देश में ऊर्जा के बुनियादी ढंाचे में सुधार के लिए बहुत ज्यादा निवेश की जरूरत है ताकि कई कंपनियों के लिए नए मौके तैयार हो सके।
ग्रामीण विद्युतीकरण निगम (आरईसी) पॉवर प्रोजेक्ट के लिए फंड मुहैया कराती है। आरईसी ने राज्य के विद्युत बोर्ड को जितना फंड मुहैया कराने का सोचा जिससे गांवों में विद्युतीकरण का काम हो सके, उससे कहीं ज्यादा की तरक्की हुई।
यह ऊर्जा उत्पादन के प्रोजेक्ट के लिए पूंजी मुहैया करा रही है जिसकी वजह से 11वीं योजना के दौरान अतिरिक्त क्षमता की बढ़ोतरी दिखेगी। फंड की जरूरतों को पूरा करने के लिए आरईसी इस योजना अवधि के दौरान एक लाख करोड़ रुपये तक, कर्ज के जरिए होने वाले खर्च का लक्ष्य बना रही है।
ज्यादा कारोबार के साथ ही इसकी क्षमता मार्जिन को बनाए रखने की भी है ताकि अगले कुछ सालों तक बेहतर बढ़ोतरी सुनिश्चित हो सके।
कारोबार में बढ़ोतरी
एक मेगावॉट ऊर्जा उत्पादन की क्षमता के लिए संयत्र बनाने में करीब 4 करोड़ रुपये लग सकते हैं और इसकी आधी रकम इससे जुड़े ट्रांसमिशन और डिब्ट्रीब्यूशन (टीऐंडडी)के बुनियादी ढ़ांचे में लगता है।
वैसे 11वीं योजना में 79,000 मेगावॉट उत्पादन क्षमता और टीऐंडडी बुनियादी ढ़ांचे के लिए 5 लाख करोड़ रुपये के निवेश की जरूरत है। इसी वजह से कुछ सालों तक आरईसी के कर्ज में 23-24 फीसदी तक की बढ़ोतरी होगी।
प्रबंधन को यह उम्मीद है कि 2010 में कर्ज की राशि 64,000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगी। खर्च में भी बढ़ोतरी हो रही है और 2009 के वित्तीय वर्ष में इसमें 27 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और यह 16,500 करोड़ रुपये है जबकि उम्मीद है कि 2010 के वित्तीय वर्ष में 45 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और यह 24,000 करोड़ रुपये हो गया।
ऊर्जा उत्पादन के सेगमेंट में ज्यादा खर्च लोन बुक में थोड़ी बढ़ोतरी होगी और 2010 के वित्तीय वर्ष में लगभग 37-39 फीसदी तक की बढ़ोतरी होगी, इससे आरईसी की परिसंपत्ति में एक संतुलन बनेगा।
किसी परिसंपत्ति या बंधक के एवज में केंद्रीय या राज्य विद्युत बोर्ड को दिए जाने वाले करीब 94 फीसदी उधार सकारात्मक ही होते हैं और इससे बेहतर रिकवरी और समय पर कर्ज के निपटान की सुनिश्चितता होती है। हालांकि इस क्षेत्र में निजी खिलाड़ियों की भागीदारी बढ़ रही है और अगले तीन सालों तक उनके शेयर में 15 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो रही है।
मुनाफा और मार्जिन
आरईसी लगभग 3 फीसदी तक का मुनाफा बनाए रखने में सक्षम रही है और पिछले चार सालों तक उसका शुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम) लगभग 3 फीसदी तक रहा है। वित्तीय वर्ष 2009 में दिसंबर की तिमाही से पहले के छह तिमाहियों में कर मुक्त कैपिटल गेन्स बॉन्ड के जरिए फंड के कुछ हिस्से की उगाही की गई।
लेकिन वित्तीय वर्ष 2008 की पहली तिमाही में यह 45 फीसदी से कम होकर वित्तीय वर्ष 2009 में 38 फीसदी तक हो गया। आरईसी मुनाफा और शुद्ध ब्याज मार्जिन को बनाये रखने में सक्षम हो गया। इससे आरईसी की बढ़ी हुई लागत को अपने ग्राहकों पर छोड़ देने की क्षमता का साफ अंदाजा मिलता है।
हालांकि वित्तीय वर्ष 2009 की तीसरी तिमाही में मुनाफे के साथ एनआईएम में भी दबाव बढ़ गया। इसी वजह तरलता की कमी और ज्यादा ब्याज दर रही।