भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (इन-स्पेस) के अध्यक्ष पवन गोयनका ने कहा है कि भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र को अब केवल भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) पर निर्भर रहने के बजाय वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनने, अंतरिक्ष से संबंधित हर सेवा उपलब्ध कराने और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में आक्रामक तरीके से अपनी जगह बनाने की आवश्यकता है।
बुधवार को सैटकॉम इंडस्ट्री एसोसिएशन (एसआईए) द्वारा सालाना आयोजित होने वाले इंडिया स्पेस कांग्रेस कार्यक्रम में गोयनका ने कहा कि इस क्षेत्र की कंपनियों को इस बात की चिंता करनी बंद कर देनी चाहिए कि ‘इसरो कब मुझे काम देगा’और इन्हें भारत और विदेश दोनों में अन्य सरकारी विभागों के साथ कारोबार करने पर ध्यान देना चाहिए।
गोयनका ने भू-स्थानिक और पृथ्वी पर नजर रखने वाले ऐप्लिकेशन के लिए बुनियादी मॉडल बनाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया जिसमें आर्टिफिशिल इंटेलीजेंस (AI), मशीन लर्निंग (एमएल) और डेटा फ्यूजन का लाभ उठाया जा सके। उनका कहना है, ‘प्रौद्योगिकी के संदर्भ में देखें तो अंतरिक्ष क्षेत्र के बाहर बहुत कुछ हो रहा है जिसे अंतरिक्ष क्षेत्र के भीतर लाना होगा और निजी क्षेत्र से बेहतर कोई नहीं है जो ऐसा कर सके।’
ऐसी ही एक तकनीक स्पेस इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) है, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि इस पर अधिक आक्रामक रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है। अंतरिक्ष में छोटे या नैनो-उपग्रहों के समूह शामिल होते हैं जो दुनिया भर में आईओटी उपकरणों और सेंसर को जोड़ने का काम करते हैं। इसका इस्तेमाल सुदूर इलाकों में जहाजों, विमानों और ट्रकों की लोकेशन पर वास्तविक समय में निगाह रखने के लिए किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत की अपनी क्षेत्रीय उपग्रह नेविगेशन प्रणाली नाविक को तकनीक के जरिये मुख्यधारा में लाने के लिए नागरिक जरूरतों के प्रयोग में लाया जाना चाहिए। नाविक को इसरो ने जीपीएस जैसी विदेशी प्रणाली के विकल्प के रूप में तैयार किया है।
बड़ी बोली जल्द
गोयनका ने बताया कि दो प्रमुख पहलें, पृथ्वी अवलोकन समूह और सैटेलाइट-ऐज-ए-सर्विस (एसएटीएएएस) के लिए अगले सप्ताह अंतिम बोली लगाई जाएगी, जिससे निजी क्षेत्र को सरकारी सहायता के साथ जुड़ने का मौका मिलेगा। एसएटीएएएस एक ऐसा कारोबारी मॉडल है जहां उपग्रह परिचालक, ग्राहकों को उपग्रह लेने या लॉन्च करने की जरूरत के बजाय, सबस्क्रिप्शन या उपयोग केआधार पर उपग्रह डेटा, तस्वीरें, संचार या नेविगेशन सेवाओं तक पहुंच देते हैं।
इस तरह की पेशकश में अर्थ ऑब्जर्वेशन कॉन्सटेलेशन या एक साथ काम करने वाले उपग्रहों का एक समूह है जो पृथ्वी की सतह, वायुमंडल और पर्यावरण से जुड़े डेटा एकत्र करने के लिए डिजाइन किए गए हैं और इन्हें संचालित किया जाता है। ये उपग्रह पर्यावरण निगरानी, कृषि, आपदा प्रबंधन और शहरी योजना के लिए लगातार, बेहतर गुणवत्ता वाली तस्वीरें और अन्य डेटा मुहैया कराते हैं।
गोयनका ने ‘बिल्ड-टू-प्रिंट’ मॉडल से डिजाइन-केंद्रित सोच की ओर बढ़ने की अपील की है। उन्होंने कहा कि इसरो पहले से ही दोबारा इस्तेमाल किए जाने वाले रॉकेट, अंतरिक्ष में उपग्रहों की मरम्मत, अंतरिक्ष रोबोटिक्स और अंतरिक्ष निर्माण पर काम कर रहा है। ईलॉन मस्क की स्पेसएक्स पहले ही दोबारा इस्तेमाल किए जाने वाले रॉकेट तैनात कर चुकी है।
गोयनका ने यह बताया कि नियामक अनिश्चितताओं और स्पेक्ट्रम आवंटन से जुड़ी दिक्कतों का समाधान अब भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) और दूरसंचार विभाग ने कर दिया और साथ ही उन्होंने यह स्पष्ट किया कि संचार के लिए उपग्रह समूहों (लो अर्थ ऑर्बिट सैटेलाइट) के लिए तीन लाइसेंस पहले ही दिए जा चुके हैं और यह उम्मीद की जा रही है कि इस तरह के प्रयास से भारत के डिजिटल विभाजन को पाटने में मदद मिलेगी।