो कंटेनर हासिल करने में अधिक देरी नहीं होती है।’
40 फुट के मानक कंटेनर में 22-23 टन माल की ढुलाई हो सकती है और ये हल्के तथा मोटे सामानों के लिए उपयोगी होते हैं जबकि 20 फुट मानक कंटेनर का इस्तेमाल भारी सामान के परिवहन के लिए होता है और इसमें 28 टन माल आ सकता है।
उद्योग के एक विशेषज्ञ ने पहचान जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, ‘अग्रिम बुकिंग के लिए भी एक प्रतीक्षा सूची है। बुक करना आसान काम नहीं है लेकिन एक बार कंटेनर बुक हो जाने पर उसकी उपलब्धता का पूरा भरोसा होता है। इसके बाद स्लॉट हासिल करना फिर से एक संघर्ष होता है।’
भारत में बामर लॉरी, हुंडई और नथानी सहित कुछ कंपनियां कंटेनर का निर्माण करती थी लेकिन इसमें चीन से कड़ी प्रतिस्पर्धा मिलने के बाद ये इस कारोबार से बाहर हो गईं। चीन ने 1000 डॉलर में एक कंटेनर तैयार करना आरंभ कर दिया जबकि भारत में एक कंटेनर का उत्पादन 1800 डॉलर से 2000 डॉलर में होता था।