रुपये की कीमत में हाल में आई गिरावट हमें याद दिलाती है कि हर सिक्केके दो पहलू होते हैं। डॉलर की तुलना में रुपये की कीमत में हाल की गिरावट एक अपवाद है और कई के लिए यह परेशानी की वजह बन गई है।
लेकिन यह खबर उन कंपनियों के लिए अच्छी है जिनका कारोबार मुख्यत: वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात पर निर्भर है। रुपए की कीमत में आई हालिया गिरावट की मुख्य वजह कच्चे तेल की ऊंची कीमतों को भी माना जा सकता है। जिसने 22 मई को अब तक के सबसे ऊंचे स्तर 135 डॉलर प्रति बैरल को छू लिया।
भारत अपनी जरुरत का 73 फीसदी तेल अलग अलग विदेशी बाजारों से आयात करता है। कच्चे तेल की कीमतों के बढ़ने का मतलब है कि देश केव्यापार घाटे का बढ़ना। जो कि अभी भी देश के जीडीपी का 10 फीसदी है। कच्चे तेल की कीमतों के बढ़ने का मतलब है कि देश का व्यापार घाटा आगे और बढ़ेगा। जिससे तेल की मार्केटिंग करने वाली कंपनियों को ज्यादा डॉलर खर्च करने होंगे।
अनुमान के अनुसार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतों में 10 डॉलर प्रति बैरल के परिवर्तन से देश को करीब 6.5 से 7 अरब डॉलर का व्यापार घाटा होगा। इसकेअतिरिक्त बढ़ती तेल की कीमतों का प्रभाव देश की महंगाई पर भी पड़ेगा जो पहले ही 8 फीसदी केस्तर को पार कर गई है। इससे भारतीय मुद्रा की स्थिति और कमजोर होगी।
विश्लेषकों का मानना है कि इसके अलावा कुछ और भी कारण हैं जो रुपये के डॉलर की तुलना में कमजोर होने के लिए जिम्मेदार हैं। रेलिगेयर सिक्योरिटीज में इक्विटी सेक्शन अध्यक्ष अमिताभ चक्रवर्ती का कहना है कि इसकी एक वजह यह भी है कि पिछले पांच महीनों में देश में डॉलर के रुप में विदेशी संस्थागत निवेश(एफआईआई) और (एफडीआई )का प्रवाह न के बराबर रहा है।
साल की शुरुआत से ही विदेशी संस्थागत निवेशकों ने देश में बिकवाली ज्यादा की। इसका मतलब है कि उन्होंने भारतीय बाजार से पूंजी हटाई है। विदेशी संस्थागत निवेशक साल की शुरुआत से अब तक 13,201 करोड़ रुपये देश केइक्विटी बाजार से उठा चुके हैं। यद्यपि रुपये की कीमत में आई गिरावट हाल की ही घटना रही है, मुद्रा विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस दौरान सिर्फ रुपया ही दबाव की स्थिति में नही हैं बल्कि डॉलर भी भारी दबाव में है।
ईडलवाइस सिक्योरिटीज के अर्थविशेषज्ञ सिद्धार्थ सान्याल का कहना है कि वैश्विक तेल की कीमतों में जारी अनिश्चितता के चलते भारतीय रुपया दबाव में हो सकता है क्योंकि तेल की मांग को पूरा करने के लिए हमारी बड़ी तेल कंपनियों को भारी मात्रा में डॉलर की जरुरत होगी। विशेषज्ञों का यह भी अनुमान है कि अगले तीन से छह महीनों केदौरान रुपये का कारोबार डॉलर की तुलना में 43 से 44 रुपये केस्तर पर होगा।
वर्तमान में डॉलर की तुलना में इसका कारोबार 42.59 के स्तर पर हो रहा है। हालांकि यह स्थिति बदल भी सकती है यदि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आती है और विदेशी संस्थागत निवेशक फिर से भारतीय इक्विटी बाजार की ओर रुख करते हैं। एक और भी कारण है जो लंबी अवधि में भारतीय अर्थव्यवस्था को सपोर्ट कर सकता है और वह है भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती।
हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भारतीय रिजर्व बैंक का हस्तक्षेप बाहरी वाणिज्यिक उधारी का बढ़ना मुद्रा की स्थिति को बदल सकता है। यद्यपि रुपये की आगे के चाल चलन पर कुछ कहना जल्दबाजी होगी इसलिए मुद्रा की अगले एक हफ्ते के दौरान की गतिविधि पर गौर करते हैं। निर्यात-आधारित कंपनियों के लिए यह अच्छा समय है जो पहले रुपये की तुलना में डॉलर की स्थिति कमजोर होने की वजह से नुकसान उठा रही थीं।
आईटी की फिर से वापसी होगी?
टेक्नोलॉजी हमेशा से सबसे संवेदनशील सेक्टर में रही है जिसका कि रुपये के डॉलर की तुलना में परिवर्तन से गहरा संबंध रहा है। इसलिए रुपये में डॉलर की तुलना में आई हालिया गिरावट सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों केलिए अच्छा संकेत हो सकता है। इसकी वजह है कि ये कंपनियां अपनी सेवाओं केनिर्यात की एवज में जितने डॉलर पाएंगी उतनी ही उनकी टॉपलाइन ग्रोथ में बढ़त होगी।
एजेंल ब्रोकिंग के रिसर्च हेड हितेश अग्रवाल का कहना है कि इन्फोसिस और सत्यम कंप्यूटर जैसी कंपनियां डॉलर की तुलना में रुपये के40 केस्तर के आसपास होने का अनुमान लगा रही थी लेकिन अगर डॉलर की तुलना में रुपया 42 रुपये केस्तर के आसपास रहता है तो जरुर ये हालात सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों के लिए उत्साहजनक होंगे।
हितेश यह भी अनुमान लगाते हैं कि रुपये की कीमतों में हालिया 7 फीसदी से अधिक गिरावट से सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों को अपने इबिडटा मार्जिन में 2.2 से 2.4 फीसदी तक का फायदा होगा। विश्लेषकों का अनुमान है कि इस स्थिति से इन्फोसिस,विप्रो और टीसीएस को सबसे ज्यादा फायदा होगा।
इन्फोसिस टेक्नोलॉजी
इन्फोसिस टेक्नोलॉजी का फोरेक्स हेजिंग में एक्सपोजर कम माना जाता है, वह सबसे अधिक फायदे में रहने वालों में शामिल है। कंपनी अपना 85 प्रतिशत राजस्व डॉलर में कमाती है, जबकि यह अपने खर्च रुपये में करती है। इंडिया इन्फोलाइन की रिपोर्ट के अनुसार रुपये के डॉलर के मुकाबले 42.05 के स्तर पर होने का इन्फोसिस ईपीएस पर 8.7 प्रतिशत सकारात्मक प्रभाव पड़ा।
इसका शेयर अब 104 रुपये पर पहुंच गया है, जो रुपये के 40 के स्तर पर होने के समय 96 रुपये पर था। वर्तमान में इस शेयर का बाजार मूल्य 1,957 रुपये है। यह वित्तीय वर्ष 2009 की अपनी अनुमानित आय के मुकाबले 20 गुना और वित्तीय वर्ष 2010 की आय के मुकाबले 17 गुने पर ट्रेडिंग कर रहा है। आईटी स्टॉकों में इन्फोसिस पर पैसा लगाया जाना लाभ का सौदा साबित हो सकता है।
फार्मा: वृध्दि का उपचार
रुपये का कमजोर होना अमेरिकी बाजार को निर्यात करने वाली फार्मास्युटिकल कंपनियों के लिए अच्छी खबर है। हितेश अग्रवाल ने बताया कि रैनबैक्सी और सन फार्मास्युटिकल को सबसे अधिक लाभ हुआ। दोनों का अमेरिकी बाजार को निर्यात कुल बिक्री का 26 प्रतिशत है। रुपये के एक प्रतिशत अवमूल्यन ने दोनों के शुध्द लाभ में 2-3 प्रतिशत की वृध्दि की।
रैनबैक्सी लैबोरेटरीज
रैनबैक्सी को अपने राजस्व का 80 प्रतिशत विदेशों से मिलता है। इसमें 26 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका से आता है। हालांकि पूरे विश्व में कंपनी को डायवर्सिफाइड उपस्थिति के कारण अपना सारा निर्यात राजस्व डॉलर में नहीं मिलता, लेकिन अमेरिकी बाजार से उसे सबसे अधिक राजस्व मिलता है। भविष्य में यह उसके लिए प्रमुख बाजार होगा।
कंपनी अपने राजस्व को बढ़ाने के लिए गठजोड़ और अधिग्रहण की जुड़वा रणनीति पर काम कर रही है। रैनबैक्सी ने हाल ही में एस्ट्रा जेनेका के साथ पांच साल का करार किया है। इससे 2009 से प्रारंभ होकर अगले पांच सालों में उसे 5,000 करोड रुपये का राजस्व मिलेगा। कंपनी प्रबंधन के अनुसार वह अपने ड्रग्स के एफटीएफ पोर्टफोलियो में पेटेंट इन्फ्रिंजमेंट केस सुलझाने को तैयार है।
यह अपेक्षाकृत कम जोखिम वाली रणनीति कंपनी को कानूनी लागत को बचाकर अपने राजस्व में इजाफा करने में मदद मिलेगी। कंपनी के आर्किड केमिकल्स में 14.7 प्रतिशत हिस्सेदारी अधिग्रहित करने के कदम से उसे विनिर्माण सुविधाओं तक पहुंचने में मदद मिलेगी। कई नए प्रॉडक्ट्स के पाइपलाइन में होने से कंपनी को उम्मीद है कि उसके पास 19 पेरा 4 एनडीए फाइलिंग में एफटीएफ स्टेटस है।
यह 29 अरब डॉलर का बाजार है। उसे अगले पांच सालों तक हर साल एक एफटीएफ का मार्केट करने और छह माह एक्सक्लूसिवली बेनिफिट से एवार्ड की उम्मीद है। कंपनी के शेयर का वर्तमान बाजार मूल्य 528 रुपये है। यह वित्तीय वर्ष 2009 की अनुमानित आय से 29 गुने और वित्तीय वर्ष 2010 की आय से 17 गुने पर ट्रेडिंग कर रहा है।
होटल: संभावना बढ़ी
होटल उद्योग जिसने रुपये की बढ़ती कीमत के चलते संभावित नुकसान से बचने के लिए अपने राजस्व के एक भाग को रुपये में परिवर्तित किया था। अब रुपये के डॉलर के मजबूत होने से उसके अच्छे दिन लौट आए हैं। हालांकि उनके द्वारा डॉलर में अर्जित राजस्व को देखते हुए उन्हें इसका सीमित लाभ ही मिलेगा। विश्लेषकों का मानना है कि रुपये के और कमजोर होने से वे अपनी बिलिंग डॉलर में करने पर मजबूर हो सकते हैं।
इंडियन होटल्स-अच्छा ठिकाना
रुपये की मौजूदा स्थिति से इंडियन होटल्स को लाभ होगा। सेक्टर में अच्छी संभावनाओं और मौजूदा विस्तार से भी कंपनी को लाभ होगा। मार्च 2007 को खत्म हुए वित्तीय वर्ष में कंपनी ने अपने कुल 1,544 करोड़ रुपये के राजस्व का 45 प्रतिशत यानी 696 करोड़ रुपये विदेशी मुद्रा में अर्जित किया था। टीयर वन और टीयर टू के शहरों में अच्छी मौजूदगी के चलते प्रीमियम बिजनेस ट्रैवल के क्षेत्र में इंडियन होटल्स का खासा दबदबा है।
कंपनी के 16 होटल विदेशों में भी हैं। कंपनी से बढ़ती ऊंचे दर्जे के कमरों की मांग,ऊंची दर और आक्यूपेंसी रेट को देखते हुए बेहतर कारोबार की उम्मीद है। 31 दिसंबर 2007 की औसतन टैरिफ रेट 12,279 रुपये था, जो पिछले साल के मुकाबले 15 प्रतिशत अधिक है। आक्यूपेंसी रेट में 76 प्रतिशत की भारी वृद्धि हुई है। कंपनी के पास वर्तमान में 10,000 कमरे है, वह अपनी क्षमता वित्तीय वर्ष 2011 तक 9,000 और बढाना चाहती है। इसमें उसे 2,500 करोड़ रुपये की लागत आएगी।
वर्तमान में कपंनी का शेयर 110 रुपये पर कारोबार कर रहा है, जो उसकी वित्तीय वर्ष 2009 की अनुमानित आय के मुकाबले 16 गुना और वित्तीय वर्ष 2010 की आय की तुलना में 12 गुना है।
सिर कढ़ाही में: अबान ऑफशोर
अबान के अधिकांश करार अमेरिकी डॉलर में हैं। इसके चलते रुपये के अवमूल्यन से उसके राजस्व में खासा इजाफा होने की उम्मीद है। हाल फिलहाल 70 प्रतिशत के ऑपरेटिंग मार्जिन के साथ कंपनी का लाभ नीचे आ रहा है। इंडिया इन्फोलाइन के अमर अंबानी के अनुसार विनिमय की दर 40 के पूर्वानुमान की जगह 43 रुपये पर रहने की उम्मीद है। इससे अबान के ईपीएस में 50 रुपये की बढ़ोतरी की उम्मीद है।
इसके साथ कच्चे तेल की कीमतों के प्रति बैरल 135 डॉलर के स्तर पर पहुंचने का सबसे अधिक लाभ अबान को ही हुआ है। इस समय कंपनी के शेयर की मार्केट प्राइस 4,000 रुपये है। बेहतर मांग, फर्म प्राइसिंग और रुपये के गिरते मूल्य से अबान ऑफशोर निवेश का एक बेहतर विकल्प बन कर उभरा है। यह वित्तीय वर्ष 2009 की अनुमानित आय की की तुलना में 9 गुना और वित्तीय वर्ष 2010 की आय की तुलना में 7 गुना है।