तेल के दाम 200 डॉलर तक पहुंचने के कोई खतरनाक संकेत नहीं हैं, जैसा कि ज्यादातर ओपेक देश मान रहे हैं। क्या ओपेक वास्तविकता से वाकिफ है?
यह अवधारणा बन रही है कि 40 डॉलर पार करने के बाद तेल की कीमतों की चाल आर्थिक मंदी का प्रतिनिधित्व कर रही है और मंदी का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है, ऐसे में तेल की कीमतें 200 डॉलर पार कर सकती हैं। यह सब कुछ आश्चर्यजनक लगता है।
तेल की कीमतें 40 डॉलर के स्तर से तीन बार बढ़ चुकी हैं। वहीं डाऊ अभी भी 13,000 पर टिका है, जो ऐतिहासिक बढ़त से मात्र 7 प्रतिशत कम है। ऐसे में मंदी का संकेत देने वाले एस एंड पी-500 और डाऊ जोंस ने या तो संकेत देना बंद कर दिया है, या आर्थिक विश्लेषकों ने इस ओर से मुंह मोड़ लिया है।
इसकी शुरुआत हम सामान्य ज्ञान से कर रहे हैं, जो कहता है कि रॉकेट धरती पर आ गया है और सेटेलाइट आसमान में बना हुआ है। तेल इस तरह से प्रदर्शन कर रहा है जैसे कि वर रॉकेट से सेटेलाइट बनने की ओर बढ़ रहा है। यह सब कुछ मायाजाल है। तेल कभी भी सेटेलाइट नहीं बन सकता। ब्लूमबर्ग मार्केट के मुताबिक तेल का समय अब खत्म होने वाला है।
वाल स्ट्रीट के कुछ बुकर्स इसे एक अच्छे समय के रूप में देख रहे हैं। सही है, हम यह नहीं देख रहे हैं कि तेल का समय खत्म होने जा रहा है। लेकिन अगर बेहतरीन ब्रोकर्स की राय ऐसी है, तो निश्चित रूप से हम यह नहीं जानते, जैसा कि सभी लोग जानते हैं। लेकिन यह अच्छा ही है कि हम नहीं जानते, जो सभी लोग जानते हैं। क्योंकि अगर सभी लोग जानते हैं, इसकी एक सच्चाई यह भी है कि तेल की कीमतें इस समय आसमान छू रही हैं।
वास्तव में तेल की कीमतें मौसम के मुताबिक चलती हैं। जाडे क़े मौसम में ठंढ बढ़ जाती है तो तेल की कीमतें बढ़ती हैं। गर्मी के मौसम में तेल की मांग कम हो जाती है। जब तेल की कीमतें जाड़े के मौसम में गिरती हैं, तो गर्मियों में इसकी कीमत बढ़ जाती है, जैसा कि 2000 से 2002 तक और बाद में 2006 से 2007 तक हुआ है। इस समय जाडे क़े मौसम में कीमतें ज्यादा थीं।
हम लोगों के मामले में क्लाइमेट बैरोमीटर ज्यादा कारगर होता है। यह अन्य एसेट्स के समान ही है, जो 0.5, 4, 11, 30 और 90 साल के चक्रीय गति से संबध्द है। हर इस चक्रीय काल में इनफ्लेशन, डिफ्लेशन, डिस इनफ्लेशन, खाद्य पदार्थ, सोना, इक्विटी, राजनीतिक-भौगोलिक संकटों, ब्याज दरों और आप इस दौरान किस तरह से अपने विभाग को संचालित करते हैं, आदि जैसी चीजों का प्रभाव पड़ता है। इससे इस बात के भी संकेत मिल जाते हैं कि 2012 में तेल की कीमतें किस स्तर पर जा सकती हैं।
इस चरण में हम भावनाओं का सुखद उन्माद देख सकते हैं, जिसे बरकरार रखना कठिन है। पांच चरणों वाला ढांचा 1999 में शुरू हुआ, जो 2008 में खत्म होने को था, ऐसा लगता है कि 2007 में ही पूरा हो गया। इस तेजी का कारण भी जायज लगता है। एफआईबी और चैनल के लक्ष्य मौजूदा स्तर में ही कहीं बरकरार हैं। इस चरण में हम तेल को 125 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा जाता हुआ नहीं देख सकते और हमारा शोध गणित भी इसमें खरीद से ज्यादा बिकवाली की संभावना व्यक्त करता है।
आगे क्या होगा, इसे भी दूसरे जादुई चार के नियम से समझा जा सकता है। कीमतें 5 तरह के उतार चढ़ाव के ढांचे के अनुसार ऊपर नीचे होती हैं। और आप इन्हें स्कूल के किसी सवाल की तरह समझ सकते हैं, जिसमें गिनती के दौरान एक में उपर दो पर नीचे और इस तरह की कसरत का सिलसिला चलता है। अब कसरत का यह सिलसिला विस्तार ले रहा है, जो साल और कई दिनों के मुताबिक चल रहा है। यह जादुई मानवीय स्वभाव है, जो अनुमानों के आधार पर चलता रहता है।
इस तरह के उतार चढ़ाव के बाद बाजार एक समय ठहराव लेता है। इसके बाद 3 वेब स्ट्रक्चर के मुताबिक चलता है, जिसमें पहले उतार फिर चढ़ाव और उसके बाद उतार आता है। इस तरह से यह चाल अनवरत बरकरार रहती है। यही कारण है कि हम कहते हैं कि दुनिया कभी समाप्ति की ओर नहीं जाता, यह केवल उतार-चढ़ाव का सिलसिला होता है, जो हम बाजार की गतिविधियों के साथ देखते हैं। यह समाज के नजरिये के मुताबिक चलता है।
यह हमेशा होता है, जब प्राइम मेस और क्रेडिट क्राइसिस होती है। हम इस समय इसे तेल बाजार में देख रहे हैं। हालांकि यह प्राकृ तिक गैस के मामले में नहीं है। हम इस तेजी को देखने के आदी हो गए हैं और यह तेजी अब हमारे अंदर एक कौतुहल पैदा करता है।
इसलिए जब भी पांच चरणीय प्रक्रिया में थोड़ी सी रूकावट होती है तो वे पहले वाले चार चरणीय प्रक्रिया शुरू हो जाती है। पहले वाले चार चरणीय तरंग को एक तरह से अंतिम समर्थन वाले कारकों में भी शुमार किया जाता है। अगर यह प्रवृत्ति जारी रहती है तो मूल्यों में न तो कमी होती है और न ही इसमें चढ़ाव होता है। स्पष्ट है कि ये सारी बातें एक तरह का दिशा निर्देश है लेकिन यह ज्यादातर संयोग से ही घटित होता है।
यह हर जगह दिखाई देता है, बीएसई ऑयल, बीएसई सीजी, बीएसई बैंक, बीएसई ऑटो, सेंसेक्स, निफ्टी और सीएनएक्स आईटी सभी जगह। ये सारे चार चरणीय तरंग से सराबोर होते हैं। तेल जब नीचे जाता है तो यह 90 डॉलर पर स्थिर हो जाता है और इसके बाद भी अगर यह गिरता है तो यह 70 डॉलर के उपस्तर पर टिक जाता है। और अगर हम सोचते हैं कि कुछ महीने में ऐसा होगा, तो यह गलत हो सकता है।
लेकिन यह पुअर चिकेन की तरह नही होता जिसका जिक्र मार्केट गुरु एजे फ्रोस्ट कर चुके हैं। चिकेन की गति तब निर्धारित होती है जब मनुष्य का अस्तित्व हो लेकिन मनुष्य का अस्तित्व तो अनाजों पर निर्भर करता है। ऐसा 999 बार होता होगा कि चिकेन मनुष्य को धन्यवाद देता होगा और उसकी गर्दन हलाल कर दी जाती होगी।
वैसे शारीरिक गठन के मुताबिक हमलोग भेड़ और बकरियों के झुंड की मानिंद हैं और ऐसा भी हो सकता है कि कभी हम भी उस बेचारे चिकेन की श्रेणी में आ जाए। हम लोग इस बात को लेकर सशंकित हैं कि गर्मी या सर्दी में तेल की कीमतों में उछाल आ सकता है। बेशक यह एक कवि की व्यथा की भांति ही तो है।
(लेखक वैश्विक वैकल्पिक शोध कंपनी आर्फियस कैपिटल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।)