US-China Trade War: अमेरिका ने चीन पर टैरिफ बढ़ाकर 245% कर दिया है। दोनों देशों के बीच ट्रेड वॉर की आशंका और बढ़ गई है। इस बीच गोल्डमैन सैक्स (Goldman Sachs) ने अनुमान जताया कि अगर अमेरिका और चीन के बीच वित्तीय संबंध पूरी तरह टूटते हैं, तो अमेरिकी निवेशकों को करीब 800 अरब डॉलर के चीनी शेयरों से हाथ धोना पड़ सकता है। वहीं, दूसरी तरफ चीनी निवेशकों को भी अमेरिका में रखे अपने फाइनेंशियल एसेट्स को बेचना पड़ सकता है, जिसकी कुल अनुमानित राशि 1.7 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर हो सकती है। समाचार एजेंसी ब्लूमबर्ग ने अपनी एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी।
गोल्डमैन के विश्लेषकों, जिनमें किंगर लाउ भी शामिल हैं, ने बुधवार को जारी एक नोट में लिखा कि फिलहाल अमेरिकी डिपॉजिटरी रसीदों (ADRs) के रूप में लिस्टेड चीनी कंपनियों के कुल बाजार पूंजीकरण का लगभग 7% हिस्सा अमेरिकी संस्थानों के पास है।
ये संस्थाएं हांगकांग में ट्रेड नहीं कर सकतीं, जिससे उनके लिए वहां जाकर शेयर खरीदना संभव नहीं होगा। खासकर अगर अलीबाबा ग्रुप जैसी कंपनियों को अमेरिका से अनिवार्य रूप से डीलिस्ट कर दिया जाता है। इसका मतलब यह है कि ऐसे निवेशक इन कंपनियों के शेयरों में अपनी होल्डिंग को बरकरार नहीं रख पाएंगे यदि उन्हें केवल एशियाई फाइनेंशियल हब (हांगकांग) में ही लिस्टिंग के जरिए कारोबार करना पड़े।
Also read: ट्रेड वॉर के बीच अमेरिका में बगावत! ट्रंप के टैरिफ को कैलिफोर्निया ने बताया गैरकानूनी
गोल्डमैन सैक्स अब उन ग्लोबल बैंकों की कतार में शामिल हो गया है जो अमेरिका और चीन के बीच ‘आर्थिक रिश्ते टूटने’ की सबसे बुरी स्थिति का आकलन कर रहे हैं। जैसे-जैसे दोनों देशों के बीच ट्रेड वॉर तेज हो रहा है, एक समय पर असंभव मानी जाने वाली इस संभावना को अब गंभीरता से लिया जा रहा है।
अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंजों द्वारा चीनी कंपनियों को बाहर निकालने की आशंका एक बार फिर से सतह पर आ गई है। यह मुद्दा पहली बार राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल में सामने आया था। हाल ही में अमेरिकी ट्रेजरी सेक्रेटरी स्कॉट बेसेन्ट ने चीन के साथ व्यापार वार्ता (trade talks) के संदर्भ में यह कहकर चिंता और बढ़ा दी कि “सभी विकल्प मेज पर हैं।”
विश्लेषकों ने लिखा, “वैश्विक व्यापार व्यवस्था में असाधारण स्तर की अनिश्चितता के चलते वैश्विक पूंजी बाजारों में जबरदस्त उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है। साथ ही, दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच मंदी और रणनीतिक क्षेत्रों में डिकपलिंग (वियोग) के जोखिम को लेकर भी चिंताएं बढ़ रही हैं।”
उनका अनुमान है कि अगर चीनी कंपनियों को जबरन अमेरिकी बाजारों से डीलिस्ट किया जाता है, तो अमेरिकी डिपॉजिटरी रसीदों (ADRs) में मौजूदा कीमतों से 9% तक की गिरावट आ सकती है, जबकि MSCI China Index में 4% तक का वैल्यूएशन में गिरावट देखने को मिल सकता है।
Also read: Trump का ‘सेल्फ-डिपोर्टेशन’ प्लान: अवैध प्रवासियों को फ्लाइट टिकट और पैसे देकर वापस भेजेगा अमेरिका
विश्लेषकों ने अपने नोट में लिखा कि दूसरी तरफ, समान स्थिति में चीनी निवेशकों को भी अमेरिका में रखे अपने फाइनेंशियल एसेट्स को बेचना पड़ सकता है, जिसकी कुल अनुमानित राशि 1.7 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर हो सकती है। इसमें से लगभग 370 अरब डॉलर इक्विटी में और 1.3 लाख डॉलर बॉन्ड में होगा।
गोल्डमैन के अनुसार, वर्तमान में अमेरिकी संस्थागत निवेशक चीनी ADRs में लगभग 250 अरब डॉलर का निवेश रखते हैं, जो इस बाजार का 26% है। हांगकांग के शेयर बाजार में इनकी हिस्सेदारी लगभग 522 अरब डॉलर है, जो वहां के कुल मार्केट वैल्यू का 16% है। इसके अलावा, चीन की ऑनशोर इक्विटीज (A शेयरों) में उनकी हिस्सेदारी लगभग 0.5% है।