अक्टूबर के महीने में शेयर बाजार के धरातल पर रहने की जो बात हमने की थी, वह हुआ और तमाम कयासों को उलटते हुए देखा गया। एक अजीब सा काल चक्र हमने देखा, जो पारंपरिक ज्ञान की सीमाओं से परे रहकर काम करता रहा।
अब 2008 को अलविदा कहने का वक्त आ गया है, तो हम आम तौर पर काम करने वाली उस सोच में दरारों और खामियों की बात कर सकते हैं, जो समाज और अर्थव्यवस्था के हिस्से के तौर पर हमारे जेहन में रहती है।
यह शानदार विचार है क्योंकि इसमें हम अर्थशास्त्र, वित्त, इतिहास, मनोविज्ञान, गणित, विज्ञान, काल चक्र और कला जैसे तमाम विषयों को छूते हुए गुजरेंगे।
लेकिन दूसरा पहलू देखा जाए, तो अनुसंधान के क्षेत्र में यह क्रांति के बराबर होगा क्योंकि हम तमाम विषयों से चुनकर ऐसे हथियार बना लेंगे, जो भविष्य को बताने और उसकी व्याख्या करने में कारगर साबित होंगे।
फ्रैक्टल का पहलू
ऐडम स्मिथ के पूंजीवादी मॉडल पर तमाम तरह के सवाल खड़े किए गए हैं, लेकिन फिलहाल हमारे पास इसे मानने के अलावा दूसरा चारा नहीं है क्योंकि लंबे अरसे से यह मॉडल ही काम कर रहा है।
दिलचस्प है कि लंबे समय से जो सामाजिक व्यवस्थाएं काम कर रही हैं, उन्होंने भी पूंजीवाद के तत्व लिए हैं और उनकी बदौलत व्यवस्थाएं बेहतर ही हुई हैं।
कार्ल मार्क्स का पूंजीवाद का विचार अपने साथ संकट भी लाता है, जो एक निश्चित अवधि के बाद आता है और यह सच है। उसके बावजूद यह व्यवस्था जीवित है और शायद किसी भी जीवित व्यक्ति से ज्यादा इस आर्थिक व्यवस्था की उम्र है।
हम जानते हैं कि मनुष्य इस मॉडल से परे भी कुछ खोज ही लेगा, लेकिन अभी यह नहीं कहा जा सकता कि ऐसा कब होगा।
चार्ल्स डाउ ने ज्यामितीय रचना फ्रैक्टल की तलाश की और उसके आधार पर आधुनिक वित्त का मॉडल तैयार किया। यह बात दीगर है कि उन्हें खुद फ्रैक्टल के बारे में नहीं पता था। इसी तरह एकाउंटेंट का काम करने वाले इलियट ने दोबारा इस बात की तस्दीक की कि बाजार फ्रैक्टल मॉडल पर चलता है।
(फ्रैक्टल एक खास ज्यामितीय रचना होती है, जिसमें एक ही आकार बार-बार आता है। उदाहरण के लिए एक के बाद एक त्रिभुज आते रहेंगे। इसका अर्थ है कि एक जैसी घटनाएं निश्चित अवधि के बाद बाजार के साथ भी होती रहेंगी, मसलन शेयर बाजार का उठना और गिरना।)
इलियट ने डाउ के सिद्धांत को अपने सिद्धांत के जरिये नए सिरे से परिभाषित किया। लेकिन उन्होंने भी बाद में इसे फिबोनाची गणित से जोड़ना शुरू कर दिया। दोनों ने ही अपने सिद्धांतों में सामाजिक व्यवहार के बारे में बात की थी, लेकिन व्यावहारिक वित्त की बात करना भूल गए।
इसके बारे में डेनियल कैनरमैन ने अपने सिद्धांत में कहा था। यही वह जगह है, जहां दरार है। मैंडलब्रॉट का ‘एम सेट’ गणित के दायरों से बाहर भी लोकप्रिय हुआ क्योंकि यह खूबसूरत था और सामान्य परिभाषा की बुनियाद पर तैयार किया गया जटिल सिद्धांत था।
लेकिन इलियट के सिद्धांत को वह लोकप्रियता नहीं मिली। दरअसल बाजार के फ्रैक्टल और एम सेट के बीच तालमेल ही नहीं हुआ, जिसकी वजह से थॉमस माल्थस और वरहल्स्ट के फ्रैक्टल सिद्धांत भी हाशिये पर डाल दिए गए।
फ्रैक्टल और चक्र
खामी केवल यहीं पर नहीं है। फ्रैक्टल विकास और क्षरण को बताने वाली रचना हैं। एम सेट हो या फ्रैक्टल या वरहल्स्ट का एस कर्व, सभी विकास और क्षरण की प्राकृतिक प्रक्रिया बताते हैं, जो चक्रीय गति से चलती है। लेकिन चक्र को फ्रैक्टल से जोड़ने के लिए काम ही नहीं किया गया।
टोनी प्लमर ने चक्रों के जरिये इलियट के फ्रैक्टल को समझाने की कोशिश की थी, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। मतलब साफ है, फ्रैक्टल दरअसल बाजार के चक्र का एक छोटा हिस्सा होते हैं। चक्र बाजार के गणित में सबसे ऊपर होते हैं।
दरअसल चक्र दो पहलुओं से मिलकर बने होते हैं – अवधि और पैटर्न। किसी पैटर्न को देखना और समझना कला होती है, विज्ञान नहीं।
चक्र गणित का हिस्सा होते हैं, जिनमें एक क्रम होता है और बिखराव भी। मनुष्य होने के नाते हम अनिश्चितता से घबराते हैं और जब हमें पता चलता है कि हम तो बहुत कम जानते हैं, तो हमारे अंदर खौफ घर कर जाता है।
परिचित को तरजीह
व्यावहारिक वित्त की बात यहीं से शुरू होती है। इससे पता चलता है कि हमारी सोच में खामी कहां थी। हमने अनिश्चितता से घबराने की बात की, जिसके मुताबिक हम अनजाने जोखिम के मुकाबले जाने पहचाने जोखिम को पसंद करते हैं।
एल्सबर्ग भी ऐसा ही कहते हैं। उनके मुताबिक यदि आपके सामने दो बक्से हैं। एक में 50 लाल और 50 नीली गेंद हैं और दूसरे में 100 गेंद हैं, लेकिन यह नहीं पता कि किस रंग की कितनी गेंद हैं।
ऐसे में आप पहला बक्सा खरीदना पसंद करेंगे, जबकि दोनों में ही 100-100 गेंद हैं और हो सकता है कि दूसरे बक्से में भी 50 लाल और 50 नीली गेंद हों।
आपको यह भी नहीं पता कि पहले बक्से में गेंद की गुणवत्ता क्या है। लेकिन चूंकि पहले बक्से के बारे में आपको दूसरे के मुकाबले ज्यादा जानकारी है, इसलिए आप उसी पर पैसा खर्च करेंगे। यानी जिस जोखिम के बारे में अंदाजा है, वह हमें पसंद आता है अर्थात परिचित वस्तु को आप तरजीह देते हैं।
व्यावहारिक वित्त पर अनुसंधान करने वालों के मुताबिक भी मनुष्य जोखिम और समय के बारे में इसी तरह से सोचते हैं यानी भविष्य अनिश्चित हो, तो हमारे तर्कों की धार कुंद हो जाती है। यदि भविष्य निश्चित हो, लेकिन उसमें कितना समय लगेगा, यह नहीं पता हो, तो भी हम तर्क के आधार पर सोचना बंद कर देते हैं।
बाजार के मामले में यह बेहद महंगा साबित हुआ है और इसके नतीजे में मौके और मुनाफे पर चोट पड़ी है। अनिश्चितता से दूर भागने की हमारी फितरत यह भी साबित करती है कि एक समूह के तौर पर हमें ज्यादा जानकारी की जरूरत क्यों पड़ती है।
ज्यादा जानकारी का मतलब यही माना जाता है कि भविष्य के प्रति अनिश्चितता कम हो गई और सारा मामला हमारी समझ में आ गया। लेकिन इससे जोखिम तो कम नहीं हो जाता। मजे की बात है कि यह भी साबित हो चुका है कि ज्यादा जानकारी जरूरी तौर पर प्रभावी नहीं होती।
व्यवहार का गणित
व्यावहारिक वित्त ने लगभग 200 साल से चले आ रहे आर्थिक विचार को एक झटके में खारिज कर दिया है क्योंकि मनोवैज्ञानिक अर्थशास्त्रियों को चुनौती देने में कभी हिचकिचाते नहीं। लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं कि खुद उन्हें चुनौती नहीं मिल सकती।
हर्श शेफ्रिन ने कहा है कि भविष्य का अनुमान लगाना खुद को भ्रम में रखने के बराबर होता है। वह यह भी बताते हैं कि बाजार के बारे में अटकलें लगाना, भविष्यवाणी करना और उसे समय के दायरे में बांधना व्यावहारिक वित्त के बूते की बात नहीं। यह सच नहीं है।
फ्रैक्टल की बुनियाद पर खड़े होकर बाजार पर नजर रखें, तो परत-दर-परत सब कुछ आपके सामने खुल जाएगा। यही वजह है कि फ्रैक्टल का सहारा लिए बिना व्यावहारिक वित्त अधूरा है। माहौल पर निगाह डालने से भी आप कल का अंदाजा लगा सकते हैं।
एक बात याद रखिए, किसी विचार को चुनौती देना आसान नहीं होता। हम नए को हमेशा कठघरे में खड़ा करते रहेंगे क्योंकि हमें जाने-पहचाने से ही लगाव होता है। लेकिन निश्चिंतता का तत्व नहीं है, यह पक्षपाती रवैया है।