ईंधन के बढ़ते दाम और और मंहगे ऋण ने विमानन कंपनियों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं।
वाणिज्यिक विमान बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी एयरबस एसएएस का अनुमान है कि इसी वजह से उसे साल 2008 में बहुत कम ऑर्डर मिलेंगे। कंपनी के मुख्य परिचालन अधिकारी जॉन लीही ने ऑकलैंड में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि इस साल ऑर्डरों की संख्या गिरकर 750 तक पहुंच जाएगी।
यह पिछले चार सालों का सबसे निचला स्तर है। पिछले साल एयरबस को 1,341 ऑर्डर मिले थे और इस तरह इस बार फ्रांस की इस कंपनी की बिक्री साल 2007 के मुकाबले आधी हो जाएगी। दिलचस्प बात तो यह है कि बोइंग की बादशाहत छीनने वाली इस कंपनी ने पांच सालों में पहली बार सालाना घाटा दर्ज किया जबकि बोइंग को 2007 में रिकॉर्ड 1,413 ऑर्डर मिले।
सैन्य परिवहन के लिए हवाई जहाज और 525 सीट वाले ए-380 सुपरजंबो जहाज की लागत ज्यादा हो जाने की वजह से एयरबस को यह घाटा हुआ।जहां अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुमान के मुताबिक अमेरिकी सब प्राइम संकट के चलते करीब 1 खरब का चूना लग सकता है वहीं पिछली तिमाही में जेट ईंधन के दाम में 16 फीसदी का इजाफा भी खासा असर डाल रहा है।
एयरबस और बोइंग ने तो ईंधन की खपत कम करने के इरादे से कम भार वाले ईंधन का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। लीही कहते हैं कि क्रेडिट की कमी तो है ही साथ ही मंहगे ईंधन की मार से बाजार में मांग कम हो गई है।
एयरबस की कुल बिक्री का 23 हिस्सा ऐरोनॉटिक, रक्षा और स्पेस कंपनियों से होता है लेकिन इस साल की शुरुआत ही खराब रही। पहले तीन महीनो में केवल 420 जहाज बनाने के आदेश मिले और एयरबस के अरमानो पर पानी फिर गया जो इससे कहीं ज्यादा ऑडरों का ख्वाब संजोए थी।
कंपनियों की कमाई का कैसा होगा हाल
विमानन कंपनियों की जेब हल्की होने के आसार हैं। पिछले हफ्ते इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ठ एसोसिएशन ने साल 2008 ने कहा कि दुनिया भर की एयरलाइन कंपनियों के मुनाफे में 10 फीसदी की गिरावट आएगी। इसके लिए अमेरिकी अर्थव्यवस्था में नरमी और ईंधन के दाम में बढ़ोत्तरी को जिम्मेदार ठहराया गया है।
विमानन कंपनियो की खराब हालत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सस्ती हवाई सेवा देने वाली स्काईबस को कुछ दिन पहले ही अपनी सेवा बंद कर खुद को दिवालिया घोषित करना पड़ा। कंपनी को शुरू अभी एक साल भी नहीं गुजरा था। इससे पहले भी दो कंपनियों ने अपने पंख समेटने में ही भलाई समझी थी।