नए साल के लिए मौजूद नए विकल्प

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 09, 2022 | 9:12 PM IST

वर्ष 008 को शेयर बाजारों में तेज गिरावट और बड़े-बड़े वित्तीय संस्थानों जैसे लीमन ब्रदर्स और बेयर सर्टन्स के बंद होने के लिए याद किया जाएगा।


यहां तक कि निजी वित्त क्षेत्र में नकद और डेरिवेटिव बाजारों की निवेश रणनीति का इस्तेमाल करने वाले व्यवस्थित उत्पाद दूसरी चीजों के अलावा कई बार काफी प्रचलित रहा, लेकिन कई रईसों ने इस तरह के जबरदस्त उत्पादों में अपनी उंगलियां जला लीं।

वर्ष 2009 में चीजें काफी अलग होंगी। हालांकि सत्यम कंप्यूटर के घोटाले के साथ बाजार के लिए यह साल बुरी खबर के साथ शुरू हुआ, लेकिन इस साल एक ऐसा बड़ा मौका भी है, जिसके साथ उम्मीद है कि बाजार इस साल कुछ मजबूत हो पाएंगे। वह है, नई पेंशन योजना (एनपीएस) की पेशकश।

आज, संगठित और असंगठित क्षेत्र में कई ऐसे लोग हैं, जिनकी सामाजिक सुरक्षा तक पहुंच ही नहीं हे। अब तक, लोगों को कर्मचारी भविष्य निधि के रूप में कुछ निर्धारित लाभ ही मिल पा रहे थे, जिसका छोटा हिस्सा कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस) को भी जाता है।

पेंशन निधि नियामक एवं विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) ने सभी भारतीय नागरिकों के लिए पेंशन निधि को पेश करने की एक नई तारीख 1 अप्रैल, 2009 तय की है।एनपीएस की पेशकश के साथ एक सरकारी कर्मचारी को अपने वेतन का 10 प्रतिशत का निर्धारित हिस्सा इस योजना को देना होगा।

न सिर्फ कर्मचारी बल्कि नियोक्ता को भी यही हिस्सा इस योजना में लगाना होगा। सरकारी कर्मचारियों के लिए फिलहाल एक निर्धारित 15 प्रतिशत का निवेश इक्विटी और बाकी का डेट में जा सकता है। हालांकि निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए चीजें कुछ अलग हैं।

चूंकि कंपनियां कोई योगदान नहीं देंगी, कर्मचारी चाहे तो वह पेंशन योजना में योगदान दे सकता है। हालांकि कर्मचारियों को यह विकल्प मुहैया कराया जा रहा है कि वह अपने जोखिम उठाने की क्षमता को देखते हुए पूरी तरह से डेट और इक्विटी या फिर इनके हाइब्रिड वर्जन में निवेश करें।

इसका मतलब यह होगा कि निवेश पर मिलने वाला रिटर्न निर्धारित नहीं होगा, इससे पेंशन योजना में निवेश करने वाले को अधिक या अपनी जरूरत के अनुसार निवेश करने में भी सहायता मिलेगी।

साथ ही इसका मतलब है कि भारतीय शेयर बाजार को इन योजनाओं से अधिक पैसा मिलेगा और वह भी ऐसा पैसा जो लंबे समय के लिए होगा।

इससे बाजार को अहम रूप में खुद में विस्तार करने का मौका मिलेगा और साथ ही बाजार को स्थिर होने में और कर्मचारियों को इक्विटी बाजारा में निवेश करने पर लाभ देने में भी मदद मिलेगी। वैसे पेंशन योजना के जरिये कर्मचारी बेहद कम उम्र में बिना किसी शेयर ब्रोकर या म्युचुअल फंड वितरककर्ता की मदद से इक्विटी बाजार में उतर सकते हैं।

बीमा क्षेत्र में अगल कुछ महीनों में सबसे अहम मामला जो देखने को मिल सकता है वह है मेडिकल बीमा की पोटर्बिलिटी। इसका मतलब है कि पॉलिसीधारक अपनी योजना को बदलकर पॉलिसी के वह सभी फायदे ले सकते हैं, जिनमें पहले बीमाकर्ता से नो-क्लेम बोनस भी शामिल है।

इससे उन पॉलिसीधारकों को खासतौर पर मदद मिलेगी, जो अपने मौजूदा सामन्य बीमा करने वाली कंपनियों से असंतुष्ट हैं। नई पॉलिसी लेने के लिए उन्हें अब तक जमा हुए अपने नो-क्लेम बोनस और पुरानी मौजूदा बीमारियों की कवरेज के लिए तैयार ट्रैक रिकॉर्ड को छोड़ना होगा।

इसलिए किसी भी पॉलिसीधारकों को उसी बीमाकर्ता के साथ बने रहने की मजबूरी से जूझना पड़ता है या फिर दूसरे बीमाकर्ता को चुनने के लिए पॉलिसी पर मिलने वाले लाभों से हाथ धोना पड़ता है। यह सभी वर्ष 2009 में बदलने वाला है।

मेडिकल इंश्योरेंस पोटर्बिलिटी के तहत सामान्य बीमा पॉलिसी देने वाली कंपनी से असंतुष्ट होने की स्थिति में पॉलिसीधारक दूसरे बीमाकर्ता को चुन सकता है वह भी कोई लाभ खोए बिना। हालांकि इसमें ध्यान देने की बात यह है कि ऐसे समय में बीमा कंपनियों में बीमा पॉलिसियां अलग-अलग हो सकती हैं।

सामान्य बीमा पॉलिसी देने वाली कंपनियों का संगठन जनरल इंश्योरेंस काउंसिल (जीआईसी) दूसरी कंपनी को न्यूनतम लाभ किस तरह से स्थानांतरित किए जाए इस बारे में सिफारिशों पर काम कर रहा है।

आइए इसे उदाहरण की मदद से समझते हैं। चलिए मानते हैं कि आपने कुल 2 लाख रुपये की पॉलिसी ली है और इस पर आपका नो-क्लेम बोनस 1 लाख रुपये जमा हो चुका हे। इसका मतलब है कि आपका मौजूदा कवर 3 लाख रुपये का है।

मौजूदा समय में अगर आप बीमा कंपनी बदलते हैं तो आपको अपने नो-क्लेम बोनस को भुलना होगा। हालांकि मेडिकल इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी के तहत आप 2 लाख रुपये या न्यूनतम कीमत (न्यूनतम लाभ के अनुसार) इसे नई बीमा कंपनी में स्थानांतरित करा सकते हैं।

चलिए अब डेट फंड के रिटर्न पर एक नजर डालते हैं। बाजार में लगभग 3 से 4 साल तक तेजी के दौर के बाद पिछले कुछ महीनों ने एक बार फिर डेट योजनाओं का प्रचलन बढ़ा दिया। वर्ष 2008 के पिछले कुछ महीनो में गिल्ट और इनकम फंड, जिन्हें कोई लेने वाला नहीं था, ने बढ़िया और स्थिर रिटर्न दिए।

कम समय में इन डेट फंडों से मिलने वाले 15 से 20 प्रतिशत के रिटर्न ने इक्विटी निवेश को भी पानी पिला दिया। दुनियाभर में ट्रेजरी बॉन्ड किसी भी दूसरे कॉर्पोरेट बॉन्ड से बढ़िया रफ्तार से आगे बढ़ रहे हैं। इसके पीछे एक अहम कारण इनके साथ शून्य कर्ज जोखिम का जुड़ा होना है।

ऐसा ही कुछ भारत में तब देखने को मिला था जब गिल्ट (भारतीय प्रतिभूतियों) ने कॉर्पोरेट या किसी दूसरे बॉन्ड से बेहतर प्रदर्शन किया। समान अवधि के लिए सरकारी प्रतिभूतियों के मुकाबले कॉर्पोरेट में अधिकतम और न्यूनतम का अंतर 3 प्रतिशत का है।

दुनिया भर में कुछ समय के लिए ब्याज दरें कम हो सकती हें। इसके साथ ही नकदी की स्थिति बेहतर होगी और भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से आगे भी दरनें कम होने की संभावना है, जिसे देखते हुए डेट फंड अधिक निवेश आकर्षित कर सकते हैं।

उम्मीदों की राह


एनपीएस की पेशकश : सरकारी और निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए बढ़िया विकल्प हो सकता है।

मेडिकल इंश्योरेंस पोटर्बिलिटी योजना : अगर पॉलिसीधारक अपनी बीमाकर्ता कंपनी को बदल भी लेता है तो भी उसे नई कंपनी में नो-क्लेम बोनस का लाभ मिलेगा।

डेट योजना : उन निवेशकों के लिए यह अच्छा सौदा है जो बढ़िया रिटर्न कमाना चाहते हैं

First Published : January 11, 2009 | 9:14 PM IST