बाल्टिक बंदरगाहों से भारत आने वाले रूसी तेल की शिपमेंट पर फ्रेट दरों (freight rates) में मई के अंत से जून की शुरुआत तक और गिरावट दर्ज की गई है। टैंकरों की अधिक उपलब्धता के कारण यह कमी देखने को मिली है। हालांकि, अगर यूरोप ने रूसी कच्चे तेल पर प्रस्तावित मूल्य सीमा को लागू कर दिया तो यह रुख पलट सकता है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने यह जानकारी दी।
यूरोपीय यूनियन ने यूक्रेन को लेकर रूस के खिलाफ नया प्रतिबंध पैकेज प्रस्तावित किया है और इसमें ग्रुप ऑफ सेवन (G7) देशों द्वारा रूसी क्रूड ऑयल की मूल्य सीमा को 60 डॉलर प्रति बैरल से घटाकर 45 डॉलर प्रति बैरल करने का सुझाव दिया गया है।
G7 देशों और यूरोपीय यूनियन ने 2022 के अंत में रूसी तेल पर 60 डॉलर प्रति बैरल की मूल्य सीमा लागू की थी। इस फैसले के तहत, जो खरीदार इस सीमा से ऊपर कीमत देकर रूसी तेल खरीदते थे, उन्हें पश्चिमी देशों की शिपिंग और बीमा सेवाओं का लाभ नहीं मिल पाता था। इसका उद्देश्य रूस की तेल से होने वाली आय को सीमित करना था।
हालांकि, अब रूस के प्रमुख ग्रेड यूराल्स क्रूड (Urals crude) की कीमत इस निर्धारित सीमा से नीचे आ गई है, जिससे पश्चिमी देशों की शिपिंग कंपनियां दोबारा रूसी तेल बाजार में सक्रिय हो गई हैं।
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रूस के बंदरगाहों पर यूराल्स क्रूड की कीमतें अप्रैल की शुरुआत से ही 60 डॉलर प्रति बैरल से नीचे स्थिर बनी हुई हैं। इसके चलते पश्चिमी शिपिंग कंपनियों, खासकर ग्रीस की कंपनियों, ने एक बार फिर से शिपिंग सेवाएं बहाल कर दी हैं। इससे टैंकरों की उपलब्धता बढ़ी है और फ्रेट दरों पर दबाव बना है।
बुधवार तक, बाल्टिक सागर के प्रिमोर्स्क बंदरगाह (Primorsk port) से लोड किए गए यूराल्स क्रूड की कीमत लगभग 54.72 डॉलर प्रति बैरल रही।
बाल्टिक बंदरगाहों, जिनमें उस्त-लूगा (Ust-Luga) भी शामिल है, से भारत के लिए यूराल्स क्रूड की शिपमेंट लागत अप्रैल और मई में औसतन 60 लाख डॉलर से घटकर अब 55 से 57 लाख डॉलर के बीच आ गई है। मार्च की शुरुआत में यही लागत लगभग 80 लाख डॉलर तक पहुंच गई थी।
जनवरी में रूस की ऊर्जा कंपनियों पर लगाए गए अमेरिका के नए प्रतिबंध प्रभावी होने के बाद रूसी कच्चे तेल की शिपिंग दरों में तेज बढ़ोतरी हुई थी। इन प्रतिबंधों के चलते कई टैंकरों पर असर पड़ा, जिसके बाद रूसी तेल विक्रेताओं को वैकल्पिक टैंकरों की तलाश करनी पड़ी।
फ्रेट दरों में हालिया गिरावट के बावजूद वे अब भी जनवरी के स्तर से ऊपर बनी हुई हैं। उस समय बाल्टिक बंदरगाहों से भारत तक रूसी कच्चे तेल की एकतरफा शिपमेंट की लागत 47 लाख डॉलर से 49 लाख डॉलर के बीच थी।